किसान हक़ की आवाज़ के साथ बाबा रामसिंह ने की खुदकुशी

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क्या संवेदनहीन मोदी जमात के लिए इसका कोई मोल होगा?

कॉरपोरेटपरस्त कृषि कानूनों के विरोध में राजधानी दिल्ली और इसकी सरहदों पर जारी आन्दोलन के 21वें दिन उत्साह के बीच उस वक़्त मातम छा गया, जब किसान आंदोलन के समर्थन में संत बाबा रामसिंह ने खुदकुशी कर ली। उन्होंने अपने सुसाइड नोट में लिखा है- “दिल बहुत दुखी हुआ, सरकार न्याय नहीं दे रही,  यह जुल्म है, जुल्म करना पाप है, जुल्म  सहना भी पाप है।

हालाँकि हक़ के आन्दोलन में अपनी इहलीला समाप्त करना जायज रास्ता तो नहीं है। लेकिन इस मार्मिक घटना से उस भावनात्मक तार को समझा जा सकता है, जो किसान विरोधी कानूनों ने पैदा किया है और उसे जनांदोलन बना दिया है। इससे उस आहत मन को समझा जा सकता है, जो सरकार की हठधर्मिता से बुरी तरह आहत हुआ है और घायल है।

लेकिन संवेदनहीन मोदी सरकार और उसकी पिट्ठू मिडिया के लिए इस मौत का कोई मायने नहीं है। वह अपने पूँजीवादी आकाओं के हित में जनभावनाओं के विपरीत पाकिस्तान, खालिस्तान, अलागावावादी, माओवादी, तुकडे-तुकडे गैंग, पैसा कहाँ से आ रहा है आदि दुष्प्रचारों से दिग्भ्रमित करने और आन्दोलन को तोड़ने के कुप्रयासों में जुटी है।

कौन थे बाबा रामसिंह?

पैंसठ वर्ष के संत राम सिंह नानकसर सिंगरा, पंजाब के रहने वाले थे। 16 दिसंबर को उन्होंने दिल्ली-हरियाणा स्थित सिंघु बॉर्डर पर खुद को गोली मार ली। घायल अवस्था में जब उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उनकी मौत हो गई।

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65-वर्षीय बाबा राम सिंह कुंडली में दिल्ली-सोनीपत सीमा पर थे, जहाँ वह बीती शाम पहुंचे। यह क्षेत्र किसानों के विरोध प्रदर्शन के केंद्र सिंघु सीमा से दो किमी दूर है। हरियाणा पंजाब और विश्व भर में संत बाबा राम सिंह को सिंगड़ा वाले संत के नाम से जाना जाता था। वे सिंगड़ा वाले डेरे के अलावा विश्वभर में प्रवचन करने के लिए जाते थे। हरियाणा और पंजाब में ही नहीं, दुनियाभर में लाखों की संख्या में अनुयायी हैं। वे सिखों की नानकसर संप्रदाय से जुड़े हुए थे।

करनाल के बाबा रामसिंह का मार्मिक सुसाइड नोट-

उनका दिल दहलाने वाला एक सुसाइड नोट भी सामने आया है। उन्होंने किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए उनके हक के लिए आवाज बुलंद की है। बाबा राम सिंह किसान थे और हरियाणा एसजीपीसी के नेता थे।

The farmer who shot himself on the horoscope border broke in Panipat | संत राम  सिंह ने किसान आंदोलन के समर्थन में खुदकुशी की, सुसाइड नोट में लिखा- यह  जुल्म के खिलाफ

उन्होंने पंजाबी भाषा में अपना सुसाइड नोट लिखा है, “अपने किसान भाईयों को देखा जो अपने हक के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। बहुत दुख है, सरकार इंसाफ नहीं दे रही, जो कि जुल्म है और जुल्म करना पाप है, तो जुल्म सहना भी पाप है।”

उन्होंने आगे लिखा, “इस लड़ाई में किसानों हक के लिए कितने लोगों ने क्या कुछ नहीं किया। कई लोगों ने अपने सम्मान और पुरस्कार वापस किए, इसलिए मैं किसानों के हक के लिए और सरकार के खिलाफ आत्महत्या कर रहा हूं।”

अपना सुसाइड नोट खत्म करते हुए बाबा राम सिंह ने लिखा, “वाहेगुरू जी का खालसा, वाहे गुरू जी की फतेह।”

https://mehnatkash.in/2020/12/16/farmer-movement-increased-panic-among-the-government-and-reliance/

दुर्घटना में दो और किसानों की मौत, कई घायल

इससे पहले, दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर धरना देकर ट्रैक्टर से पटियाला लौट रहे पंजाब के दो किसानों की हरियाणा के करनाल जिले में एक ट्रक की चपेट में आने से मंगलवार की सुबह मौत हो गई। पुलिस ने बताया था कि तरौरी फ्लाईओवर पर हुई इस घटना में एक अन्य किसान को भी गंभीर चोटें आई हैं, जबकि कुछ और लोगों को मामूली चोटें लगी हैं।

इससे पूर्व आन्दोलन के विगत 20 दिनों में 20 किसानों की अलग-अलग- कारणों से मौतें हो चुकी हैं। जिनकी श्रद्धांजलि के रूप में 20 दिसंबर को शोक भी मानाने का निर्णय है।

https://mehnatkash.in/2020/12/15/new-agricultural-laws-are-against-the-working-people/

चलो दिलों में घाव लेके भी चले चलो!

भले ही किसानों का जत्था 26 नवंबर को दिल्ली की तरफ कूच किया लेकिन पंजाब और हरियाणा के विभिन्न हिस्सों में किसानों का यह आंदोलन सितंबर महीने से ही चल रहा है। किसानों का कहना है कि किसानों की मौतों के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है, क्योंकि सरकार के ‘काले कानूनों’ के खिलाफ ही किसान जबरदस्त ठंड व कोरोना के प्रकोप के बीच आंदोलन करने को मजबूर हैं।

ठण्ड की मार, पैरों में छाले और दिलों में घाव लेकर किसान अडिग विश्वास के साथ जंग के मैदान में डटे हुए हैं। उनके साथ महिलाऐं हैं, बच्चे और नौजवान हैं। सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक, वकील, संवेदनशील नागरिक हैं। मेहनतकश मज़दूर हैं। लंगर चलाते-खिलाते लोग हैं। बीमारों के लिए डॉक्टर और तीमारदारी करने वाले हैं। आन्दोलन स्थल पूरे-पूरे विशाल गाँवों में तब्दील हो चुके हैं।

भाजपा जमात के दुष्प्रचार और आन्दोलन तोड़ने की तमाम कोशिशें अबतक नाकामयाब रही हैं।

प्रकृति व सत्ता कि निर्ममता से जूझते हुए संघर्ष लगातार आगे बढ़ रहा है।

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