अरुणाचल प्रदेश : मछली पकड़कर लौट रहे दो युवकों को सेना ने गोली मारकर किया घायल

क्या यह महज संयोग है कि यह ताजा घटना उत्तरपूर्व के कुछ हिस्सों से आफस्पा हटाए जाने संबंधी केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से अधिसूचना जारी होने के दो दिन बाद हुई है?
नागालैंड के मोन जिला के ओटिंग गांव में 14 निर्दोष मज़दूरों की हत्या के बाद एक अन्य मामले में एक अप्रैल की शाम को असम राइफल्स के जवान की गोलीबारी में अरुणाचल प्रदेश के तिरप जिले में दो युवक घायल हो गए। यह जिला विशेष रूप से सशस्त्रबल (विशेष अधिकार) अधिनियम (आफस्पा) के तहत आता है।
क्या यह महज संयोग है कि यह ताजा घटना उत्तरपूर्व के कुछ हिस्सों से आफस्पा हटाए जाने को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से जारी अधिसूचना के दो दिन बाद हुई है। जिसके तहत असम के कुछ बड़े हिस्सों को छोड़कर मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश का अधिकांश हिस्सा आफस्पा के तहत रहेगा।
क्या है ताजा घटना?
स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, असम राइफल्स के जवानों की गोलीबारी में तिरप जिले के सासा गांव के दो युवक घायल हो गए। असम राइफल्स के जवान ने मछली पकड़ने के बाद अपने घर लौट रहे इन युवकों पर गोली चला दी थी। जिन्हें जवानों ने आतंकी समझना बता दिया।
रिपोर्ट में कहा गया कि असम राइफल्स के एक वरिष्ठ रैंक के अधिकारी ने स्वीकार किया कि यह घटना उनकी गलत पहचान की वजह से हुई और उन्होंने घायलों के इलाज की जिम्मेदारी ली।
इन घायल युवकों का फिलहाल एक स्थानीय अस्पताल में इलाज चल रहा है लेकिन असम राइफल्स कह रहा है कि युवकों को बेहतर इलाज के लिए असम के जोरहाट ले जाया जाएगा।
ग्रामीणों ने जताया आक्रोश, मुआवजे की माँग
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, घायलों के साथ अस्पताल पहुंचे ग्रामीणों ने घटना पर विरोध जताया और कहा कि सेना के जवानों की गलती के कारण यह हादसा हुआ है। दोनों युवक अनाथ हैं और अब गोली लगने से जख्मी हो गए हैं।
ग्रामीणों ने माँग की कि सरकार को दोनों घायल युवकों को मुआवजा देने के साथ अन्य आवश्यक सहायता मुहैया करानी चाहिए। इससे दोनों युवकों को पूरी तरह ठीक होने तक अपने उपचार और खाने-पीने का प्रबंध करने में मदद मिलेगी।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने आफस्पा घटाने की जारी की थी अधिसूचना
मालूम हो कि यह घटना केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के उस ट्वीट के बाद हुई है, जिसमें उन्होंने बताया था कि सरकार आफस्पा के तहत आने वाले इलाकों की संख्या घटा रही है।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय की ओर से 31 मार्च को जारी अधिसूचना के मुताबिक, अरुणाचल प्रदेश के तीन जिलों में आफस्पा को अन्य छह महीनों (एक अप्रैल से 30 सितंबर) के लिए बढ़ाया गया है। इनमें तिरप जिला भी है, जहां यह घटना हुई।
31 मार्च की अधिसूचना सरकार द्वारा नियुक्त समिति द्वारा ओटिंग घटना के बाद उत्तरपूर्व में सुरक्षा स्थिति की समीक्षा के बाद आई है।
नागालैंड में 14 मज़दूरों की हुई थी हत्या
इस मामले ने दिसंबर 2021 की उस घटना की याद दिला दी, जब सुरक्षाबालों ने नागालैंड के मोन जिला के ओटिंग गांव में आर्मी के सुरक्षा बलों ने कोयले खदान से काम कर लौट रहे छः मजदूरों की तथा आठ और आम जनता की हत्या गोली मार कर कर दी थी।
ओटिंग घटना के बाद जनविद्रोह हुआ, आंदोलन तेज हो गया और पूरे नागालैंड में और मणिपुर, मिजोरम और पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों में कई सारे विरोध प्रदर्शन हुए जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया। इसके साथ ही कई राजनीतिक दलों एवम मुख्य नेताओं ने उग्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर आर्म फोर्स के द्वारा की जा रही हत्याओं की भ्रत्सना की और इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में सुरक्षा के नाम पर राखी गई सेना को कम करने की मांग की थी।
इसी के साथ आफस्पा कानून और इसके तहत सुरक्षाबलों को दी जाने वाली छूट को लेकर बहस तेज हो गई थी।

क्यों खतरनाक है आफस्पा कानून?
उल्लेखनीय है कि नगालैंड, असम और मणिपुर में दशकों से सशस्त्रबल (विशेष अधिकार) अधिनियम (आफस्पा) लागू है, जिसका मकसद क्षेत्र में उग्रवाद से निपटने के लिए तैनात सुरक्षा बलों की मदद करना है।
अफ्स्पा कानून सबसे पहले नागालैंड और फिर धीरे-धीरे पूर्वोत्तर के सात बहन कही जाने वाली सातों राज्यों और कश्मीर में लागू किया गया। जिसमें आर्मी को इन राज्यों में तथाकथित शांति बहाल करने के नाम पर शक्ति प्रयोग करने की खुली छूट दी गई है।
जिसके परिणाम स्वरूप सेना के जवानों द्वारा तथाकथित अलग राज्यों की मांग करने वाले विद्रोहियों को रोकने के नाम पर आम नागरिकों की हत्या, महिलाओं के साथ बलात्कार, हिरासत में मौत, प्रताड़ना जैसी खबरें आम हैं। इन राज्यों में मानवाधिकार जैसे शब्द बईमानी लगने लगते हैं।
आफस्पा सुरक्षा बलों को अभियान चलाने और बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की शक्ति प्रदान करता है और अगर सुरक्षा बलों की गोली से किसी की मौत हो जाए तो भी यह उन्हें गिरफ्तारी और अभियोजन से संरक्षण प्रदान करता है.
इस कानून के कड़े प्रावधानों के कारण समूचे पूर्वोत्तर और जम्मू कश्मीर से इसे पूरी तरह से हटाने के लिए प्रदर्शन होते रहे हैं। वर्ष 2015 में त्रिपुरा से और 2018 में मेघालय से आफस्पा को पूरी तरह से हटा दिया गया था।
समूचे असम में 1990 से अशांत क्षेत्र अधिसूचना लागू है। लगातार तमाम विरोधों के बाद स्थिति में अहम सुधार के बहाने एक अप्रैल से असम के 23 जिलों से आफस्पा पूरी तरह हटाया जा रहा है, जबकि एक जिले से यह आंशिक रूप से खत्म किया जा रहा है।