कविताएँ इस सप्ताह : वाह रे बिल्ला-रंगा !
शववाहिनी गंगा / पारुल खख्खर (गुजराती से अनुवाद : इलियास शेख) एक-साथ सब मुर्दे बोले ‘सब कुछ चंगा-चंगा’, सा’ब, तुम्हारे...
शववाहिनी गंगा / पारुल खख्खर (गुजराती से अनुवाद : इलियास शेख) एक-साथ सब मुर्दे बोले ‘सब कुछ चंगा-चंगा’, सा’ब, तुम्हारे...
लावारिस लाशें / प्रभात नदियों में, तालाबों में जली झोपड़ियों के राखों में बड़े बड़े इमारतों के मलबों से सरकारी...
(जन्म- 7 मई 1861, निधन- 7 अगस्त 1941) तेरा आह्वान सुन कोई ना आए / रवींद्र नाथ ठाकुर तेरा आह्वान...
आज पहली मई है / स्वप्निल श्रीवास्तव आज पहली मई है और मैं उन मजदूरों को याद कर रहा हूँ...
तानाशाह का मजाक तो उड़ा ही सकते हैं / स्वप्निल श्रीवास्तव हम कुछ भी नहीं कर सकते लेकिन तानाशाह का...
यही तो लोकतंत्र है! / दिगम्बर बच्चे जब चित्रकारी करते हैं तो आम का चित्र बनाने पर अमरुद बन जाता...
अच्छे दिन दिखाई देंगे सिर्फ अखबारों में / राहुल मिश्रा कुछ काला पैसा पार्टी फंड के चंदे से आया !!...
रिक्शावाला / ज्ञान प्रकाश चौबे पैडल के नीचे दबाता है अपना दुख हैंडल के उमेठते हुए कान बदलता है हवा...
अपरिचित / दिनेश श्रीनेत हम एक-एक शब्द जोड़कर बनाते हैं छोटे-छोटे पुल जिस पर चलकर हमें एक-दूसरे के करीब आना...
यह समय / श्रुति कुशवाहा वो जाता तो लौटकर बिल्कुल न आता जो लौटता तो हमेशा अलहदा होता समय को...