एल्गार परिषद केस: सुप्रीम कोर्ट ने सुरेंद्र गाडलिंग, ज्योति जगताप की ज़मानत याचिका पर सुनवाई टाली

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सुप्रीम कोर्ट ने एल्गार परिषद मामले में गिरफ़्तार वकील सुरेंद्र गाडलिंग और कार्यकर्ता ज्योति जगताप की ज़मानत याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दी. साथ ही कार्यकर्ता महेश राउत को दी गई ज़मानत को चुनौती देने वाली एनआईए की याचिका पर सुनवाई भी टाल दी.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (27 मार्च) को एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग और कार्यकर्ता ज्योति जगताप की जमानत याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह के लिए स्थगित कर दी. समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एमएम सुंदरेश और राजेश बिंदल की पीठ ने कार्यकर्ता महेश राउत को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की याचिका पर सुनवाई भी स्थगित कर दी.

उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट ने जमानत दी थी, लेकिन एनआईए द्वारा शीर्ष अदालत में इसे चुनौती देने के लिए फैसले पर रोक लगाने की मांग के बाद आदेश पर रोक लगा दी गई थी. गाडलिंग पर माओवादियों को सहायता प्रदान करने और मामले में फरार लोगों सहित विभिन्न सह-आरोपियों के साथ कथित रूप से साजिश रचने का आरोप लगाया गया था. उन पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया गया था और अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि गाडलिंग ने भूमिगत माओवादी विद्रोहियों को सरकारी गतिविधियों और कुछ क्षेत्रों के मानचित्रों के बारे में गुप्त जानकारी प्रदान की थी.

कथित तौर पर उन्होंने माओवादियों से सुरजागढ़ खदानों के संचालन का विरोध करने को कहा और कई स्थानीय लोगों को आंदोलन में शामिल होने के लिए उकसाया. गाडलिंग 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित एल्गार परिषद मामले में भी शामिल है. पुलिस ने दावा किया कि भाषणों ने अगले दिन पुणे जिले के कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा भड़का दी.

हाईकोर्ट ने कहा था कि जगताप कबीर कला मंच (केकेएम) समूह की सक्रिय सदस्य हैं, जिसने 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में अपने मंचीय नाटक के दौरान न केवल आक्रामक, बल्कि अत्यधिक भड़काऊ नारे लगाए थे. कोर्ट ने कहा था, ‘हमारा मानना ​​है कि अपीलकर्ता (जगताप) के खिलाफ एनआईए के आरोपों या अभियोगों को प्रथम दृष्टया सत्य मानने के लिए उचित आधार हैं.’

एनआईए के अनुसार, केकेएम भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का एक मुखौटा संगठन है. हाईकोर्ट ने कार्यकर्ता द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें एक विशेष अदालत द्वारा फरवरी 2022 में उन्हें जमानत देने से इनकार करने के आदेश को चुनौती दी गई थी.

एनआईए की एक विशेष अदालत ने फरवरी 2022 में जगताप समेत एल्गार परिषद मामले के चार आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी. विशेष न्यायाधीश दिनेश ई. कोठालीकर ने दिल्ली विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हेनी बाबू एमटी और सांस्कृतिक समूह कबीर कला मंच के तीन सदस्यों सागर गोरखे, रमेश गायचोर और जगताप की याचिकाओं को खारिज कर दिया था.

मालूम हो कि एल्गार परिषद मामला पुणे में 31 दिसंबर 2017 को आयोजित गोष्ठी में कथित भड़काऊ भाषण से जुड़ा है. पुलिस का दावा है कि इस भाषण की वजह से अगले दिन शहर के बाहरी इलाके में स्थित भीमा-कोरेगांव युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई और इस संगोष्ठी का आयोजन करने वालों का संबंध कथित माओवादियों से था.

एनआईए ने 16 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है, जिनमें मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और शिक्षाविद शामिल हैं. इन सभी पर प्रतिबंधित सीपीआई (माओवादी) संगठन का हिस्सा होने का आरोप है. पुणे पुलिस ने यह भी दावा किया था कि आरोपियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘राजीव गांधी की तरह हत्या’ करने की योजना बनाई थी.  

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