बांग्लादेश में छात्रों का प्रदर्शन: 6 की मौत, करीब 400 छात्र घायल; स्कूल-कॉलेज अनिश्चितकालीन बंद

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बांग्लादेश में सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी के समर्थकों और सरकारी नौकरियों में कोटा प्रणाली को समाप्त करने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे लोगों के बीच झड़प में छह लोगों की मौत हो गई है और लगभग 400 छात्र-छात्राएं घायल हो गए हैं। 

ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, मरने वालों में से दो ढाका से हैं, जबकि अन्य चट्टोग्राम और रंगपुर से हैं।

यूनिवर्सिटी की छात्र-छात्राएं बीते कुछ दिनों से 1971 के मुक्ति युद्ध में लड़ने वाले सैनिकों के बच्चों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण का विरोध कर रहे थे।

1971 में पाकिस्तान से आज़ादी की जंग लड़ने वालों को यहां वॉर हीरो कहा जाता है। देश में एक तिहाई सरकारी नौकरियां इन वॉर हीरो के बच्चों के लिए आरक्षित हैं।

इसी के ख़िलाफ़ छात्र-छात्राएं बीते कुछ दिनों से रैलियां निकाल रहे थे। उनका कहना है कि आरक्षण की ये व्यवस्था भेदभावपूर्ण है, जिसकी जगह पर मैरिट के आधार पर नौकरी दी जानी चाहिए।

युवाओं में गुस्सा क्यों?

दुनिया भर में तेजी से घटते रोजगार के बीच बांग्लादेश में भी बेरोजगारी की विकट स्थिति है। वहीं बेहतर वेतन के कारण सरकारी नौकरी के प्रति युवाओं का आकर्षण है। लेकिन नौकरी में कटौती के बीच रोजगार के अवसर सीमित हो गए हैं।

ऐसे में युवाओं में गुस्सा लगातार बढ़ता रहा है। बांग्लादेश में कुल नौकरियों में आधी से अधिक किसी न किसी श्रेणी के तहत आरक्षित हैं। उसका भी लाभ सत्ताधारी पार्टी से जुड़े लोगों को मिलने की चर्चा रही है। ऐसे में छात्र-छात्राओं का आक्रोश फूट पड़ा और विरोध-प्रदर्शन तेज हो गए।

आलोचकों का कहना है कि इस आरक्षण व्यवस्था का लाभ उन लोगों को मिलता है, जो सरकार समर्थक गुटों से हैं और जो इस साल जनवरी में लगातार चौथी बार देश की प्रधानमंत्री बनी शेख़ हसीना के समर्थक हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, कोटा प्रणाली में 30% सरकारी पद स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों व पोते-पोतियों के लिए, 10% महिलाओं के लिए और 10% विशिष्ट जिलों के निवासियों के लिए आरक्षित हैं। जातीय अल्पसंख्यकों और विकलांग लोगों के लिए भी कोटा है लेकिन उन कोटों का विरोध नहीं हो रहा है।

विरोध-प्रदर्शनों के बीच आरक्षण व्यवस्था हुई थी खत्म

साल 2018 में विरोध प्रदर्शनों के बाद शेख़ हसीना सरकार ने आरक्षण व्यवस्था को ख़त्म कर दिया था।

लेकिन इस साल जून की शुरुआत में ढाका हाई कोर्ट ने अधिकारियों को आरक्षण व्यवस्था फिर से लागू करने का आदेश दिया, जिसके बाद एक बार फिर देश में इसे लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।

हालांकि एक हफ्ते पहले सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी में आरक्षण पर रोक लगा दी थी। लेकिन प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इसे लागू नहीं किया है। हसीना सरकार का कहना है कि ये फैसला हमारे हाथों में है।

पीएम हसीना के बयान से आक्रोश बढ़ा

कहा जा रहा है कि नौकरियों में आरक्षण के सवाल पर पीएम शेख हसीना के हालिया बयान और आरक्षण का विरोध करने वालों के लिए गलत शब्दों के इस्तेमाल से छात्रों में काफी नाराजगी है।

पीएम हसीना ने उस शब्द का इस्तेमाल किया जो, 1971 युद्ध में पाकिस्तानी सेना का साथ देने वालों के लिए होता है। छात्रों का कहना है कि किसी देश का नागरिक होकर अपने लिए ऐसे शब्दों का सुनना अनुचित है और हम उनके इस बयान और खास तौर पर उस शब्द का विरोध करते हैं।

रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि क्या स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चे और पोते होनहार नहीं हैं? क्या केवल रजाकारों के बच्चे और पोते ही होनहार हैं? पिछले कई सालों से हसीना की पार्टी अवामी लीग अक्सर अपनी सरकार के आलोचकों को रजाकार ही कहती रही है।

रजाकार साल 1971 में बनाया गया एक अर्धसैनिक बल था। जो पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के साथ में मिलकर काम करते थे। इसका उद्देश्य बांग्लादेश में चल रहे आज़ादी की लड़ाई को रोकना और पाकिस्तान को मदद पहुंचना था।

शेख हसीना की पार्टी द्वारा विपक्ष द्वारा बहिष्कृत चुनावों में चौथी बार सत्ता हासिल करने के बाद यह विरोध प्रदर्शन उनकी पहली चुनौती है।

स्कूल-कॉलेज बंद; विरोध-प्रदर्शन जारी

एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश की सरकार ने झड़पों के मद्देनजर देश भर में स्कूलों, मदरसों और अन्य शिक्षा संस्थानों को अनिश्चित काल के लिए बंद करने का आदेश दिया है।

हालांकि सोमवार (16 जुलाई) को बांग्लादेश के विश्वविद्यालय परिसरों में विरोध प्रदर्शन जारी रहा।

राजशाही, खुलना, मैमनसिंह और रंगपुर में सैकड़ों की संख्या में छात्र-छात्राएं सड़कों और रेलवे लाइनों पर एकत्रित हो गए, जिससे जाम की स्थिति बनी रही। इस विरोध प्रदर्शन में आरक्षण को खत्म करने और योग्यता के आधार पर सिविल सेवा में भर्तियों की मांग की गई है।

सत्तारूढ़ दल के छात्र संगठन का तांडव

प्रोथोम अलो की रिपोर्ट के तहत, 15 और 16 जुलाई की मध्यरात्रि को सत्तारूढ़ पार्टी की छात्र शाखा बांग्लादेश छात्र लीग (बीसीएल) के नेताओं ने विश्वविद्यालय परिसरों में लाठियों से लैस होकर तलाशी ली। बीसीएल के कई सदस्य जुलूस निकालने के लिए हॉकी स्टिक और पाइप के साथ ढाका विश्वविद्यालय परिसर में एकत्र हुए थे।

विश्वविद्यालय के एक घायल प्रदर्शनकारी छात्र ने एएफपी को बताया कि सत्तारूढ़ पार्टी के समर्थकों ने आरक्षण विरोधी प्रदर्शनकारियों पर हमला किया, जिसके बाद पुलिस ने उन पर रबर की गोलियां चलाईं।

बांग्लादेश के न्यूज आउटलेट ढाका ट्रिब्यून के मुताबिक देशभर की यूनिवर्सिटीज में स्टूडेंट्स पर पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और लाठियां बरसाईं, जिसमें दर्जनों लोग घायल हो गए।

हिंसा तब और ज्यादा भड़क गई जब मंगलवार को पुलिस की कार्रवाई के दौरान रंगपुर बेगम रोकेया यूनिवर्सिटी के एक 22 साल के छात्र अबू सईद की मौत हो गई। यूनिवर्सिटी के छात्रों का कहना है कि पुलिस ने उस पर गोली चलाई थी।

16 जुलाई की शाम डेली स्टार के एक संपादकीय में बांग्लादेश सरकार से बीसीएल सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई करने का आह्वान किया गया। बीसीएल के सदस्यों पर प्रदर्शनकारियों पर हमला करने का आरोप है।

संपादकीय में कहा गया है, ‘क्या हम यह मान लें कि हमारी सरकार बीसीएल के क्रोध के सामने असहाय है? या फिर ये मान लें कि बीसीएल अब प्रशासन का एक सशस्त्र अंग है?’

इस साल जनवरी में हुए आम चुनाव के बाद ये पहली बार है जब देश में इतने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो रहे हैं। इन प्रदर्शनों को 1971 में बांग्लादेश को आजादी दिलाने वाले लोगों के बच्चे भी शामिल हैं। ये वे लोग है जिन्हें हसीना का वोटर्स माना जाता है।

प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगे….

  1. आरक्षण 56% से घटाकर इसे 10% किया जाए।
  2. अगर कोई आरक्षित सीटों से योग्य उम्मीदवार नहीं मिलता है तो भर्ती मेरिट लिस्ट से कि जाए।
  3. सभी के लिए एक समान परीक्षा हो।
  4. सभी उम्मीदवारों के लिए उम्र सामान हो।
  5. कोई भी उम्मीदवार एक बार से ज्यादा बार आरक्षण का इस्तेमाल न करें।