निजीकरण के खिलाफ बीपीसीएल कर्मियों की दो दिनी सफल हड़ताल

कई हाईकोर्ट ने हड़ताल पर लगाई थी रोक, लेकिन हड़ताल रही सफल
देश की प्रतिष्ठित तेल और गैस कंपनी भारत पेट्रोलियम का निजीकरण किए जाने के खिलाफ बीपीसीएल की सभी यूनियनों द्वारा सात और आठ सितंबर को दो दिन की संयुक्त अखिल भारतीय हड़ताल सफल रही। जबकि देश कई राज्यों में उच्च न्यायालयों ने हड़ताल प्र प्रतिबन्ध लगाया था, लेकिन श्रमिकों के जज्बे के सामने कोर्ट का आदेश काम ना आया।
सरकारी तेल कंपनी भारत पेट्रोलियम कंपनी की 15 यूनियनों से जुड़े 48 सौ कर्मचारियों ने 48 घंटे की हड़ताल का आयोजन किया। कंपनी के कर्मचारी मुंबई और कोच्चि स्थित रिफाइनरी से भगी जुड़े हैं जो सोमवार और मंगलवार को हड़ताल पर चले गए थे। इस हड़ताल के चलते कंपनी के एलपीजी प्लांट और मार्केटिंग डिपो भी बंद करने पड़े थे।
इसके बावजूद देश की मिडिया से यह ख़बर लगभग गायब है।

मोदी सरकार का राष्ट्रविरोधी क़दम
श्रमिक नेताओं ने कहा कि भारी मुनाफा देने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की इस कंपनी का मोदी सरकार द्वारा निजीकरण करने का फैसला पूरी तरह राष्ट्रविरोधी है। इसलिए देश के सभी ट्रेड यूनियनों और श्रमिक फेडरेशनों ने बीपीसीएल के कामगारों की दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल के साथ पूरे देश में एकजुटता कार्रवाई आयोजित किए जाने का आह्वान किया है।
कर्मचारियों का आरोप है कि सरकार ने जून 2020 के बाद कंपनी मैनेजमेंट को 10 साल के कांटेक्ट सेवा की समीक्षा करने का अधिकार दिया है। इसकी मदद से जो भी प्राइवेट मैनेजमेंट कंपनी को अपने अधिकार में लेगा, वह श्रमिकों की सेवा शर्तें संशोधित करेगा। यही नहीं, कंपनी प्राइवेट हाथों में जाती है तो उन्हें सेवानिवृत्ति लाभ और ग्रेच्युटी भी नहीं मिलेंगे।

मोदी सरकार बेच रही है सार्वजानिक उद्यम
मोदी सरकार जनता के खून-पसीने से खड़े सार्वजानिक-सरकारी उद्यमों को तेजी से मुनाफाखोरों को बेंच रही है। वह कोरोना महामारी को लुटेरों के अवसर में बदल रही है।
विनिवेश विभाग द्वारा जारी निजीकरण नियमों के अनुसार बीपीसीएल में लगभग 53 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली सरकार, विनिवेश के बाद कथित मार्गदर्शन प्रदान करेगी। तेल शोधन और मार्केटिंग कंपनी के वर्तमान बाजार पूंजीकरण में सरकारी हिस्सेदारी का मूल्य लगभग 50,000 करोड़ रुपए है।
कोरोना महामारी के बीच इस वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के 2.1 लाख करोड रुपए का विनिवेश लक्ष्य रखा है। सरकार 2021 में केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र की दो दर्जन कंपनियों को अपना हिस्सा बेचना चाहती है।

कई कंपनियों में 51% से कम होगी सरकारी हिस्सेदारी
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने नवंबर 2019 में बीपीसीएल, एयर इंडिया, शिपिंग कॉर्प ऑफ इंडिया और ऑन लैंड कार्गो मावर कॉनकोर में सरकार की हिस्सेदारी की बिक्री को मंजूरी दी थी। रेलवे, कोल, खदान से लेकर बिजली, बैंक सबका निजीकरण तेज गति पकड़ चुका है। सरकार ने कई कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी 51 फीसदी से भी कम करने का फैसला लिया है।
कोरोना काल मे हिस्सेदारी बेचने के सहारे सरकार
दरअसल पूँजी जुटाने के कथित बहाने कोरोना काल में केंद्र सरकार को विनिवेश और निजीकरण का खुला माहौल मिल गया है। गौरतलब है कि सरकार बीमा कंपनी एलआईसी की 25% हिस्सेदारी को बेचने के लिए आईओपी लाने जा रही है। इसके अलावा आईआरसीटीसी की भी 20% हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया शुरू होने वाली है।

एकजुट, जुझारू और निरंतरता में आन्दोलन ज़रूरी
ज़ाहिर है, इसके ख़िलाफ़ प्रतिरोध की आवाजें भी उठ रही हैं, जिन्हें कुचलने का भी खेल जारी है। एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि संघर्ष तो हो रहे हैं, लेकिन बीपीसीएल कर्मी अलग लड़ रहे हैं, तो रेल, बिजली या कोल क्षेत्र के मज़दूर अलग संघर्षरत हैं।
ज़रुरत है की अलग-अलग आन्दोलनों-हड़तालों की जगह एक बड़े साझे, जुझारू और निरंतरता में आगे बढ़ाते हुए आन्दोलन की दिशा और धार मजबूत किया जाए!