आरोग्य सेतु : निजता पर बढ़ता खतरा

Aarogya setu

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का खुला उल्लंघन

कोविड-19 संकट से निपटने के नाम पर ‘आरोग्य सेतु’ एप जैसे अचानक जनसमुदाय के बीच उतरा गया, उसे बहु प्रचारित किया गया, उसे कार्य पर जाने या आपातकालीन पास के लिए बाध्यकारी बनाया जा रहा है, वह तमाम सवाल खड़ा करता है। जिस तरीके से ‘आधार’ कार्ड लाया गया था, यह उसी की अगली कड़ी है। यह किसी नागरिक की निजिता पर एक और बड़ा हमला है।

मोदी सरकार द्वारा बहुत ही सचेतन भारतीय संविधान के प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को नष्ट करने के विभिन्न प्रयास जारी हैं। देश में नागरिक व मज़दूर अधिकारों पर हमले लगातार तेज होते जा रहे हैं। सामान्य दौर हो या आपातकालीन, मोदी सरकार सबका इस्तेमाल वैश्विक पूँजी और संघ की दीर्घकालिक एजेण्डे को लागू करने और उसी अनुरूप मज़दूर और नागरिक अधिकारों पर डकैती के लिए कर रही है- चाहें वे श्रम क़ानूनी अधिकार हों या जनतांत्रिक अधिकार।

इन सबके द्वारा देश की मेहनतकश-मज़दूर जमात को आपस में बाँटना और लोकतांत्रिक संघर्षां को दबाना अहम है।

देश की सुरक्षा और आतंकवाद के बहाने भारत की राज्यसत्ता देश के हर नागरिक की निजता को तार-तार कर रही है। लोगों में आतंकवाद और आन्तरिक सुरक्षा पर ख़तरे का भय पैदा करके वास्तव में सरकार लोगों की निजता पर हमला बोल रही है।

आधार : एक ताक़तवर हथियार

तमाम विरोधों और सर्वोच्च अदालत के ढुलमुल फैसलों के बीच ‘आधार’ आबादी के एक बड़े हिस्से में लागू हो चुका है। यह व्यक्ति की निजी सूचनाओं को खोद कर बाहर निकालने और उन्हें जमा करने का एक अकल्पनीय ताक़तवर औजार है।

आधार अधिनियम में निजता पर हमले के खि़लाफ किसी किस्म का रक्षा उपाय नहीं है। आधार वास्तव में निजता के अधिकार के विरोध में खड़ा है। जिसके तमाम दुश्परिणाम सामने आ चुके हैं। यहाँ तक कि यह नागरिकता प्रमाणित करने के लिए भी अपर्याप्त है। लेकिन यह नागरिकों की निगरानी व निजी ज़िंदगी में दख़ल देने का उपकरण जरूर बन गया है।

aarogya setu app: 'Aarogya Setu's not all that healthy for a ...

आरोग्य सेतु : निजता पर बड़ा हमला

कोविड-19 संकट के बहाने मोदी सरकार के दूरगामी एजेण्डे का हिस्सा है- ‘आरोग्य सेतु ऐप’। इसे कोरोना वायरस से निपटने के लिए एक ज़रूरी कदम के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह इंसान की जिंदगी के हर कोने में प्रवेश करने का जरिया है।

कोई क्या खाता है, क्या पहनता है, किससे मिल रहा है आदि निजी ज़िदगी की सारी जानकारी यह ऐप एकत्रित करता है। कान्टै्रक्ट ट्रेसिंग तकनीक पर आधरित यह ऐप आपकी हर जानकारी लेता है। आप हर वक्त इसकी निगरानी में हैं।

अब तो इसे बाध्यकारी भी बनाया जा रहा है। फैक्ट्री, कम्पनी या निजी सरकारी दफ्तरों में काम के लिए अभी ‘आरोग्य सेतु’ ऐप से जुड़ना अनिवार्य हो गया है। कोरोना आपदा में इधर-उधर फंसे लोगों को पास जारी करने के लिए भी इसे बाध्यकारी बनाया गया है।

