यूपी : मज़दूर अधिकारों पर बड़ा हमला, 3 साल तक श्रम क़ानून स्थगित

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यूपी कबिनेट के 10 प्रस्ताव पारित, पेट्रोल-डीजल भी हुआ महँगा

यूपी की योगी सरकार ने मज़दूर अधिकारों पर बड़ा हमला बोला है। प्रदेश की कैबिनेट ने आज 10 प्रस्ताव पारित किए हैं, जिसमे सबसे घातक है अगले तीन सालों यानी तक़रीबन 1000 दिनों तक के लिए सभी श्रम क़ानूनों को स्थगित करना। इसके आलावा पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ाने, सार्वजानिक संपत्ति के नुकसान के बहाने दमन का हथियार मजबूत करने जैसे फैसले शामिल हैं

कारखानों, मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को श्रम कानूनों से सशर्त छूट

कोरोना संक्रमण के बहाने योगी सरकार की कैबिनेट ने प्रदेश के सभी कारखानों और मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों को उत्तर प्रदेश में लागू श्रम अधिनियमों से 1000 दिन (तीन साल) की अवधि के लिए अस्थायी छूट देने का बड़ा घातक फैसला किया है। यानी कोई भी मज़दूर क़ानून के तहत हासिल अपने अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर सकता है। साफ़ है कि उद्योगपति मज़दूर का बेरोकटोक शोषण करने के लिए स्वतंत्र होंगे।

अब यूपी में कोरोना योद्धाओं पर हमला किया तो खैर नहीं...जानिये योगी कैबिनेट के दस अहम फैसले

कैबिनेट बैठक में उत्तर प्रदेश कतिपय श्रम विधियों से अस्थायी छूट अध्यादेश, 2020 के प्रारूप को मंजूरी दी गई। सरकार के इस फैसले की जानकारी देते हुए श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने बताया कि प्रदेश में इस समय 38 श्रम अधिनियम लागू हैं। प्रस्तावित अध्यादेश में प्रदेश के सभी कारखानों और मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े अधिष्ठानों को प्रदेश में लागू श्रम अधिनियमों से तीन वर्ष की अस्थायी छूट देने का प्राविधान है।

हालाँकि बंधुआ श्रम प्रथा (उत्सादन) अधिनियम 1976, कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम 1923, भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार नियोजन व सेवा शर्तें विनियमन अधिनियम 1996 के प्रावधान लागू रहेंगे। बच्चों और महिलाओं के नियोजन से जुड़े श्रम अधिनियम के प्राविधान भी लागू रहेंगे। वेतन संदाय अधिनियम 1936 की धारा पांच के तहत तय समय सीमा के अंदर वेतन भुगतान का प्राविधान भी लागू रहेगा।

यूपी के श्रम क़ानून पहले से ही मालिकों के पक्ष में

उत्तर प्रदेश औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 पहले से ही मालिकों के काफी अनुरूप हैं। केन्द्रीय अधिनियम में बदलाव से पूर्व ही इस अधिनियम में 300 से काम श्रमिकों के लिए छंटनी के लिए अनुमति की आवश्यकता नहीं रही है। ले ऑफ़ के मामले में भी केन्द्रीय अधिनियम के विपरीत गोलमाल भाषा है, जो मालिकों के हित में है। यही नहीं, यूपी व उत्तराखंड में लागू क़ानून के तहत यूनियन पंजीकरण के बाद 2 साल तक यूनियन को माँग उठाने का अधिकार नहीं है।

ऐसे में इस घातक क़दम से मज़दूरों के रहे सहे कानूनी अधिकार भी छिन गए।

मोदी सरकार की तर्ज पर योगी सरकार का हमला

यह क़दम केंद्र की मोदी सरकार द्वारा मज़दूर विरोधी 4 श्रम संहिताओं का ही हिस्सा है। कोरोना संकट के बीच मोदी सरकार द्वारा काम के घंटे बढ़ाने, बगैर संसद में पारित अध्यादेश द्वारा शेष संहिताओं को लाने की तैयारी का ही हिस्सा है। इससे पूर्व गुजरात सरकार भी काम के घंटे बढ़ा चुकी है और यूनियनों पर 1 साल के प्रतिबन्ध की चर्चा चल रही है।

सरकारी संपत्ति के नुकसान के बहाने दमन का अधिकार

इसके आलावा उत्तर प्रदेश में किसी सरकारी व निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के बहाने दमन का तंत्र मजबूत हुआ है। कैबिनेट ने उप्र लोक व निजी संपत्ति क्षति वसूली नियमावली-2020 को मंजूरी दे दी है। उसका निशाना नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में बीते दिनों सूबे में हुए प्रदर्शन के साथ किसी भी जनतान्त्रिक आन्दोलन को दबाना है।

नियमावली के तहत हड़ताल, बंद, प्रदर्शनों, दंगों व प्रतिवादों के दौरान लोक तथा निजी संपत्ति को पहुंचाए गए नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए नियम बनाए गए हैं। जुर्माना लगाने व संपत्ति के आंकलन के लिए दावा अधिकरण का गठन करने तथा प्रतिकर निर्धारित करने के नियम तय किए गए हैं।

योगी कैबिनेट के अन्य प्रस्ताव

6 अप्रैल को मुख्यमंत्री योगी अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक में 10 प्रस्ताव पारित हुए, जिसमे लखनऊ में मौजूद मंत्री शामिल हुए, जबकि बाकी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भागीदारी की।

योगी कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए दस प्रस्तावों में प्रदेश में शराब और पेट्रोल-डीजल को महंगा करनाशामिल है, जो रात 12 बजे लागू हो गया।

इसके अलावा महामारी रोग नियंत्रण अध्यादेश को मंजूरी, जिसमे कोरोना वारियर्स पर हमला या बदसलूकी पर छह माह से सात साल तक की जेल और 50 हजार से पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्राविधान है। 46 फल व सब्जियां मंडी शुल्क मुक्त, पेयजल मिशन के टेंडर स्वीकृति के अधिकारों का निर्धारण, गन्ना समितियों को आर्थिक मजबूती का नाम देकर समितियों को मिलने वाले कमीशन के स्थान पर अंशदान शब्द प्रयोग करना शामिल है।

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