कोविड की बांग्लादेश और दक्षिण एशिया मुफ्त जांच

A woman reacts to a swab test during lockdown to control the spread of the new coronavirus in Ahmedabad, India, Friday, April 10, 2020. The new coronavirus causes mild or moderate symptoms for most people, but for some, especially older adults and people with existing health problems, it can cause more severe illness or death. (AP Photo/Ajit Solanki)
भारत में सबसे महंगी जांचे
गोवा में रहने वाली 32 साल की आर्किटेक्ट तन्वी चौधरी को डर है कि जल्द ही या आने वाले कुछ महीनों में वह खुद या उनके परिचित कोविड-19 से संक्रमित हो जाएंगे. उनकी 56 वर्षीय मां गुजरात में रहती हैं जहां इस प्रकोप की मृत्यु दर बहुत ज्यादा है. चौधरी को इस बात का डर है कि संक्रमित हो जाने की स्थिति में वह या उनकी मां कहां जाएंगी. लेकिन उनकी सबसे बड़ी चिंता निजी क्लिनिक में परीक्षण और इलाज कराने की है. “मैं एक फ्रीलांसर हूं और मुझे चिंता होती है क्योंकि परीक्षण की कीमत बहुत अधिक है,” उन्होंने मुझे बताया. “फिर इलाज का खर्च भी है. मैं सुनती हूं कि दूसरे देश मुफ्त में ऐसा कर रहे हैं और सोच रही हूं कि भारत में ऐसा क्यों नहीं है.”
यह सवाल निराधार नहीं है. भारत में सरकारी अस्पतालों से इतर परीक्षण कराना बेहद महंगा है क्योंकि भारत सरकार ने निजी क्षेत्र को प्रति परीक्षण 4500 रुपए तक शुल्क वसूलने की अनुमति दी है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, इस राशि में “संदिग्ध मामलों के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट के रूप में प्रति परीक्षण 1500 रुपए और पुष्टिकरण परीक्षण के लिए अतिरिक्त 3000 रुपए शामिल हो सकता है.” जारी दिशानिर्देश इन परीक्षणों की उस वास्तविक लागत का खुलासा नहीं करते जिसे निजी क्लीनिक भुगतान करेंगे. दूसरी ओर भारत के अन्य पड़ोसी देशों ने सुनिश्चित किया है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के दौरान परीक्षण मुफ्त या न्यूनतम लागत पर उपलब्ध हो.
चौधरी को यह भी पता चला कि यह परीक्षण तीन बार करना पड़ता है. छत्तीसगढ़ में जन स्वास्थ्य सहयोग द्वारा संचालित ग्रामीण अस्पताल में कार्यरत डॉ. नमन शाह ने बताया, “दुनिया भर में अधिकांश परीक्षण रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस पोलीमरेज चेन रिएक्शन या आरटी-पीसीआर नामक तकनीक का उपयोग करते हैं, जो बलगम के नमूनों से कोरोनोवायरस का पता लगाती है. रोगी को दूसरे परीक्षण की आवश्यकता हो सकती है क्योंकि प्रारंभिक परीक्षण सटीक नहीं हो सकता क्योंकि वायरस का पता लगाने के लिए बलगम के नमूने में उपलब्ध वायरल सामग्री की मात्रा परीक्षणों के लिए बहुत कम हो सकती है. हर अगले परीक्षण में थोड़ी अधिक जानकारी मिलती है लेकिन इसमें अच्छी खासी लागतें जुड़ी होती हैं. अस्पताल से छुट्टी देने से पहले रोगी नकारात्मक है या नहीं यह जांचने के लिए कई अस्पताल तीसरी बार परीक्षण करते हैं. हालांकि, इसकी जरूरत नहीं है.”
नतीजतन, किसी मरीज को तीन परीक्षण कराने के लिए निजी अस्पताल मजबूर कर सकते हैं. चौधरी ने मुझे बताया, “उपचार लागत परीक्षण लागत से अधिक होगी. प्रति व्यक्ति 13500 रुपए में तीन चरणों की परीक्षण दरें मेरे लिए एक बड़ी चिंता का विषय है.”भारत के गरीब पड़ोसी देश बांग्लादेश में यह स्थिति एकदम उलट है. यहां परीक्षण के साथ-साथ उपचार भी मुफ्त है. ढाका में बांग्लादेश इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी, डिजीज कंट्रोल एंड रिसर्च के निदेशक मीरजादी सबरीना फ्लोरा ने बताया, “हम परीक्षण और उपचार मुफ्त में करते हैं. यह सुनिश्चित करना बहुत महत्वपूर्ण है कि गरीब नागरिक स्वयं का परीक्षण करने में सक्षम हों. परीक्षण और उपचार दोनों को मुफ्त में उपलब्ध कराने का यही एकमात्र तरीका हो सकता है.”
