आईटीसी हरिद्वार में मज़दूरों की वेतन कटौती का फरमान

ITC Haridwar

मज़दूरों में आक्रोश, यूनियनों ने किया विरोध, पीएम को भी भेजा पत्र

हरिद्वार। अब मज़दूरों की वेतन कटौती का दौर शुरू हो गया। कोरोना/लॉकडाउन में आवश्यक सेवा के तहत आईटीसी हरिद्वार में लगातार उत्पादन के बावजूद कम्पनी ने कई मज़दूरों के आधे वेतन मे कटौती कर दी है, जिससे मज़दूरों में व्यापक आक्रोश व्याप्त है। वेतन उन मज़दूरों का कटा है जो लॉकडाउन में फंसे होने के कारण कार्य पर उपस्थित होने में असमर्थ थे।

ज्ञात हो कि हरिद्वार में आईटीसी के तीन प्लांट हैं। खाद्य पदार्थ का उत्पादन होने के कारण तीनो प्लांट चलते रहे, लेकिन लॉकडाउन में फंसे होने के चलते कई मज़दूर कार्य पर उपस्थित नहीं हो सके थे। कम्पनी ने उनको वापस लाने का कोई प्रयास भी नहीं किया, लेकिन अब उसने उन मज़दूरों के अप्रैल माह का आधा वेतन कटाने का फरमान जारी कर दिया है।

इससे मज़दूरों में काफी आक्रोश व्याप्त है। इसके विरोध में तीनो प्लांट की यूनियनों- आईटीसी मज़दूर यूनियन,  फूड्स श्रमिक यूनियन, कर्मचारी कल्याण यूनियन हरिद्वार ने पत्र भेजकर विरोध जताया है। मज़दूर नेता किशोर बिष्ट ने प्रधान मंत्री को भी पत्र भेजा है।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड का हरिद्वार जिला रेड जोन में है। हालाँकि आईटीसी इस दौरान भी मुनाफा बटोरती रही, फिर भी मज़दूरों का वेतन कटाने पर आमादा है।

150 करोड़ का दान, मज़दूरों के पेट पर लात

मज़दूर नेताओं का कहना है कि इस कंपनी का असली चेहरा सबके सामने है, जो दिखावे के लिए 150 करोड़ का दान देती है और अपने ही कर्मचारियों के पेट को काटने में भी गुरेज नहीं करती। उनका कहना है कि सिडकुल की ही अन्य नामी कंपनी एंकर, हीरो आदि ने भी एक रुपये का प्रोडक्शन न होने के बाद भी अपने कर्मचारियों को पूरी तनख्वाह दी, जबकि बेहद संकट के बावजूद आईटीसी के मज़दूर संक्रमण का ख़तरा उठाकर भी लगातार उत्पादन करते रहे हैं, फिर भी वेतन कटा जा रहा है।

उन्होंने बताया कि आईटीसी ने अपने अन्य प्लांटों में भी यही कृत्य किया है।

प्रधानमंत्री, भारत सरकार को भेजा पत्र

श्रमिक किशोर बिष्ट द्वारा देश के प्रधानमंत्री को भेजे पत्र में लिखा है कि आईटीसी लिमिटेड हरिद्वार जो की एक नामी कंपनी है और इस कोरोना महामारी के समय भी रिकॉर्ड प्रोडक्शन कर रही है, उन कर्मचारियों की आधी सैलरी काट रही है जो लॉकडाउन की वजह से कंपनी नहीं आ पाए, जबकि सिडकुल की अन्य नामी कंपनियों जहाँ कोई प्रोडक्शन भी नहीं हो रहा है वो भी अपने कर्मचारियों को पूरी सैलरी दे रही हैं।

इस संकट की घड़ी में इस तरह का काम बहुत ही शर्मनाक है, जबकि केंद्र की गाइडलाइन से भी ज्यादा प्रतिशत में कर्मचारियों द्वारा रात दिन मेहनत कर प्लांट में मासिक औसत उत्पादन से तिगुना उत्पादन किया है। किसी पूर्व नोटिस द्वारा सूचित किये बिना कल दिनांक 4 मई को अप्रैल माह की सैलरी कटौती का नोटिस लगा दिया तथा मई में उपस्थित न होने वाले कर्मचारियों को दंडात्मक कार्यवाही का आदेश दे दिया जो कि पूर्ण रूप से इस आपदा के समय अवांछित है।

पत्र में लिखा है कि जो कंपनी कोरोना महामारी के समय सामाजिक उत्तरदायित्व को प्रदर्शित करते हुए सरकार को 150 करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता देने के लिए सभी देशवासियों के नजर में एक उदहारण प्रस्तुत किया था, अपने ही कर्मचारियों के पैसे काट कर क्या साबित कर रही है? क्या कोरोना महामारी से वो कर्मचारी प्रभावित नहीं हुए जो ड्यूटी करना चाहते थे लेकिन लॉकडाउन की वजह से ड्यूटी नहीं कर सके। इस विषय पर आप शीघ्र संज्ञान लेकर कर्मचारियों को न्याय दिलाएं।

यूनियनों ने भी जताया विरोध

आईटीसी मज़दूर यूनियन,  फूड्स श्रमिक यूनियन, कर्मचारी कल्याण यूनियन हरिद्वार ने पत्र भेजकर लॉकडाउन से फंसे मज़दूरों के कार्य पर उपस्थित ना हो पाने पर आधे माह की वेतन कटौती की नोटिस पर विरोध जताया है।

फूड्स श्रमिक यूनियन, आईटीसी हरिद्वार ने 5 मई को प्रबंधन को भेजे नोटिस में वेतन कटाने सम्बन्धी प्रबंधन के 4 मई की नोटिस पर आपत्ति प्रकट की है। पत्र में लिखा है कि नोटिस 4 मई को लगाई गई है, जबकि अप्रैल के आधे माह की वेतन कटौती की जा रही है, जो कि गलत है।

कंपनी ने ही नहीं दी आने की सुविधा

पर्सनल केयर फैक्ट्री, आईटीसी के श्रमिक नेता किशोर बिष्ट ने बताया कि 9 अप्रैल को प्लांट चलने की सूचना के बाद उन्होंने 10 अप्रैल को ही कम्पनी को पत्र लिखकर बता दिया था कि 25 मार्च को अचानक लॉकडाउन की घोषणा से अपने निवास स्थान देहरादून में फंस गए हैं, परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं है और हरिद्वार में माकन मालिक भी बाहर से किसी को आने से चिंतित हैं।

ऐसे में घर से ड्यूटी आने का प्रबंध किया जाए, लेकिन प्रबन्धन ने कोई व्यवस्थ नहीं की और अब बगैर पूर्व सूचना वेतन काटा जा रहा है। ऐसा ही कई श्रमिकों के साथ हो रहा है। जबकि मज़दूरों की इसमे कोई गलती नहीं है।

संकट का बोझ मज़दूरों पर

देश के प्रधानमंत्री ने 29 मार्च को घोषणा की थी कि लॉकडाउन की अवधि में किसी का वेतन नहीं कटा जाएगा। लेकिन यह घोषणा भी हवाहवाई ही साबित हो रही है। पिछले दरवाजे से कंपनियों को मनमर्जी करने की छूट मिल गई है। एक तरफ कोरोना महामारी, दूसरी ओर वेतन कटौती के दोहरे मार से मज़दूरों की कमर तोड़ने का खेल चल रहा है।

दरअसल कम्पनियाँ वर्तमान संकट का पूरा बोझ मज़दूरों पर डाल रही हैं। केंद्र व राज्य सरकारों का इसमें पूँजीपतियों को खुला समर्थन है।