गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ का स्मृति दिवस : गिर्दा की कुछ कविताएं !

इस व्योपारी को प्यास बहुत है / गिरीश चंद्र तिवाड़ी ‘गिर्दा’
एक तरफ बर्बाद बस्तियाँ – एक तरफ हो तुम।
एक तरफ डूबती कश्तियाँ – एक तरफ हो तुम।
एक तरफ हैं सूखी नदियाँ – एक तरफ हो तुम।
एक तरफ है प्यासी दुनियाँ – एक तरफ हो तुम।
अजी वाह ! क्या बात तुम्हारी,
तुम तो पानी के व्योपारी,
खेल तुम्हारा, तुम्हीं खिलाड़ी,
बिछी हुई ये बिसात तुम्हारी,
सारा पानी चूस रहे हो,
नदी-समन्दर लूट रहे हो,
गंगा-यमुना की छाती पर
कंकड़-पत्थर कूट रहे हो,
उफ!! तुम्हारी ये खुदगर्जी,
चलेगी कब तक ये मनमर्जी,
जिस दिन डोलगी ये धरती,
सर से निकलेगी सब मस्ती,
महल-चौबारे बह जायेंगे
खाली रौखड़ रह जायेंगे
बूँद-बूँद को तरसोगे जब –
बोल व्योपारी – तब क्या होगा ?
नगद – उधारी – तब क्या होगा ??
आज भले ही मौज उड़ा लो,
नदियों को प्यासा तड़पा लो,
गंगा को कीचड़ कर डालो,
लेकिन डोलेगी जब धरती – बोल व्योपारी – तब क्या होगा ?
वर्ल्ड बैंक के टोकनधारी – तब क्या होगा ?
योजनकारी – तब क्या होगा ?
नगद-उधारी तब क्या होगा ?
एक तरफ हैं सूखी नदियाँ – एक तरफ हो तुम।
एक तरफ है प्यासी दुनियाँ – एक तरफ हो तुम।

क्या करें? / गिरीश चंद्र तिवाड़ी ‘गिर्दा’
(8 अक्टूबर 1983 को नैनीताल में हुई पुलिस फायरिंग के बाद)
हालाते सरकार ऐसी हो पड़ी तो क्या करें?
हो गई लाजिम जलानी झोपड़ी तो क्या करें?
हादसा बस यों कि बच्चों में उछाली कंकरी,
वो पलट के गोलाबारी हो गई तो क्या करें?
गोलियाँ कोई निशाना बाँध कर दागी थीं क्या?
खुद निशाने पे पड़ी आ खोपड़ी तो क्या करें?
खाम-खाँ ही ताड़ तिल का कर दिया करते हैं लोग,
वो पुलिस है, उससे हत्या हो पड़ी तो क्या करें?
कांड पर संसद तलक ने शोक प्रकट कर दिया,
जनता अपनी लाश बाबत रो पड़ी तो क्या करें?
आप इतनी बात लेकर बेवजह नाशाद हैं,
रेजगारी जेब की थी, खो पड़ी तो क्या करें?
आप जैसी दूरदृष्टि, आप जैसे हौंसले,
देश की आत्मा गर सो पड़ी तो क्या करें?

इस वक्त जब मेरे देश में / गिरीश चंद्र तिवाड़ी ‘गिर्दा’
इस वक्त जब मेरे देश में,
पेश किये जा रहे हैं,
पेड़, पेड़ों के खिलाफ,
पानी, पानी के खिलाफ,
और पहाड़, पहाड़ों के खिलाफ,
किसानों के खिलाफ किसान,
जनता के खिलाफ, जनता,
नक्सलवादियों के खिलाफ,
रुपहले पर्दे पर नक्सलवादी,
खबरों के खिलाफ, अखबार,
ओ मेरे देश के सम्पादको!
जब तुम इस वक्त,
जो हो, जैसे हो,
हम जानते हैं,
तुम समझते हो,
उसके खिलाफ क्यों नहीं हो रहे हो?