बांग्लादेश: छात्र संगठनों का जोरदार प्रदर्शन; दमनकारी ‘डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट’ निरस्त करो!

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यह क़ानून लोगों की सुरक्षा छीन रहा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता और यहां तक कि जीवन की स्वतंत्रता का हनन किया जा रहा है।

ढाका (बांग्लादेश)। वाम छात्र संगठनों के ‘गोंतांत्रिक छात्र जोत’ ने शुक्रवार 7 अप्रैल को राजधानी ढाका में शाहबाग के राष्ट्रीय संग्रहालय के सामने एक सभा व रैली का आयोजन किया। जहां बांग्लादेश के दिग्गज लोगों ने ‘डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट’ को निरस्त करने की मांग की।

सभा में शिक्षकों, राजनेताओं, डॉक्टरों, पत्रकारों, शोधकर्ताओं और विभिन्न छात्र और सांस्कृतिक संगठनों ने भाग लिया। जनसभा में भाषणों के बीच ‘प्रोटेस्ट-गीत’ और ‘कविताएं’ सुनाई गईं।

प्रदर्शनकारियों ने कहा कि डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट का उद्देश्य शासक वर्ग की रक्षा करना था, न कि आम जनता की रक्षा करना, इसके परिणामस्वरूप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रतिबंधित कर दी गई। उन्होंने कहा कि इस क़ानून द्वारा नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है।

रैली में मांग की गई कि डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट को निरस्त किया जाना चाहिए। नौगांव ज़िले में रैपिड एक्शन बटालियन (आरएबी) की हिरासत में सुल्ताना जैस्मीन की मौत के मामले में न्यायिक जांच होनी चाहिए और मुकदमा चलाया जाना चाहिए। इसके अलावा डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट के तहत सभी मामलों को वापस लेना चाहिए और गिरफ्तार व्यक्तियों की रिहाई की मांग के लिए जन हस्ताक्षर संग्रह की शुरुआत की जानी चाहिए।

डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट लुटेरों के लिए दंड-मुक्ति क़ानून

अर्थशास्त्री अनु मुहम्मद ने अपने भाषण में कहा कि, “डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट की विभिन्न धाराओं में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कई मंत्रालयों, संसद सदस्यों, विकास परियोजनाओं, विभिन्न संस्थानों और विदेशी देशों के ख़िलाफ़ बात नहीं की जा सकती है, भले ही वे बांग्लादेश पर भयानक आक्रमण करते हों या खुद को विभिन्न हानिकारक समझौतों से बांधते हों। इसलिए, यह उन लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है जो बांग्लादेश के लोगों के दुश्मन हैं।”

उन्होंने कहा कि यह बांग्लादेश के गिरोहों और लुटेरों के लिए एक तरह का दंड-मुक्ति क़ानून है। उन्होंने कहा, “डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट ‘बलपूर्वक शासन’ के लिए एक तरह से सहायता है। इस तरह के क़ानून बदमाशों के गिरोह को बचाने के लिए बनाए जाते हैं।”

रद्द करने की मांग को लेकर सड़कों पर उतरना होगा

ढाका विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग के प्रोफेसर तंजिमुद्दीन खान ने कहा, “हम डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट के बारे में बात कर रहे हैं। नाम डिजिटल है, लेकिन यह भी पिछड़ा हुआ है। उस ‘डिजिटल’ के पीछे एक और प्रतिगामी क़ानून है, “आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम”, जिसे 1923 में पारित किया गया था। हमारे नायक, विश्वविद्यालय के शिक्षक, एक समाचार पत्र के डी-रजिस्ट्रेशन के लिए खड़े हुए। जिन्हें सिर्फ चुनाव नामांकन का इंतज़ार है।”

डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट की आलोचना करते हुए, खान ने कहा कि इस अधिनियम के माध्यम से “राज्य पर लोगों के स्वामित्व को खोने” की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। उन्होंने नागरिकों से इस क़ानून के ख़िलाफ़ एकजुट होने का आग्रह किया।

