बिहारः कमरे में बंद कोरोना मरीज, कोई निगरानी नही

जमीन पर सोने को मजबूर परिजन
आठ जून तक भागलपुर में कोरोना के 245 केस थे और एक व्यक्ति की मौत हुई थी। मगर अब जिले में कोरोना मरीजों की संख्या में अचानक बढ़ोतरी हुई, जिससे मैनपावर की कमी हो गई और लापरवाही की शिकायतों का सामना करना पड़ा।बिहार के भागलपुर में जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल में कोविड-19 आइसोलेशन वार्ड और आईसीयू के प्रभारी डॉक्टर हेमशंकर शर्मा को एक महीने पहले पूरा भरोसा था कि स्थितियों से निपट लिया जाएगा। आठ जून तक जिले में कोरोना के 245 केस थे और एक व्यक्ति की मौत हुई थी। मगर अब जिले में कोरोना मरीजों की संख्या में अचानक बढ़ोतरी हुई, जिससे मैनपावर की कमी हो गई और लापरवाही की शिकायतों का सामना करना पड़ा।
मायागंज में 800 बिस्तरों वाला हॉस्पिटल इन दिनों गंभीर तनाव में है। ये हॉस्पिटल कई पूर्वी जिलों को कवर करने वाले बिहार के चार समर्पित कोविड-19 हॉस्पिटलों में से एक है।डॉक्टर शर्मा कहते हैं, ‘मैं 65 साल का हूं और उच्च रक्तचाप से ग्रस्त हूं। मगर अभी भी आईसीयू में काम कर रहा हूं। हम वो सब कर रहे हैं जो हमारे पास है।’ आज भागलपुर पूरे राज्य में सबसे अधिक कोरोना मरीजों वाले जिलों की सूची में दूसरे पायदान पर है। जिले में संक्रमितों की संख्या 1601 हो चुकी है, इनमें 16 लोगों की मौत हो चुकी है।
चार दिन पहले आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कराए गए 60 वर्षीय बुजुर्ग के पुत्र ने कहा कि वो सिर्फ ताला लगाते हैं और मरीजों को ऐसे ही छोड़ देते हैं। वहां कोई निगरानी नहीं हो रही है। मरीजों के रिश्तेदार फर्श पर सोने को मजबूर हैं। हमने उन्हें आईसीयू में शिफ्ट करा दिया मगर वहां भी बहुत कम देखभाल की जा रही है। शौचालय बहुत गंदा है और बमुश्किल साफ किया जाता है। मैंने देखा कि एक महिला नर्सों को बता रही थी कि ऑक्सीजन सिलिंडरों की जरुरत थी। मगर उन्होंने इसका जवाब नहीं दिया।
इसी तरह 55 वर्षीय मरीज के बेटे ने बताया कि उनके पिता को 12 जुलाई को कोरोना वायरस की पुष्टि हुई और उसी शाम उन्हें रिपोर्ट भी मिल गई, क्योंकि वो कुछ लोगों को जानते थे। वो बताते हैं, ‘टेस्टिंग कराने के लिए दूसरों को 12 घंटे तक का इंतजार करना पड़ता है। बहुत से लोग तो वापस चले गए।’ उन्होंने बताया कि उनके पिता को 15 जुलाई को मेडिसिन वार्ड में भर्ती कराया गया था जो साफ और स्वच्छ था मगर इंजेक्शन लगाने के लिए कोई कंपाउंडर नहीं था। इसके बाद हमने उन्हें आईसीयू में शिफ्ट करा दिया।बता दें कि दोनों मरीजों के बेटे निगेटिव होने के बाद भी हर दिन आईसीयू में आते हैं। उनमें से एक ने कहा कि मैं आना नहीं चाहता मगर मुझे डर है कि मेरे पिता को कोई देखभाल नहीं होगी।
जनसत्ता से साभार