स्थाईकरण, न्यूनतम वेतन आदि माँगों को लेकर भोजनमाताओं ने हल्द्वानी में किया प्रदर्शन

Bhojanmata_protest

स्कूल से हटाने संबंधी अमानवीय शासनदेश रद्द करो!

इतनी महंगाई के दौर में मात्र 2000 रुपये में कोई कैसे घर चला सकता है? सरकार भोजनमाताओं का मानदेय बढ़ाने की जगह उनको निकालने के शासनादेश पारित कर रही है। यह बड़ी शर्म की बात है।

हल्द्वानी (उत्तराखंड)। अपनी विभिन्न माँगों को लेकर प्रगतिशील भोजनमाता संगठन उत्तराखंड, नैनीताल के बैनरतले भोजन माताओं ने आज 10 अगस्त को हल्द्वानी के बुद्ध पार्क में सभा की व शहर में जुलूस निकालकर डीएम के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा।

ज्ञापन द्वारा सभी भोजन माताओं को स्थाई करने, न्यूनतम वेतन लागू करने, अमानवीय शासनादेश रद्द करने तथा कोविड सेंटरों में कार्यरत रही भोजनमाताओं को प्रोत्साहन राशि देने आदि मांगों को पूरा करने की अपील की।

https://mehnatkash.in/2021/02/07/demonstration-against-the-decree-of-removing-food-from-mothers/

प्रगतिशील भोजन माता संगठन की महामंत्री रजनी जोशी मैं कहा कि भोजनमाताएं 18-19 सालों से बेहद कम मात्र 2000 मानदेय पर भोजनमाता के काम के साथ-साथ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का काम (फाइलें इधर-उधर ले जाना, चाय पिलाना, पानी पिलाना, सुबह स्कूल खोलना व शाम को बंद करना), सफाई कर्मचारी का काम (पूरे स्कूल में झाड़ू लगाना, कुर्सी मेज साफ करना, शौचालय की सफाई करना), माली का काम (स्कूल में सब्जियां उगाना, फुलवारी लगाना, घास काटना) आदि काम कर रही है।

भोजन माता गरीब परिवारों से आती हैं। उन पर अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारी है। इतनी महंगाई के दोर में मात्र 2000 रुपये में कोई कैसे घर चला सकता है। यह सोचा जा सकता है। सरकार भोजनमाताओं का मानदेय बढ़ाने की जगह भोजनमाताओं को निकालने के शासनादेश पारित कर रही है। यह बड़ी शर्म की बात है।

https://mehnatkash.in/2020/10/30/demonetisation-regarding-confirmation-and-other-demands/

भोजनमाताओं के तमाम संघर्षों द्वारा मुख्यमंत्री व अलग-अलग अधिकारियों को ज्ञापन में 15,000 न्यूनतम वेतन दिए जाने की मांग की गई थी। लंबे समय बाद उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने भोजनमाताओं का मानदेय 5000 रुपये किए जाने का प्रस्ताव सरकार को भेजा है। यह प्रस्ताव भी कब तक लागू होगा अभी इसकी कोई चर्चा नहीं की जा रही है।

प्रगतिशील भोजनमाता संगठन की दीपा उप्रेती ने कहा कि भोजनमाताएं स्कूल में खाना बनाने के अलावा भी सारे छोटे-मोटे काम करती हैं। अधिकांश भोजन माताओं को काम करते हुए 20 साल के करीब हो चुके हैं ऐसे यह तर्क बेहद मूर्खतापूर्ण है कि आपके बच्चे स्कूल में नहीं पढ़ते हैं इसलिए आपकी सेवा की जा रही है। किसी भी भोजनमाता के बच्चे 5 साल से अधिक प्राथमिक विद्यालय में नहीं पढ़ सकते हैं। भोजनमाताओं को स्कूल से हटाने की कार्यवाही पर रोक लगाने व न्यूनतम वेतन 15000 रुपये करने अपील की।

https://mehnatkash.in/2020/01/10/food-demonstrators-in-dehradun/

इस कार्यक्रम में रजनी, दीपा उपरेती, गीता आर्य, मोहनी जोशी, चंपा, हेमा, कविता, पार्वती, पुष्पा देवी, मंजू देवी सहित दर्जनों भोजनमाताऐं शामिल रही।

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