वैचारिक और क्रांतिकारी कार्रवाइयों के प्रमुख सेनानी थे अमर शहीद भगवती चरण बोहरा

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शहादत दिवस (28 मई) : भगवती चरण वोहरा सशस्त्र कार्रवाइयों के अगुआ, बम बनाने के उस्ताद और हर वैचारिक लेखन में भगत सिंह के साथ उनकी युगलबंदी थी। पत्नी दुर्गा भाभी उनकी सह यात्री थीं।

19वीं शताब्दी के शुरुआत वर्षों में देश में कई महान सपूत पैदा हुए। 1920 का दशक क्रांतिकारी आंदोलन के उभर का दौर था। इसी दौर के इन्क़लाबियों में एक प्रमुख नाम था भगवती चरण वोहरा का। भगत सिंह के अनन्य साथियों में एक वोहरा अपने समय के क्रांतिकारियों में प्रमुख विचारक, प्रतिभाशाली वक्ता, प्रभावी लेखक और उत्साही पाठक थे।

वोहरा नाम की जगह काम पर भरोसा रखते थे। काकोरी से लाहौर तक कई क्रांतिकारी कार्रवाइयों के अभियुक्त होने के बावजूद वे न कभी पुलिस द्वारा पकड़े जा सके और न ही किसी अदालत ने उन्हें कोई सजा सुनाई। लेकिन उनकी सक्रियता अंत तक बनी रही और क्रांतिकर्म में ही शहादत हुई।

प्रारम्भिक जीवन

भगवतीचरण वोहरा का जन्म 15 नवंबर 1902 को अविभाजित पंजाब के लाहौर में एक बहुत ही संपन्न परिवार में हुआ था, जो ब्रिटिश राज के प्रति अपनी वफादारी के लिए जाना जाता था। उनके पिता शिव चरण वोहरा रेलवे के एक उच्च अधिकारी थे। बाद में वे आगरा से लाहौर चले आये।

लाखों की सम्पत्ति और हज़ारों रुपये के बैंक बैलैंस के उत्तराधिकारी भाई भगवतीचरण ने अपने देशप्रेम हेतु अपने लिये साधारण और कठिन जीवन चुना परंतु साथी क्रांतिकारियों के लिये अपने जीते-जी सदा धन-साधन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति निस्वार्थ भाव से की।

मात्र चौदह वर्ष की आयु में, सन् 1918 में भगवती चरण वोहरा का विवाह इलाहाबाद की पाँचवीं कक्षा उत्तीर्ण ग्यारह वर्षीया दुर्गावती देवी से हुआ। पति के उद्देश्य में सदा कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने वाली यही वीरांगना दुर्गावती बाद में दुर्गा भाभी के नाम से विख्यात हुईं। वे वोहरा की तरह ही एक साहसी उपनिवेश-विरोधी क्रांतिकारी बन गईं।

खादी के वस्त्र धारण कर दुर्गावती ने पढाई जारी रखी और समय आने पर प्रभाकर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी बीच वोहरा ने नेशनल कॉलेज लाहौर से बी.ए. की उपाधि ली। 1925 में उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम महान क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल के सम्मान में शचीन्द्रनाथ रखा।

दुर्गा भाभी ने भगवती चरण वोहरा के निधन के बाद भी क्रांतिकारी धारा को आगे बढ़ाने में सक्रिय रहीं, दल की प्रमुख सदस्य बनी रहीं । यही नहीं, भगत सिंह को पुलिस से फ़रार होने में उनकी मैडम बनकर मददगार साबित हुईं।

क्रान्ति की राह पर

जलियांवाला बाग हत्याकांड में ब्रिटिश सैनिकों के हाथों सैकड़ों निर्दोष भारतीयों की मौत हो गई थी, जिससे ऊधम सिंह, भगत सिंह से लेकर वोहरा तक उस दौर के तमाम किशोर व युवा काफी आहत हुए और वे बरतानवी गुलामी के खिलाफ जारी उपनिवेशवाद विरोधी संघर्ष में कूद पड़े।

