एम्स की नर्स स्टाफ हड़ताल पर, हाईकोर्ट ने लगाई रोक

प्रशासन समाधान की जगह ले रहा है दमन का सहारा
भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की करीब पाँच हजार नर्सों ने अपनी माँगों को लेकर सोमवार से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चली गईं। इस बीच एम्स प्रशासन ने आन्दोलन तोड़ने के हथकंडे अपनाने के साथ दिल्ली हाईकोर्ट का भी रुख किया, जहाँ से हड़ताल पर रोक का उसे स्थगनादेश (स्टे) भी मिल गया। अब संघर्ष की नयी स्थितियां खड़ी हो गई हैं।
खबर के मुताबिक, करीब पाँच हजार नर्स सोमवार दोपहर से हड़ताल पर हैं। जिससे एम्स अस्पताल में रोगी देखभाल सेवाएं बाधित हुईं. उनकी 23 माँगों में छठे केंद्रीय वेतन आयोग की अनुशंसा को लागू करना और अनुबंध पर भर्ती खत्म करना भी शामिल है। हड़ताल पहले 16 दिसंबर से शुरू होनी थी।
दरअसल एम्स में वर्षों से काम कर रहीं नर्स लंबे समय से छठे केंद्रीय वेतन आयोग की अनुशंसा को लागू करने और अनुबंध पर भर्ती खत्म करने आदि की माँग करती आ रही हैं, लेकिन एम्स प्रशासन ने उनकी माँगों पर कान देना ज़रूरी नहीं समझा। जबकि कोरोना महामारी के विकट दौर में अस्पताल स्टाफ जान जोख़िम में डालकर लगातार काम करती रही हैं।

इसबीच एम्स नर्स यूनियन के आह्वान पर नर्सिंग स्टाफ ने एम्स परिसर में प्रदर्शन करते हुए प्रशासनिक भवन तक जाने के रस्ते में लगाए गए बैरिकेड्स तोड़ दिए, जहाँ उन पर सुरक्षा कर्मियों द्वारा बल प्रयोग हुआ और कई नर्स जख्मी हो गईं।
एम्स प्रशासन आन्दोलन तोड़ने में जुटा
माँगों के निस्तारण की जगह एम्स प्रशासन ने दमन का रास्ता चुना। उसने आन्दोलनकारी नर्सिंग कर्मचारियों को पत्र जारी कर सभी नर्सिंग कर्मियों की उपस्थिति दर्ज करने व चिह्नित का फरमान सुनाया।
इसमे कामयाबी नहीं मिली तो प्रशासन ने आनन फानन में नर्सों की भर्ती का विज्ञापन निकाल दिया और 16 दिसंबर को इंटरव्यू की तारीख भी तय कर दी। प्रसासन की ओर से कहा गया कि 170 नर्सों को बाहर से आउटसोर्स भी किया जाएगा। लेकिन आन्दोलनकारी नर्स स्टाफ का हड़ताल जारी रहा।
इस बीच एम्स प्रशासन ने दिल्ली हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर कर दी, जहाँ से तत्काल हड़ताल पर रोक का आदेश भी मिल गया। हाई कोर्ट ने हड़ताल पर रोक लगाते हुए नर्सों को नोटिस जारी कर जवाब माँगा है।
जस्टिस नवीन चावला की एकल पीठ ने कहा, ‘अगले आदेश तक हड़ताल जारी रखने पर रोक लगाई जाती है।’ कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 18 जनवरी की तारीख दी है।
एम्स की दलील
अपनी याचिका में एम्स ने कहा कि हड़ताल गैरकानूनी है और औद्योगिक विवाद अधिनियम का उल्लंघन है, क्योंकि उसकी धारा 22 के तहत छह सप्ताह का कोई नोटिस नहीं दिया गया था। एम्स एक पब्लिक यूटिलिटी है, इसकी नर्सों द्वारा जारी हड़ताल सार्वजनिक हित के खिलाफ है।
वकील वीएसआर कृष्णा के माध्यम से पेश होते हुए एम्स ने कहा कि हड़ताल ने एम्स के कर्मचारियों द्वारा ऐसी किसी भी कार्रवाई पर रोक लगाने वाली (दिल्ली हाईकोर्ट के) एक डिवीजन बेंच के आदेश का भी उल्लंघन किया, जिसके अनुसार एम्स परिसर में कोई नारेबाजी, धरना नहीं हो सकता है।
एम्स की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि कोरोना वायरस महामारी का समय है, लिहाजा हड़ताल पर नहीं कर सकते हैं।
एम्स ने अदालत को बताया कि छठे वेतन आयोग से संबंधित नर्सों की माँग को पूरी करने में उसकी कोई भूमिका नहीं है और हड़ताल दबाव बनाने का तरीका है। हालाँकि यह भी कहा कि माँगों पर सहानभूति पूर्वक विचार हो रहा है।

वार्ता की जगह कोर्ट का सहारा क्यों?
वहीं, एम्स के दिल्ली हाईकोर्ट जाने पर एम्स नर्सेस यूनियन ने ट्वीट कर कहा, ‘नर्सिंग यूनियन से बात करने के बजाय एम्स प्रशासन एम्स की नर्सों के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट चला गया।’
एम्स नर्स एसोसिएशन ने कहा था कि एम्स प्रशासन उनकी मांगें नहीं मान रहा है, ऐसे में उनके पास हड़ताल पर जाने के अलावा कोई और चारा नहीं बचा है।
अन्य नर्स यूनियनों का भी समर्थन
इस बीच कई नर्स एसोसिएशन ने एम्स नर्स एसोसिएशन के हड़ताल को अपना समर्थन दिया है। कुछ डॉक्टर एसोसिएशन भी समर्थन में खड़े हुए हैं।