दिल्ली: मुस्तफ़ाबाद में इमारत ढहने से 11 लोगों की मौत, विधायक बोले- विधानसभा में कई बार ये मुद्दा उठाया

घटनास्थल के पास पहुंचे मुस्तफ़ाबाद के विधायक मोहन सिंह बिष्ट ने कहा है कि इलाके में छह मंज़िला इमारतें बनी हुई हैं, जबकि यहां का बुनियादी ढांचा इतनी ऊंची इमारतों का बोझ नहीं सह सकता. लिहाज़ा ऐसे हादसों की आशंका बनी ही हुई है.
नई दिल्ली: दिल्ली के मुस्तफ़ाबाद इलाक़े में शनिवार (19 अप्रैल) को तड़के एक इमारत ढहने से करीब 11 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. द हिंदू की खबर के मुताबिक, इस इमारत की अलग-अलग मंजिलों पर कुल 22 लोग रहते थे. नीचे के फ्लोर पर तीन से चार दुकानें थीं, जबकि बाकी मंजिलों पर परिवार रहते थे.
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने इस घटना से हुई मौतों पर दुख जताया है और जांच शुरू करने की पुष्टि की है. खबर के अनुसार, इस हादसे के वक्त पड़ोस में रहने वाले लोगों ने भूकंप के झटका जैसा महसूस किया और कहा कि उनके नीचे की मंजिल हिल रही थी और जब उन लोगों ने बाहर देखा तो पाया कि बगल की पूरी इमारत मलबे में तब्दील हो गई है.
दैनिक भास्कर से बात करते हुए इस इलाके के एक निवासी सलीम अली ने बताया कि सीवर का गंदा पानी सालों से इमारतों की दीवारों में रिस रहा है और समय के साथ नमी ने बिल्डिंग को कमजोर कर दिया है, जिससे दीवारों में दरारें पड़ गई हैं. इसी वजह से हादसा हुआ. यहां चार से पांच इमारतों की हालत अब भी खतरनाक है.
घटनास्थल के पास पहुंचे मुस्तफ़ाबाद के विधायक मोहन सिंह बिष्ट ने कहा है कि इलाके में छह मंज़िला इमारतें बनी हुई हैं, जबकि यहां का बुनियादी ढांचा इतनी ऊंची इमारतों का बोझ नहीं सह सकता. लिहाज़ा ऐसे हादसों की आशंका बनी ही हुई है. उन्होंने कहा, ‘मैं पहले भी विधानसभा में ये मुद्दा उठा चुका हूं. यहां तो छह-छह मंज़िला इमारतें बन गई हैं. लेकिन यहां का बुनियादी ढांचा इन्हें बर्दाश्त नहीं कर सकता. जहां 20-25 घरों की जगह है. अगर यहां 100 घर बस जाएं तो ऐसे हादसे होंगे ही.’
उन्होंंने आगे बताया कि वे इस मुद्दे को उपराज्यपाल के सामने भी उठा चुके हैं. ऐसे में इस हालात के लिए ज़िम्मेदार अफ़सरों पर कार्रवाई ज़रूरी है. उन्होंने कहा, ‘आम आदमी पार्टी के शासन में भ्रष्टाचार की वजह से ये स्थिति बनी. अब भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. अफ़सरों को तो अब काम करना ही पड़ेगा.’ घटनास्थल पर पहुंचे आम आदमी पार्टी के नेता आदिल अहमद ख़ान ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा कि ये बेहद अफ़सोसनाक और गंभीर मामला है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार एमसीडी कमिश्नर अश्विनी कुमार ने हादसे वाली जगह का दौरा किया. निगम ने इस आपदा के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ ‘कड़ी कार्रवाई’ का वादा किया है. निकाय ने ये भी कहा है कि इमारत की संरचना भार सहने के लिए डिज़ाइन नहीं की गई थी. सर्वेक्षण में यह भी पता चला कि क्षेत्र की अन्य इमारतों में भी संरचनात्मक समस्याएं हो सकती हैं और उनमें पर्याप्त भार वहन करने वाले तत्व नहीं हो सकते हैं.
दूसरी तरफ जब इमारत के मालिक के बेटे चांद मोहम्मद से पूछताछ की गई तो पता चला की इमारत की मरम्मत का काम चल रहा था. उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता कुछ मरम्मत और पुनर्निर्माण का काम करवा रहे थे, जो दो-तीन दिन पहले शुरू हुआ था.’ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली में हर साल कई लाेगों की मौत इमारत गिरने से होती है. जब हादसा होता है तब सभी संबंधित एजेंसियों की ओर से कागजी कार्रवाई के नाम पर हो-हल्ला होता है. जनप्रतिनिधि भी बयानबाजी कर खानापूर्ति करते हैं. इसके बाद सब कुछ मौन की स्थिति में चला जाता है. अवैध निर्माण को लेकर हालात यह हैं कि संबंधित एजेंसियों के अधिकारी ले-देकर अपनी आंखें बंद कर लेते हैं.
अमर उजाला की मानें, तो राजधानी में करीब 1,700 अनधिकृत कॉलोनियां हैं जहां लाखों लोग रहते हैं. ये कॉलोनियां बिना सरकारी मंजूरी के विकसित हुईं और इनमें से कई में बुनियादी सुविधाएं जैसे पानी, बिजली और सीवरेज तक सीमित हैं. हाल के आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक दशक में दिल्ली में 76,000 से अधिक अवैध निर्माण के मामले सामने आए हैं, लेकिन कार्रवाई को देखा जाए तो आधे मामलों में भी ठीक तरह से नहीं हो सकी है. विशेष रूप से मुस्तफाबाद, सीलमपुर, जाफराबाद, सीमापुरी, जामिया, और पुरानी दिल्ली जैसे इलाकों में अवैध निर्माण की बाढ़ है.