बांग्लादेश सरकार के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के प्रमुख अबुल कलाम आजाद ने पुष्टि की कि देश में परीक्षण मुफ्त हैं. आजाद ने कहा, “हमारी सरकार की नीति यह है कि अमीर या गरीब जो कोई भी कोविड-19 से संक्रमित है, वह सरकारी रोगी है. हम उनकी मुफ्त में देखभाल करेंगे. हमारी प्राथमिकता सभी की जांच करना है और इस बात को सुनिश्चित करने के लिए हमने निजी प्रयोगशालाओं को इस शर्त के साथ मुफ्त में पीसीआर परीक्षण दिए किए हैं कि वे रोगियों से शुल्क नहीं वसूलेंगे. हम निजी क्षेत्र को मामूली शुल्क पर एंटीबॉडी परीक्षण करने की अनुमति दे रहे हैं लेकिन यह अत्यधिक विनियमित है. हम प्रयोगशालाओं (लैबों) से सभी विवरणों की मांग करते हैं.”
श्रीलंका में कोविड-19 परीक्षण नीति भारत की तरह ही है. सार्वजनिक क्लीनिकों में परीक्षण निशुल्क हैं और निजी परीक्षण सरकार द्वारा तय मूल्य पर होता है. यहां निजी परीक्षणों की लागत पर निर्धारित कैप (अधिकत्म फीस) भारत से लगभग आधी है. श्रीलंका में स्वास्थ्य और सामाजिक नीतियों के मुद्दों पर काम करने वाली एक गैर-लाभकारी संस्था “स्वास्थ्य नीति संस्थान” के कार्यकारी निदेशक रविंद्र रन्नन-एलिया ने ईमेल में मुझे बताया, ”सार्वजनिक क्षेत्र में सभी कोविड परीक्षण रोगियों के लिए 100 प्रतिशत मुफ्त हैं और अब तक के सभी परीक्षण सार्वजनिक क्षेत्र में हुए हैं. निजी प्रयोगशालाओं को परीक्षण करने की अनुमति है लेकिन एक मूल्य तय है. यह 6000 श्री लंकाई रुपए के आसपास है.” यह लगभग 2400 भारतीय रुपए के बराबर है. निजी प्रयोगशालाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ”मैं समझता हूं कि किसी ने वास्तव में ऐसा करना शुरू नहीं किया है. और वे सभी सार्वजनिक क्षेत्र में परीक्षण के लिए भेज देते हैं.”
23 अप्रैल तक श्रीलंका ने 330 पुष्ट मामलों और 7 मौतों की सूचना दी थी. “सरकार ने लगभग 40 प्रमुख सार्वजनिक अस्पतालों में सभी परीक्षण को केंद्रीकृत किया है जो श्रीलंका की अच्छी तरह से स्थापित सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का हिस्सा हैं. यह देश के अधिकांश लोगों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करती है,” देश के एक विज्ञान लेखक नालका गनवर्दाने ने एक ईमेल के जवाब में मुझे लिखा. उन्होंने कहा, “निजी स्वास्थ्य सेवा उन लोगों के लिए उपलब्ध है जो इसके लिए भुगतान करना चाहते हैं और भुगतान करने में सक्षम हैं. कोविड-19 परीक्षण बिना किसी शुल्क पर किए जा रहे हैं. जिन लोगों का परीक्षण सकारात्मक है उन सभी को अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय संक्रामक रोग संस्थान (आईडीएच) में भर्ती कराया जाता है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का हिस्सा है और जहां इलाज मुफ्त है. निजी अस्पतालों में कोविड-19 के लिए उपचार की अनुमति नहीं है.”भारत में 4500 रुपए की लागत आबादी के एक बड़े हिस्से को स्वास्थ्य सुविधा से वंचित करती है. स्वास्थ्य क्षेत्र पर नजर रखने वाली संस्था ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की सह-संयोजक मालिनी आयसोला के अनुसार, कम लागत वाली कोविड-19 परीक्षण सभी के लिए उपलब्ध होना, “न केवल एक साध्य और आवश्यक लक्ष्य है, बल्कि यही सबसे सही तरीका है.”