दूसरी तरफ़ 1917 की रूसी क्रांति ने वोहरा और उनके जैसे तमाम भारतीय युवाओं को भी बहुत प्रभावित किया। उन्होंने साम्यवाद को भारत की गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, कृषि संकट और शोषणकारी सामाजिक परिस्थितियों के समाधान के रूप में देखा।

इन्हीं स्थितियों में 1920 के दशक में भारत में क्रांतिकारी आंदोलन का विकास हुआ। वोहरा जैसे तमाम युवा आज़ादी के संग्राम में उतार पड़े। पढ़ाई के दौरान 1921 में ही भगवती चरण गांधी जी के आह्वान पर पढाई छोडकर असहयोग आन्दोलन में कूद पड़े थे। लेकिन चौरीचौरा कांड के बाद गांधीजी ने जिस एकतरफा तरीके से आंदोलन वापस ले लिया उससे युवाओं मे निराशा फैल गई।

वोहरा ने 1920 में एम एन रॉय की पहल पर बनी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ संपर्क स्थापित किया और उनकी पत्रिका, वैनगार्ड और अन्य मार्क्सवादी साहित्य को भारत में प्रचारित करना शुरू कर दिया। लेकिन जल्द ही वह नवोदित कम्युनिस्टों द्वारा दिखाई गई पहल की कमी से निराश हो गए और दूसरे साथियों के साथ क्रान्ति की नई धारा में शामिल हुए।

उसके बाद वोहरा ने लाहौर के नेशनल कॉलेज से बीए किया। वहां उनकी मुलाक़ात भगत सिंह और कई अन्य सहयोगियों से हुई। पढ़ाई के दौरान भगवती चरण ने रुसी क्रान्तिकारियो से प्रेरणा लेकर छात्रो की एक अध्ययन मण्डली का गठन किया था।

राष्ट्र की परतंत्रता और उससे मुक्ति के प्रश्न पर केन्द्रित इस अध्ययन मण्डली में शामिल भगत सिंह, सुखदेव आदि साथियों ने नौजवान भारत सभा की स्थापना की।

क्रांतिकारी संगठनों के अहम सिपाही

नौजवान भारत सभा के जनरल सेक्रेटी भगत सिंह और प्रोपेगंडा (प्रचार) सेक्रेटी भगवती चरण थे। अप्रैल 1928 में नौजवान भारत सभा का घोषणा पत्र प्रकाशित हुआ। भगत सिंह व अन्य साथियो से सलाह-मशविरे से मसविदे को तैयार करने का काम भगवती चरण वोहरा का था। यह एक खुला जन संगठन था, जिसने क्रांतिकारी धारा विकसित करने में अहम भूमिका निभाई।

पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक़ उल्ला खाँ और साथियों की फ़ांसी शचीन्द्र नाथ सान्याल आदि साथियों की उम्र क़ैद के बाद चन्द्रशेखर आज़ाद ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी का पुनर्गठन किया तो नया संगठन हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन (एचएसआरए) बना। इसमें भगवती चरण वोहरा, भगत सिंह और सुखदेव आदि भी शामिल रहे और उनके सुझाव पर ही दल के नाम में सोशलिस्ट शब्द जुड़ा जो बड़ा वैचारिक बदलाव था।

9-10 सितम्बर 1928 को फ़ीरोज़शाह कोटला में हुई एचएसआरए की गुप्त प्रथम राष्ट्रीय पंचायत में झांसी को मुख्यालय, चन्द्रशेखर “आज़ाद” को मुख्य सेनापति और भगवतीचरण वोहरा को प्रमुख सलाहकार चुना गया।

