उम्र कैद व कैंसर से जूझते जूझते एक और मारुति मज़दूर साथी जियालाल नहीं रहे

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ज़ालिम व्यवस्था में ज़िंदगी चली गई, लेकिन जमानत भी नहीं मिली

मारुति सुजुकी मानेसर प्लांट में 18 जुलाई 2012 को हुई साजिशपूर्ण घटना के बाद से जेल की कालकोठरी में कैद और अन्यायपूर्ण सजा झेलते 13 मज़दूर साथियों में से एक और साथी जियालाल की दुखद मौत की ख़बर है। ज़िन्दगी-मौत से जूझते एक साथी पवन दहिया करंट लगने से फरवरी 2021 में हमारे बीच नहीं रहे थे, अब कैंसर की बीमारी के चलते साथी जियालाल 4 जून 2021 को रात 11 बजे इस दुनिया को छोड़ गए हैं ।

जियालाल ने 18 जुलाई 2012 को अपने सुपरवाईजर संग्राम किशोर द्वारा चाय ब्रेक के समय (जोकि सिर्फ 7 मिनट के लिये होता था) में फीडबैक न देकर कम्पनी के समय में देने की बात कही थी । इसी बात को मुद्दा बनाकर संग्राम किशोर ने उसे जाति सूचक गाली देकर कहा “कि साले चमार युनियन बनने से तुम्हारे भी भाव बढ़ गए हैं ” इसका विरोध करने पर उसे ससपेंड कर दिया गया और 18 जुलाई की घटना का मुख्य आरोपी बनाया गया।

12 युनियन पदाधिकारियों के साथ जिया लाल को भी 18 मार्च 2017 को गुरुग्राम सैशन कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई। पुलिस कस्टडी में जिया लाल को बेरहमी से मारा गया था। जब वह खाना खा रहे थे तब भी किसी पुलिस वाले ने उसे लात मारी जिससे रोटी का टुकड़ा भोजन नली में फंस गया और कई दिन परेशानी झेलनी पड़ी।

https://mehnatkash.in/2021/06/04/10-years-of-maruti-manesar-labor-movement-a-brilliant-example-of-struggle/

लम्बे समय तक सामाजिक प्रताड़ना का हुए शिकार

जिस तरीके से मीडिया ने जियालाल को मुख्य आरोपी बनाकर उसका दुष्प्रचार किया उसका दुष्परिणाम उसे व परिवार को झेलना पड़ा। समाज में हर कोई उसे 18 जुलाई की घटना का कारण मानते हुए हजारों लोगों की नोकरी खाने का ताना सुनाते। लम्बे समय तक जेल में भी उसे मानसिक यातनाएं झेलनी पड़ी। मारुति मजदूरों के परिजनों द्वारा भी कई बार ये बातें कही जाती रहीं।

प्रोविजनल कमेटी के लम्बे प्रचार के बाद लोगों को 18 जुलाई की असली घटना का पता चला। जिया लाल मेरी (रामनिवास) लाईन जोकि असेम्बली विभाग में ट्रिम 2 के नाम से जाना जाता है पर ही काम करता था । अटक कर बोलने वाले जियालाल पर भड़काऊ भाषण जैसे आरोप मढ़ कर उसे अवनीश देव की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई।

जिया लाल बेहद शांत व मजाकिया स्वभाव के मज़दूर नेता थे। सामाजिक व्यंग्यों को भी हंस कर बताते। खुद भी कह देते की कोई नहीं हम तो हैं ही छोटी जात। उसका वो जातिवाद का दर्द हंसीं में भी नज़र आ जाता। वे एक साधारण परिवार से आते हैं। उनके पिताजी का देहांत इसी वर्ष हो चुका था। वर्तमान में जिया लाल की पत्नी, 2 बेटे जोकि 9 साल व 2 साल के हैं, माँ और छोटा भाई व बहन हैं, जिनका दारोमदार भी उसी के ऊपर था। छोटा भाई भी शादीशुदा है लेकिन बेरोजगार है।

ज़िन्दगी-मौत के बीच जूझते साथी जिया लाल

अन्यायपूर्ण सजा झेलते मारुति के साथी जियालाल भी जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे । वे कैंसर के असाध्य रोग से पीड़ित हैं और फिलहाल पैरोल पर ही घर से इलाज करवा रहे थे।

कैंसर का चौथा स्टेज था और हालत बेहद नाजुक थी। लेकिन 9 साल बीत जाने के बावजूद उन्हें जमानत तक नहीं मिल सकी थी।

जियालाल को जेल के भीतर ही कैंसर हुआ था, लेकिन उनका इलाज ठीक से नहीं कराया गया। जब भी वो जेल की डिस्पेंसरी में जाते उन्हें दर्द निवारक दवाई देकर भेज दिया जाता। बड़ी मश्क्कत के बाद पी जी आई रोहतक से टेस्ट करवाया लेकिन रिपोर्ट लेने के लिए नहीं भेजा गया। गांव से उसके भाई ने जाकर रिपोर्ट मांगी तो उसे इन्कार कर दिया कि रिपोर्ट जेल अधिकारियों या कैदी को ही देंगे। बाद में कोरोना फैलाव के कारण जब जेल के तमाम कैदियों के साथ जियालाल को भी घर पैरोल पर भेजा गया और यहां बिगड़ी हुए स्वास्थ्य की स्थिति में उन्हें इलाज के लिए ले जाया गया तब पता चला कि कैंसर का चौथा स्टेज है।

मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन के सहयोग से उनका इलाज चल रहा था, लेकिन आज वो इससे भी मुक्त हो गए।

-साथी जिया लाल के सहकर्मी, प्रोविजनल कमेटी के कॉमरेड रामनिवास की टिप्पणी

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