धार / अरुण कमल
कौन बचा है जिसके आगे
इन हाथों को नहीं पसारा
यह अनाज जो बदल रक्त में
टहल रहा है तन के कोने-कोने
यह कमीज़ जो ढाल बनी है
बारिश सरदी लू में
सब उधार का, माँगा चाहा
नमक-तेल, हींग-हल्दी तक
सब कर्जे का
यह शरीर भी उनका बंधक
अपना क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार।

फिर से / अरुण कमल
धीरे धीरे उतरी है बाढ़
फिर उभरी आ रही हैं मेड़ें
खुले आ रहे हैं खेत घर द्वार
फिर से मसूड़ों में उग रही है दाँत की पाँत ।
दह गए थे धान के खेत
घरों में भरा था बाढ़ का पानी
यहाँ से वहाँ तक बस बची थी पाँक
पता नहीं कौन-सी कोख में
बचा हुआ जीवन
फिर से फेंकता है कंछा
फिर से अपनी ज़मीन पर लौट रहे हैं लोग-बाग
लौट रहे हैं पशु-पक्षी
लौट रहा है सूर्य
लौटा आ रहा है सारा संसार
इस प्रलय के बाद।

हार की जीत / अरुण कमल
नहीं, मुझे अपनी परवाह नहीं
परवाह नहीं हारें कि जीतें
हारते तो रहे ही हैं शुरू से
लेकिन हार कर भी माथा उठ रहा
और आत्मा रही जयी यवांकुर-सी हर बार
सो, मुझे हार-जीत की परवाह नहीं
लेकिन आज ऎसा क्यों लग रहा है जैसे मैं खड़ा हूँ और
मेरा माथा झुक रहा है
लगता है आत्मा रिस रही है तन से
रक्त फट रहा है
और मेरे कंधे लाश के बोझ से झुक रहे हैं
नहीं, यह बात किसी को मत बताना खड्ग सिंह
नहीं तो लोग ग़रीबों पर विश्वास करना छोड़ देंगे।

जाना है / अरुण कमल
पहले भी देखा था यह फल
सूँघा था
चखा था बहुत बार
बचपन से ही
पर आज पहली बार जब देखा है
डाल पर पकते इस फल को
तभी जाना है असली रंग-स्वाद-गंध
इस छोटे-से फल के
धरती-आकाश तक फैले सम्बन्ध।

ख़बर / अरुण कमल
अख़बारों में ख़बर थी :
कैलिफ़ोर्निया की एक कुतिया ने तेरह बच्चे
एक साथ जने ।
अख़बारों में ख़बर थी :
युवराज ने कंगालों में कम्बल बाँटे ।
अख़बारों में ख़बर थी :
विश्व सुंदरी का वज़न 39 किलो है ।
अख़बारों में ख़बर थी :
प्याज़ बड़ा गुणकारी होता है ।
अख़बारों में ख़बर थी :
राजनेता ने दाढ़ी मुड़ाई ।
एक ख़बर जो कहीं नहीं थी :
किश्ता गौड़ को फाँसी हो गई
एक ख़बर जो ख़बर नहीं थी :
भूमैया को फाँसी हो गई ।
(किश्ता गौड़ और भूमैया आन्ध्र प्रदेश के क्रांतिकारी, जिन्हें आपातकाल के दौरान फाँसी दे दी गई थी।)
(कविता कोश से साभार)

अरुण कमल
जन्म-15 फरवरी, 1954
आधुनिक हिन्दी साहित्य में समकालीन दौर के प्रगतिशील विचारधारा संपन्न, अकाव्यात्मक शैली के ख्यात कवि हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त इस कवि ने कविता के अतिरिक्त आलोचना भी लिखी हैं, अनुवाद कार्य भी किये हैं तथा लंबे समय तक वाम विचारधारा को फ़ैलाने वाली साहित्यिक पत्रिका आलोचना का संपादन भी किया है।