वैचारिक कार्यों के प्रमुख सेनानी

भगवती चरण वोहरा वैचारिक रूप से बेहद परिपक्व थे। अपने समय के क्रांतिकारियों के प्रमुख विचारक और लेखक रहे थे। क्रांतिकारी कर्म में हर वैचारिक लेखन में भगत सिंह के साथ उनकी युगलबंदी थी। एक लिखता तो दूसरा उसे ठीक करता।

“नौजवान भारत सभा” का घोषणा पत्र हो या फिर “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का घोषणा पत्र” हो भगत सिंह व भगवती चरण ने ही लिखा था।

क्रांतिकारियों के दृष्टिकोण पर चोट पहुँचने के लिए गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ में ‘बम की पूजा’ शीर्षक लेख लिखा और क्रांतिकारियों को कोसा था। जवाब में भगत सिंह के सहयोग से भगवती चरण ने ‘बम का दर्शन’ लिखा, जो बेहद शानदार और क्रांतिकारियों का दृष्टिकोण निरूपित करने वाला है।

सशस्त्र कार्रवाइयों के अगुआ

भगवती चरण वोहरा सशस्त्र कार्रवाइयों के अगुआ और बम बनाने के उस्ताद रहे।

उनकी प्रमुख सशस्त्र कार्रवाइयों में से एक 23 दिसंबर, 1929 को दिल्ली-आगरा रेललाइन पर वायसराय लार्ड इरविन की स्पेशल ट्रेन उड़ाने की कार्रवाई थी। इस विस्फोट से ट्रेन का खाना बनाने व खाने वाला डिब्बा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया और एक व्यक्ति की मौत हो गई थी, लेकिन वायसराय बाल-बाल बच गया था।

ऐतिहासिक लाहौर षडयंत्र कांड में भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को सुनाई गई मृत्युदंड की सजा पर अमल से पहले उन्हें छुड़ा लिए जाने का एक प्रयास था। इसके लिए 28 मई, 1930 को रवि नदी के तट पर बम परीक्षण करने के दौरान वोहरा जी घायल हो गए और अपनी जान गाँव बैठे।

उनके निधन के बाद ‘आजाद’ ने कहा था कि उन्हें लगता है कि उनका दायां हाथ कट गया है।

भगवती चरण वोहरा (15 नवंबर 1903 — 28 मई 1930)

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हमें ऐसे लोग चाहिये जो आशा की अनुपस्थिति में भी भय और झिझक के बिना युद्ध जारी रख सकें। हमें ऐसे लोग चाहिये जो आदर-सम्मान की आशा रखे बिना उस मृत्यु के वरण को तैयार हों, जिसके लिये न कोई आंसू बहे और न ही कोई स्मारक बने।

-भगवतीचरण वोहरा

मेरे पति की मृत्यु 28 मई 1930 में रावी नदी के किनारे बम विस्फोट के कारण हुई थी। उनके न रहने से भैया (आज़ाद) कहते थे कि उनका दाहिना हाथ कट चुका है।

-दुर्गा भाभी

युद्ध हमारे साथ आरम्भ नहीं हुआ है और हमारे जीवन के साथ समाप्त नहीं होगा। हमारे तुच्छ बलिदान उस श्रृंखला की कडी मात्र होंगे जिसका सौन्दर्य कामरेड भगवतीचरण के दारुण पर गर्वीले आत्म त्याग और हमारे प्रिय योद्धा आजाद की गरिमामय मृत्यु से निखर उठा है।

-शाहीदे आज़म भगत सिंह (3 मार्च 1931)

आज आज़ाद का कोई क्रांतिकारी साथी जीवित नहीं है। स्वतंत्र भारत में एक-एक कर उनके सारे साथियों की मौत हो गयी और किसी ने नहीं जाना। वे सब गुमनाम चले गये। उनके न रहने पर किसी ने आंसू नहीं बहाये, न कोई मातमी धुन बजी। किसी को पता ही न लगा कि ज़मीन उन आस्मानों को कब कहाँ निगल गयी।

-सुधीर विद्यार्थी