साहित्य/सिनेमा

निराशा के दौर में उम्मीद देती फिल्म- “मैं आज़ाद हूँ”

फिल्म आम आदमी की बात करती है और बताती है कि इस दुनिया की हर चीज के पीछे मेहनतकश का...

“थप्पड़” : जो हर औरत के जीवन की खामोश तहों का गवाह है

फिल्म “थप्पड़” को क्यों देखाना चाहिए. . . वरिष्ठ पत्रकार और फिल्मों के सटीक विश्लेषक साथी दिनेश श्रीनेत की समीक्षा...

सिनेमा मार्डन टाइम्सः महामंदी की अद्भुत दास्तान

मज़दूर जमात के लिए चार्लिन चैपलिन की एक शानदार फिल्म. . . महामंदी का वह दौर, भयावह बेरोजगारी, और विकट...

इस सप्ताह केदारनाथ अग्रवाल की चार कविताएं !

मिल मालिक मिल मालिक का बड़ा पेट है बड़े पेट में बड़ी भूख है बड़ी भूख में बड़ा जोर है...

जन गीतकार शैलेन्‍द्र को याद करते हुए

शंकर शैलेंद्र का जन्म 30 अगस्त, 1923 को रावलपिंडी में हुआ था. मूल रूप से उनका परिवार बिहार के भोजपुर...

वो सुबह कभी तो आएगी

मशहूर संगीतकार खय्याम नही रहे भारतीय सिनेमा के दिग्गज संगीतकार मोहम्मद ज़हूर ख़य्याम हाशमी का सोमवार रात साढ़े नौ बजे...

भूली-बिसरी ख़बरे