8 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका को मंजूरी दी थी जिसने आईसीएमआर के प्राइस कैप को चुनौती दी गई थी और आदेश दिया कि परीक्षण सरकारी और निजी दोनों ही प्रयोगशालाओं में मुफ्त होना चाहिए. लेकिन चार दिन बाद अदालत से अपने आदेश को संशोधित करने की मांग वाले एक हस्तक्षेप आवेदन पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि निशुल्क परीक्षण केवल केंद्र सरकार के आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थियों तक सीमित होगा. कोर्ट की कार्यवाही में आईसीएमआर में सहायक महानिदेशक आर. लक्ष्मीनारायणन ने एक हलफनामा पेश किया जिसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार द्वारा लिए गए नीतिगत फैसले में अदालत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. इसके एकदम उलट अपने दिशानिर्देशों में प्राइस कैप की घोषणा करते हुए, आईसीएमआर ने कीमतों को अलग-अलग मद में सूचीबद्ध करने के बाद कहा था कि यह “राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की इस घड़ी में मुफ्त या रियायती परीक्षण को प्रोत्साहित करता है.”
प्रेस सूचना ब्यूरो की एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, 30 जनवरी 2020 तक आयुष्मान भारत योजना के तहत कुल 7986811 मरीज अस्पताल में भर्ती थे, जो भारत की जनसंख्या का एक प्रतिशत भी नहीं है. योजना की आधिकारिक वेबसाइट का दावा है कि इसमें लगभग 50 करोड़ लाभार्थी शामिल हैं. जाहिर है आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थियों के लिए निशुल्क निजी परीक्षण तक सीमित करना अधिकांश भारतीयों को इससे बाहर कर देता है. इस स्थिति में जबकि सरकारी केंद्र अधिक रोगियों को भर्ती करने में असमर्थ हैं, केंद्रीय बीमा योजना के तहत कवर नहीं हुए लोग या तो चिकित्सा सहायता न मिल पाने के खतरे का सामना कर रहे हैं या या निजी चिकित्सा सुविधाओं पर निर्भर होने और भुगतान करने के लिए मजबूर होंगे. यह स्थिति चौधरी जैसे कई लोगों को परेशान करती है.
वाणिज्य मंत्रालय द्वारा स्थापित ट्रस्ट, इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन, द्वारा 2019 के अनुमान के अनुसार, देश के कुल स्वास्थ्य खर्च में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 74 प्रतिशत है. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लक्ष्मीनारायण के हलफनामे में, आईसीएमआर ने कहा था कि 9 अप्रैल तक सरकारी प्रयोगशालाओं ने कोविड-19 परीक्षणों का 87.28 प्रतिशत किया है और केवल 12.72 प्रतिशत या 18574 परीक्षण निजी क्लीनिकों में हुए हैं. वॉशिंगटन स्थित एक सार्वजनिक-स्वास्थ्य अनुसंधान संगठन सेंटर फॉर डिसीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी द्वारा 24 मार्च को जारी एक गणितीय मॉडल के अनुसार, संक्रमण के अपने चरम पर होने की स्थिति में भारत को अनुमानित 10 लाख वेंटिलेटर की आवश्यकता होगी और इस चरम बिंदु पर 10 कोरोड़ भारतीय संक्रमित हो सकते हैं. 10 लाख लोगों के भर्ती होने की स्थिति में कम से कम इसका 25 प्रतिशत हिस्सा निजी परीक्षण कराएगा तो भी प्रति व्यक्ति 13500 रुपए के हिसाब से निजी स्वास्थ्य क्षेत्र को 337.5 करोड़ रुपए का कारोबार मिलेगा.
इस संदर्भ में यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि निजी क्लीनिकों में परीक्षणों के लिए 4500 रुपए के कैप को तय करने से पहले आईसीएमआर ने निजी क्षेत्र से परामर्श किया था. भारत की प्रमुख बायोफर्मासिटिकल कंपनी, बायोकॉन लिमिटेड की चेयरपर्सन और मैनेजिंग डायरेक्टर किरण मजूमदार-शॉ ने कोविड-19 के प्रकोप के बाद मूल्य निर्धारण के बारे में आईसीएमआर को भी सलाह दी थी और सोशल मीडिया पर और प्रेस को दिए इंटरव्यू में शुल्क निर्धारण का बार-बार बचाव किया था. सीएनबीसी-टीवी18 के साथ एक इंटरव्यू में मजूमदार-शॉ ने बताया कि वह आईसीएमआर के साथ परामर्श में “शामिल” थीं और ”प्रक्रिया के बतौर यह एक बहुत ही मजबूत सार्वजनिक-निजी साझेदारी है.”
