बजट 2022 / भाग 2 : अमीरों के लिए अमृत महोत्सव, गरीबों के लिए फिर से कलयुग

कोरोना महामारी के दौर में भी गरीबी बढ़ी एवं अमीर और अमीर होते गए। क्या बजट 2022 इस स्थिति को बदल सकती है? इन तथ्यों को देखने से जवाब साफ़ है।
भारत में पिछले कुछ वर्षो से सबसे सुस्त आर्थिक वृद्धि दर चल रही है, और यह गिरावट 2016-17 में तेज हुई और 2019-20 में जीडीपी का 4% रही। इसका मुख्य कारण रहा है कि पिछले पांच सालों में भारत के निचले 1/5 जनता के आय में 53% की गिरावट आई है। वहीं इसी दौरान भारत के 1/5 सबसे अमीर व्यक्तियों के आय में 39% की वृद्धि दर्ज की गई है। यानि कोरोना महामारी के दौर में भी गरीब और गरीब होते गए एवं अमीर और अमीर होते गए।
देश की आम और मेहनतकश जनता की क्रय (खरीद पाने की) शक्ति कम होती गई, जिससे छोटे और मध्यम आकार के उद्योग बंद होते गए। क्योंकि मेहनतकश आबादी के क्रय शक्ति में कमी के कारण इन उद्योगों ने लोकल मार्केट को खो दिया। इसमें आरएसएस-बीजेपी संचालित सरकार द्धारा लाई गई जीएसटी कानून ने सक्रिय सहयोग दिया।
वहीं कोविड-19 जैसे महामारी ने भी इसको बद से बत्तर बनाया। महामारी के दौरान ना केवल लोगों ने रोजगार और आय से हाथ धो लिया बल्कि 20 से 24 वर्ष के युवा जो अभी काम के लिए तैयार हो रहे थे उनमें बेरोजगारी की दर 37% हो गई–जो दुनियां में सबसे उच्चतम स्तर पर है और साथ ही भारत में पिछले 45 वर्षो में सबसे अधिक है।
सार्वजनिक क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने से रोजगार और मेहनतकश मज़दूर के आय का स्रोत बनती जिससे फिर से बाजार में मांग पैदा होती। लेकिन बजट में इन क्षेत्रों को कमज़ोर करके पूँजीपतियों को अलग-अलग तरह से फायदा पहुँचाया गया है।
इसके फलस्वरूप हम देखते हैं कि कोविड-19 के लॉकडाउन के समय भी पूंजीपतियों के संपत्ति में 35% की वृद्धि दर्ज की गई।
यह संपत्ति इतनी है कि इससे 10 वर्षो के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार स्चीम (मनरेगा) में फंड दिया जा सकता था या 14 करोड़ गरीबों में से प्रत्येक को तकरीबन 1 लाख मुफ्त में दिया जा सकता था! यह बाज़ार की माया नहीं बल्कि सोची-समझी नीतियों का फल है।
1 फरवरी 2022 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन द्धारा संसद में जो बजट पेश किया गया उसमें भी देश के पूंजीपति वर्ग को एक तरफा फायदा पहुंचाने की प्रक्रिया को जारी रखा गया है। इसे ऐसे प्रचारित किया जा रहा है कि सरकार पूंजीपतियों को छूट देगी और फिर वहां से विकास की राह निकलेगी। उपर के आंकड़े देखे तो यह हास्यास्पद बात लगती है।
बजट में “प्रधान मंत्री गति शक्ति” योजना के द्वारा कंस्ट्रक्शन और इससे जुड़े उद्योगों को फायदा पहुंचाने की बात की गई है। कॉरपोरेट टैक्स को 18% से घटाकर 15% की गयी है, ‘स्टार्ट-अप’ के नाम पर आसन लोन साथ ही 4 वर्षो तक टैक्स से छूट जैसी सहूलियत दी जा रही है। उलटे तरफ़ सार्वजनिक साधनों को कमज़ोर किया जा रहा है।
बजट में शिक्षा जैसे क्षेत्र में सीधे किसी प्रकार का निवेश ना करके ई-विद्या (eVidya) स्कीम लाई गई है जिससे ‘ऑनलाइन शिक्षा’ के नाम पर सरकारी स्कूल – कालेजों का निजीकरण होगा। मनरेगा जैसे मेहनतकश आबादी के आय के लिए चलाई जा रही स्कीम में निवेश को कम किया गया है –पिछले वर्ष के 98,000 करोड़ की तुलना में इस बार के बजट में 73,000 करोड़ दिया गया। यह तथ्य सरकार के गरीब विरोधी नीति और कॉरपोरेट प्रेम को उजागर करता है।
देश में आज़ादी का उत्सव तो मनाया जा रहा है।
बजट को परखने से हमे साफ़ नज़र आता है की यह पूंजीपतियों के लिए ‘अमृत महोत्सव’ हो सकती है लेकिन गरीबों के लिए कलयुग है।
आज के शासकों द्वारा अपने ही बनाए गए पूंजीवादी व्यवस्था को संकट से बचाना संभव नही हो रहा है। अगर देश को बिकने से कोई आज लड़ सकता है तो वो केवल हम मजलूमों के संघर्ष ही है जो एक विकल्प की कल्पना कर सकती है।