यह आधार नम्बर से भी ज्यादा ख़तरनाक है और उसी खेल का हिस्सा है। एक ने सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के नाम पर पैठ बनाई, तो दूसरा कोरना वायरस के नाम पर घुसपैठ बना रहा है।

निजता पर निगरानी का तंत्र

सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 में सबसे पहले कांग्रेस ने संशोधन किये। दिसम्बर 2008 में यूपीए सरकार ने सुरक्षा एजेंसियों को किसी व्यक्ति की जासूसी करने का असीमित अधिकार दिया था। उसने सुरक्षा की दृष्टि से कुछ भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को फ़ोन कॉल्स, मोबाइल डेटा या कम्प्यूटर डेटा के ज़रिये किसी भी नागरिक की जासूसी करने की ताक़त दे दी थी। लेकिन भाजपा सरकार ने इसे दस एजेंसियों के हवाले कर दिया है।

20 दिसम्बर 2018 को गृह मंत्रालय के आदेश के तहत सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2002 की धारा 69(1) और सूचना प्रौद्योगिकी नियमावली 2009 के नियम 4 की शक्तियों का उपयोग सुरक्षा और ख़ुफ़िया एजेंसियाँ कर सकती हैं और उनके डेटा का खुलासा कर सकती हैं। इसके लिए दस एजेंसियाँ अधिकृत की गयी हैं। पहले केवल गृह मंत्रालय टेलीफ़ोन कॉल ट्रेस कर सकता था। लेकिन अब आपके कम्प्यूटर में जो कुछ भी है, उसे इन्टरसेप्ट करने की एजेंसियों को खुली छूट है। इस क़ानून के मुताबिक़ एजेंसियों को सारी जानकारी न देने पर सात साल की जेल हो सकती है।

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क्या है सेन्ट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम?

सेन्ट्रल मॉनिटरिंग सिस्टम एक डेटा संग्रह प्रणाली है जिसका संचालन भारत सरकार द्वारा किया जाता है। यह संसद में 2012 में प्रस्तावित हुआ तथा अप्रैल 2013 से इसने काम करना शुरू किया। यह अमेरिकी सरकार के विवादास्पद प्रोग्राम ‘प्रिज़्म’ की तरह लोगों के निजी जीवन में हस्तक्षेप करने जैसा है। यह भारत सरकार को फ़ोन पर हो रही बातचीत पढ़ने, फ़ेसबुक, ट्विटर या लिंकडिन के पोस्ट पर निगरानी रखने और गूगल की खोजों पर नज़र रखने में मदद करता है।

फिंगर प्रिण्ट के बहाने

अभी सारे मोबाइल फोन जैसे उपकरण फिंगर और चेहरे की पहचान पर आधरित हैं। यह बेहद ख़तरनाक है। सारे डाटा और निजी जानकारियाँ कम्पनियों के पास पहुँच रही हैं, वहीं यह निगरानी तंत्र का भी जरिया बनी हैं।

पुलिस बलों ने नियमित रूप से फ़िंगरप्रिण्ट और चेहरे पहचानने के सॉफ़्टवेयर का प्रयोग तेज कर दिया है। सीएए, एनआरसी के खि़लाफ़ चले विरोध प्रदर्शनों के दौरान लोगों की जासूसी और निगरानी हुईं। प्रदर्शनों पर निगरानी रखने के लिए ड्रोनों का इस्तेमाल हुआ। लॉकडाउन के दौरान निगरानी के लिए ड्रोन कैमरों का इस्तेमाल काफी बढ़ा है। लोगों के कथित आपराधिक गतिविधियों की जाँच करने के लिएफ़िंगरप्रिंट का इस्तेमाल हुआ।

हालात ये हैं कि भारत में हर नागरिक की निजता पर ख़तरे की तलवार लटक रही है।

निजता के इस हमले की मुख़ालफत बेहद जरूरी है। अपने निजता को बचाना संवैधनिक अधिकार है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत निजता का अधिकार हमारा मूलभूत अधिकार है।

‘संघर्षरत मेहनतकश’ पत्रिका, अंक-43 (अप्रैल-जून, 2020) में प्रकाशित

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