रिपब्लिक टीवी के एक अन्य इंटरव्यू में अर्णव गोस्वामी ने मजूमदार-शॉ से पूछा, “आपने निजी लैबों के काम के मानक तय करने वाली सरकारी समिति की अध्यक्षता की है.” मजूमदार-शॉ ने कहा “हां” की है. इसके बाद अपने ट्वीटों में मजूमदार-शॉ ने समिति में होने की बात से इनकार किया और बताया कि वह बस “लैबों के साथ समन्वय कर रहीं थीं.” जब मैंने इस बारे में मजूमदार-शॉ को ईमेल किया था तो बायोकॉन की वरिष्ठ वाइस प्रैसिडेंट सीमा आहूजा ने उनकी ओर से कहा, “इसका क्या आधार है?” आगे उन्होंने लिखा कि मजूमदार-शॉ इस पर आगे बात नहीं करना चाहती.”
मजूमदार-शॉ ने ट्विटर में यह भी कहा था कि “सरकार ने कीमत तय करने में पूरी निष्पक्षता और पारदर्शिता दिखाई है और निजी लैबों ने बिना विरोध किए इसे स्वीकार किया है.” इस दावे के बावजूद आईसीएमआर ने सुप्रीम कोर्ट को दिए अपने हलफनामे में नहीं बताया कि इस कीमत को तय करने का आधार क्या था. उस हलफनामे के अनुसार, आईसीएमआर ने मूल्य तय करने से पहले देश के शीर्ष विज्ञानिकों वाली राष्ट्रीय कार्यबल से परामर्श किया था. मैंने अपने पिछली रिपोर्ट में बताया था कि कार्यबल के सदस्यों ने कहना था कि कीमत तय करने के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई थी. हमारे पास निजी क्षेत्र वाली (मजूमदार-शॉ) समिति के बारे में बहुत कम जानकारी है. हमें नहीं पता कि इससे कितनी बार बैठक की, इसका एजेंडा क्या था और इसकी बैठक के मिनट्स कहां हैं.
आईसीएमआर ने अपने हलफनामे में जांच की दर का आधार विशेष प्रकार की किटों की कीमतों के आधार पर तय करना बताया है, जिसमें स्वाब, डिस्पोजेबल टंग डिप्रेसर, वाइरल आरएनए एक्सट्रैक्शन किट, प्राइमर प्रोब्स, एंजाइम +बफर+एनएफ वॉटर, पीपीई किट आदि को ध्यान में रखा गया है.” हलफनामे के मुताबिक स्क्रीनिंग की कीमत 1500 रुपए और कॉन्फरमेटिव जांचों की कीमत 3000 रुपए है.” इस बीच मजूमदार-शॉ ने अपने एक ट्वीट में इसका अलग तरह का ब्रेकडाउन दिया : वाइरल एक्सट्रैक्शन किट प्लस पीपीई 1600 रुपए और लैब कंज्यूमेबल 1400 रुपए, कोल्ड चैन लॉजिस्टिक फॉर सैंपल कलेक्शन प्लस टेक्नीशियन 1500 रुपए.”
राज्यों ने अधिकतम कीमत को आईसीएमआर की दरों से कम रखा है. कर्नाटक सरकार ने निजी क्षेत्र को स्वास्थ्य उपचार सस्ता रखने के लिए मजबूर किया है. 17 अप्रैल को राज्य सरकार ने जांच की कीमत को 2250 निर्धारित किया जो आईसीएमआर की तय कीमत से आधी है. कर्नाटक सरकार के इस निर्णय के बाद एआईडीएएन ने केंद्र सरकार से यह सुनिश्चित करने की मांग की कि खरीद का भार परिवारों पर ना पड़े “महामारी को नियंत्रण करने के लिए सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह इसे निशुल्क उपलब्ध कराए.” एआईडीएएन ने कहा है, “कर्नाटक सरकार का 2250 रुपए निर्धारित करना यह दिखाता है कि आईसीएमआर द्वारा तय कीमत बहुत ज्यादा है. हमें सुप्रीम कोर्ट में आईसीएमआर के यू-टर्न से हैरानी हुई है क्योंकि पहले उसने अपील की थी कि टेस्ट निशुल्क किए जाएं.”
