बढ़ते दमन का एक ख़तरनाक दौर

इस मुल्क में इंसाफ का मतलब अब उन सबका जेल में होना है जिनसे हुकुमूत नाराज है!
कोरोना संकट के समय देश की आम जनता लॉकडाउन में बेरोजगारी व भुखमरी से पीड़ित है। ऐसे समय में देश के हुक्मरान जनवादी कार्यकताओं को झूठे मुक़दमों में फंसाकर अपने घटिया राजनीतिक मंसूबे पूरा करना चाहते है। विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं से मानवाधिकार कार्यकर्ता तक इस दमनकारी अभियान का निशाना बन रहे हैं।
सीएए, एनआरसी, एनपीआर का विरोध करने वाले लोग हों, मज़दूरों-नागरिकों-छात्रों के हक़ के लिए लड़ने वाले हों, या सरकार के तुगलकी फरमान से पैदा संकट से जूझने वालों के वास्तविक मददगारों को चुन-चुन कर बदले की कार्यवाही बढ़ती जा रही है। ठीक इसी समय नफ़रत के सौदागरों को खुली छूट मिली हुई है!
जहाँ सरकारी अक्षमता से देशभर में मेहनतकश-मज़दूर जमात का भारी हिस्सा भयावह संकटों को झेल रहा है, वहीँ उनकी मदद करने वालों पर जगह-जगह फर्जी मुक़दमे थोपे जा रहे हैं, छापेमारी और गिरफ्तारियां हो रहीं हैं। यूएपीए, धारा-188 पुलिस का हथियार बन गया है। कुछ दमनकारी घटनाएँ देखें-

जनवादी-नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं पर शिकंजा
उत्तराखंड। परिवर्तनकामी में छात्र संगठन (पछास) के लालकुआं (नैनीताल) इकाई सचिव महेश पर पुलिस ने फर्जी मुकदमा थोपा है। अखबार के हवाले से पुलिस ने सोशल मीडिया पर उकसाने के आरोप में यह मुकदमा धारा 188, 269, 270 और आपदा प्रबंधन एक्ट 51 के तहत दर्ज किया है।
हरियाणा। नौजवान भारत सभा जिला कमेटी सिरसा के सक्रिय कार्यकर्ता व इकाई रोड़ी सिरसा के सचिव कुलविंदर सिंह को देर रात गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने उनके घर छापा मारा। पुलिस उनपर धारा 188 व अन्य धाराओं के तहत केस दर्ज कर गिरफ्तारी के फिराक में है। आरोप लगाया कि कुलविंदर सिंह ने कोरोना कर्फ्यू दौरान गाँव में लोगों को इकठ्ठा किया।
दिल्ली। नौजवान भारत सभा के केन्द्रीय कार्यालय, करावल नगर से संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष योगेश स्वामी को एक पुलिस टीम ने अचानक पहुँच कर डकैतों की तरह उठा लिया !
उत्तराखंड। उधम सिंह नगर की पुलिस ने व्ह्ट्सएप के एक पोस्ट पर पूछ-ताछ के बहाने के रुद्रपुर कोतवाली बुलाकर इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष कैलाश भट्ट का उत्पीड़न किया। उनका मोबाइल जप्त किया और उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करने की धमकी दी गयी।
पंतनगर के ठेका मजदूर कल्याण समिति के सचिव अभिलाख सिंह को व्ह्ट्सएप के एक पोस्ट पर पंतनगर थाना पुलिस ने पूछताछ के नाम पर उत्पीडित किया, उनका मोबाइल जप्त किया और राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया।
लॉकडाउन के दौरान पुलिस द्वारा मजदूरों को मुर्गा बनाये जाने का विरोध करना सत्ता के लिए अपराध बन गया।
दिल्ली। मज़दूरों के निष्पक्ष वेबसईट और यूट्यूब चैनल वर्कर्स यूनिटी की टीम, जो आपदा के समय हेल्पलाइन चलाकर प्रवासी मज़दूरों की मदद कर रही है, के साथीयों को सीआईडी और स्पेशल ब्रांच से जुड़ा बताने वाले लोगों द्वारा लगातार फोन से पूछ-ताछ के बहाने उत्पीड़न की घटना सामने आई।
इसके विपरीत कोरोना संकट की आड़ में पूरे देश में नफ़रत पैदा करने और सांप्रदायिक माहौल को तीखा बनाने वाली मुख्य धारा की मिडिया व भाजपा आईटी सेल द्वारा लगातार फर्जी और विद्वेषपूर्ण खबरें फ़ैलाने वालों को सत्ता का खुला संरक्षण मिला हुआ है।
सीएए, एनआरसी, एनपीआर का विरोध करने वालों पर मुक़दमे
मोदी सरकार दिल्ली दंगों को भड़काने वाले संघ-भाजपा के नेताओं पर कार्यवाही की जगह कोरोना/लॉकडाउन का फायदा उठाते हुए संविधान विरोधी नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए), एनआरसी, एनपीआर का वैधानिक विरोध करने वालों पर मुक़दमे दर्ज कर रही है और गिरफ्तारियां तेज कर दी है।
दिल्ली पुलिस ने हाल ही में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नेता उमर खालिद, राष्ट्रीय जनता दल के नेता मीरान हैदर, जामिया को-ऑर्डिनेशन कमेटी की मीडिया को-ऑर्डिनेटर सफूरा ज़रगर और उत्तर-पूर्वी दिल्ली के भजनपुरा इलाक़े के रहने वाले दानिश पर दिल्ली दंगों से जुड़े होने के कथित आरोप में ग़ैर क़ानूनी गतिविधि (निरोधक) अधिनियम (यूएपीए) लगा दिया।
लॉकडाउन की घोषणा के बाद से दिल्ली दंगों के मामले में एसआईटी चार लोगों को गिरफ़्तार कर चुकी है। इनमें सफूरा ज़रगर, मीरान हैदर, कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां और एक्टिवस्ट खालिद सैफ़ी का नाम शामिल है।
अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, अब पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई), जामिया को-ऑर्डिनेशन कमेटी, पिंजरा तोड़, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) के सदस्यों के साथ ही दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुछ पूर्व और वर्तमान छात्रों पर भी यूएपीए के तहत कार्रवाई किए जाने की तैयारी है। एक प्रोफ़ेसर भी पुलिस के रडार पर हैं।
ज्ञात हो कि पिंजरा तोड़ महिलाओं के शोषण के ख़िलाफ़ सतत संघर्षरत छात्राओं का एक जुझारू संगठन है, जबकि आइसा एक वामपंथी छात्र संगठन है।
इसके विपरीत कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, प्रवेश वर्मा, रागिनी तिवारी जैसे भाजपा व उसके अनुषंगी संगठनों के नेताओं को छुट्टा छोड़ रखा है, जबकि उनके खिलाफ़ बाकायदा वीडियो प्रमाण मौजूद हैं, जिनमें वे भड़काऊ व साम्प्रदायिक भाषण या बयान दे रहे हैं। इनमें से कुछ तो बाकायदा हिंसा के लिए भीड़ को उकसा रहे हैं। कई मौक़ों पर तो ख़ुद दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के सामने ये बयान दिये गये हैं।

नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी
अम्बेडकर जयंती, 14 अप्रैल को भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े को राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनआईए) के समक्ष आत्मसमर्पण करना पड़ा, जिसके बाद इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
यह पूरा मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के करीब भीमा कोरेगांव में पेशवा फ़ौज के ऊपर कंपनी की जीत की 200वीं सालगिरह के मौके पर ‘एलगार परिषद’ के आयोजन के बाद दलितों के ख़िलाफ़ हुई हिंसा से सम्बंधित है।
आरोप संघ से जुड़े संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे पर था, लेकिन एकबोटे और भिड़े आजाद घूम रहे हैं।
इसके विपरीत सुधा भारद्वाज, शोमा सेन, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग जैसे वकीलों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुक़दमे लगे और उनको गिरफ्तार किया गया। इसी क्रम में गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े को भी आत्मसमर्पण करना पड़ा।
उनपर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धाराओं के तहत मुक़दमे दर्ज हुए हैं।
हालत ये हैं की देश की जिस सर्वोच्च अदालत ने खुले आम साम्प्रदायिकता फ़ैलाने वाले रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी की गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी, वही सर्वोच्च अदालत इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर नाराजगी जताते हुए कहता है कि ये आज़ाद क्यों घूम रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि अर्णब गोस्वामी ने रिपब्लिकन टीवी पर पालघर में दो साधुओं और उनके ड्राइवर की पीट-पीट कर हत्या के मामले को गलत तरीके से प्रस्तुत कर सांप्रदायिक रंग दिया, जिसके ख़िलाफ़ देशभर में सैकड़ों प्राथमिकियां दर्ज हुईं हैं।
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निरंकुश तानाशाही की जकड़बंदी हुई तेज
प्रचंड बहुमत के मद में चूर मोदी सरकार निरंकुशता और फासीवाद की ओर लगातार तेज क़दम बढ़ रही है। ऐसे में कोरोना वायरस से पैदा संकट ने उसे मुफ़ीद मौका दे दिया है। गहराते आर्थिक संकट के बीच प्रतिरोध की हर आवाज़ को कुचलने की उसकी तैयारी मुक़म्मल है।
उपरोक्त घटनाएँ निरंकुशतंत्र की बानगी मात्र है। विरोधियों से बदला लेने की फ़ितरत की भी यह अभिव्यक्तियाँ हैं। अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ नफ़रत, मेहनतकश वर्ग को बाँटने की कुत्सित साजिश चरम पर है।
प्रतिरोध की हर आवाज़ को कुचलने के लिए फ़र्जी मुक़दमें और गिरफ्तारियों के ख़िलाफ़ साथ चलो!
ऐसे में सत्ता की दमनकारी नीतियों के ख़िलाफ़ इंसाफपसंद ताक़तों को एकजुट संघर्ष के लिए कम से कम इस मुद्दे पर तो साझे प्रतिरोध के लिए आगे आना होगा!