दैनिक समाकल के एडवाइज़री एडिटर, पत्रकार अबू सईद खान ने कहा, “यह क़ानून दूर-दूर तक लोगों को सुरक्षा प्रदान नहीं करता है; बल्कि यह लोगों की सुरक्षा छीन रहा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्रेस की स्वतंत्रता और यहां तक कि जीवन की स्वतंत्रता का हनन किया जा रहा है। मुश्ताक और जैस्मीन ने अपनी जान दे दी। रिपोर्टिंग एक लोकतांत्रिक अधिकार है।

“देश के इस हालात में जो भुखमरी की मार झेल रहे हैं वो दिहाड़ी मजदूर हैं। अहम सवाल यह है कि उनकी इस पीड़ा के ज़िम्मेदार, बैंकों को लूटने वाले, राज्य के संसाधनों को लूटने वाले, जनता का जीना दुश्वार करने वाले आज ज़िम्मेदार हैं या ख़बर फैलाने वाले ज़िम्मेदार हैं?

“हमें समझ नहीं आता कि शासकों की बदनामी किसमे होती है। राज्य को चलाने वालों की गलतियों, अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की आलोचना करना हमारा संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार है। डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट ने उस अधिकार को छीन लिया।”

उन्होंने इस क़ानून को रद्द करने की भी मांग करते हुए कहा, “इसे रद्द करने की मांग को लेकर सभी को सड़कों पर उतरना चाहिए।”

लेफ्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के कॉर्डिनेटर बजलुर रशीद फिरोज ने इस क़ानून को पूरी तरह निरस्त करने की मांग की है। उन्होंने कहा, ”बोलने की आज़ादी, प्रेस की आज़ादी और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले लोगों ने शुरुआत में डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट का विरोध किया था। लेकिन सरकार ने इसे हठपूर्वक लागू कर दिया। इस क़ानून के तहत सरकार के मंत्रियों और संसद सदस्यों की आलोचना पर भी मुकदमा चलाया गया है। ज़्यादातर मामलों में, वादी सत्ताधारी दल के नेता और कार्यकर्ता होते हैं।”

दमनकारी क़ानून में सुधार नहीं बल्कि तुरंत रद्द करो!

लेखक और शोधकर्ता महा मिर्ज़ा ने कहा, “डिजिटल सिक्योरिटी एक्ट एक अजीब क़ानून है जिसमें ज़्यादातर मामले आधी रात में दर्ज किए जाते हैं।” इस संदर्भ में उन्होंने ‘द डेली प्रोथोम अलो’ के पत्रकार शमसुज्जमां के ख़िलाफ़ दर्ज मामले का ज़िक्र किया।

मिर्ज़ा कहते हैं, “वे चोरी, लूट और अत्याचार कर सकते हैं, लेकिन यह कहा नहीं जा सकता। भोजन की पीड़ा की बात करना भी एंटी-लिबरल है! इस दमनकारी क़ानून में सुधार नहीं किया जाना चाहिए; बल्कि इसे तुरंत रद्द किया जाना चाहिए। इस क़ानून के तहत जिन लोगों को जेल में प्रताड़ना दी जा रही है, उन्हें तुरंत रिहा किया जाना चाहिए।”

पिछले साल दिसंबर में वाम छात्र संगठन के गोंतांत्रिक छात्र जोत की शुरुआत हुई। इस गठबंधन में भाग लेने वाले छात्र संगठनों में बांग्लादेश स्टूडेंट यूनियन, समाजतांत्रिक स्टूडेंट फ्रंट (BASD), समाजतांत्रिक स्टूडेंट फ्रंट (Marxist), रिवोल्यूशनरी स्टूडेंट अलायंस, डेमोक्रेटिक स्टूडेंट काउंसिल, स्टूडेंट फेडरेशन (नेशनल मुक्ति काउंसिल), रिवोल्यूशनरी स्टूडेंट-यूथ मूवमेंट और ग्रेटर चिट्टगोंग हिल स्टूडेंट काउंसिल शामिल थे।

साभार: न्यूज क्लिक