एआईडीएएन के वक्तव्य में आगे लिखा है, “आईसीएमआर ने अदालत में कम संसाधनों के अधिकतम दोहन का हवाला दिया है. हमारी चिंता है कि सरकार इसका एकदम उलटा कर रही है. वह टेस्टिंग की असली कीमत नहीं बता रही है और निजी लैबों में महंगी जांच को प्रोत्साहन दे रही है. हम सरकार से अपने रुख पर पुनर्विचार करने की अपील करते हैं और कोविड-19 टेस्ट को पॉइंट ऑफ सर्विस में निशुल्क कराने की मांग करते हैं. परिपूर्ति दरें तार्किक मूल्यांकन के आधार पर होनी चाहिए और इसमें बाजार मिल रहीं 500 रुपए की टेस्ट किटों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए.”
मजूमदार-शॉ ने ट्विटर पर बार-बार, आईसीएमआर द्वारा तय कीमत से सस्ते विकल्प की संभावना से इनकार किया है. आहूजा ने इस संबंध में जबाव में मुझे लिखा था, “इस वक्तव्य का क्या आधार है?” 16 अप्रैल को जब एक यूजर ने उनसे पूछा कि 500 से 9 गुना अधिक 4500 रुपए में टेस्ट क्यों होनी चाहिए तो मजूमदार-शॉ ने ट्वीट किया, “किसी ऐसे पीसीआर टेस्ट के बारे में बताइए जो 500 रुपए में होती हो. आप सरासर झूठ बोल रहे हो.”
एआईडीएएन ने बताया है कि चेन्नई की मेडिकल प्रौद्योगिकी कंपनी ट्रायविट्रोन हेल्थकेयर ने 500 रुपए की लगात वाली आरसी-पीसीआर किट तैयार कर ली है. ट्रायविट्रोन के संस्थापक, चेयरमैन और प्रबंध निदेशक जीएसके वेलू ने मुझे बताया कि मास उत्पादन या बड़े पैमाने पर उत्पादन का लाभ उठाते हुए सस्ती जांच किट का उत्पादन संभव हो पाया है. जबकि उनके प्रतिस्पर्धियों का कहना है कि घाटा उठाए बिना 4500 रुपए से कम में टेस्ट किट नहीं बनाई जा सकती, वेलू ने मुझे कहा, “सभी को सोचने की आजादी है. हमें लगता है कि सस्ता होना जरूरी है क्योंकि लोगों को अपनी जेब से चुकाना पड़ रहा है. संकट के समय सरकार और निजी संस्थाओं को एक जैसा सोचना चाहिए.”
वेलू ने बताया कि सस्ती जांच किटों से उनकी कंपनी को भी घाटा होगा. “यह सही है कि हमारा राजस्व घट कर 10-20 प्रतिशत रह गया है लेकिन यह तो सभी उद्योगों के साथ हो रहा है.” सभी को इसमें अपनी ओर से योगदान करना चाहिए ना कि हर चीज के लिए सरकार का मुहं ताकना चाहिए. यह अभूतपूर्व समय है और हमें देश की सेवा के लिए व्यावहारिक समाधान तलाशने के लिए नई सोच की जरूरत है. हमें इसे अपनी कॉरपोरेट जिम्मेदारी समझते हैं और और कोविड जांच किट को कम से कम रख कर हमें भारत में टेस्ट संख्या को बढ़ाने में अपनी ओर से छोटा योगदान कर रहे हैं.
वेलू ने मुझे बताया कि ट्रायविट्रॉन की टेस्टिंग किट को भारत सरकार ने मंजूरी दे दी है और वह 3 मई तक बाजार में आ जाएगी. भारत, जिसे दुनिया भर में सस्ती दवा बना सकने की उसकी क्षमता के लिए जाना जाता है, वह अपने नागरिकों को महामारी के प्रकोप के बीच उपचार से वंचित कर रहा है. जांच की कीमत को 4500 रुपए तय कर और सुप्रीम कोर्ट में इस कीमत का बचाब कर सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से हाथ खड़े कर लिए हैं. सरकार के इस फैसले से व्यक्तिगत ही नहीं बल्कि लोक स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचेगा.
कारवां से साभार