बिजली के स्मार्ट मीटर के विरोध में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में धरना-प्रदर्शन

‘किसान एकता केन्द्र’ द्वारा स्मार्ट मीटर योजना के खिलाफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जन जागरूकता अभियान से शुरू हुए आन्दोलन को पूरे उत्तर प्रदेश में फैलाने की कोशिश चल रही है।
- सत्येन्द्र सिद्धार्थ की रिपोर्ट
‘किसान एकता केन्द्र’ ने स्मार्ट मीटर लगाने की योजना के खिलाफ सबसे पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आन्दोलन शुरू किया है जो अभी जारी है। स्मार्ट मीटर के खिलाफ यह आन्दोलन शामली, बागपत और मेरठ जिलों में सफलतापूर्वक पूरा हो चुका है। इस दौरान किसानों-मजदूरों की मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन किया गया। डीएम को अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा गया।
इस आन्दोलन को पूरे उत्तर प्रदेश में फैलाने की कोशिश चल रही है। अब इसे जल्दी ही सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, बुलंदशहर, मथुरा आदि जिलों में फैलाया जाएगा। इस आन्दोलन में किसानों और मजदूरों ने बढ़-चढ़ कर भागीदारी की। इसमें औरतों की हिस्सेदारी भी अच्छी-खासी रही। आन्दोलनकारियों ने सरकार की गलत नीतियों का जमकर विरोध किया और इनके खिलाफ नारेबाजी की। हर जगह संस्कृति कर्मियों ने जनता को उत्साहित करने के लिए क्रांतिकारी गीत गाये।

महीनों पहले शुरू हुई तैयारी
‘किसान एकता केन्द्र’ ने कई महीने से इस आन्दोलन की तैयारी शुरू कर दी थी। आन्दोलन की तैयारी के सिलसिले में सबसे पहले ‘किसान एकता केंद्र’ ने सरकार की स्मार्ट मीटर लगाने की योजना के खिलाफ जन जागरूकता अभियान चलाया। इसके लिए गाँव-गाँव में 36 बिरादरी के सभी मेहनतकशों के बीच साधारण भाषा में लिखी पुस्तिका और पर्चे को वितरित किया गया।
अभियान के दौरान किसानों-मजदूरों को बताया जाता है कि कैसे आजादी के बाद देश भर में उनकी मेहनत की कमाई से बिजली का विशालकाय ढाँचा खड़ा किया गया, 1980 के दशक तक सरकार की बिजली नीति जनता को फायदा पहुँचाती थी और बाद में नीतियों में बदलाव करके इसे पूँजीपतियों के मुनाफा कमाने का जरिया बना दिया गया। इसके चलते महँगी बिजली न केवल किसानों, बल्कि सभी मेहनतकशों के जी का जंजाल बनती गयी। बिजली के बिना हमारा काम भी नहीं चल सकता और इसके महँगे बिल भरना भी हमारे लिए सम्भव नहीं है।
‘किसान एकता केंद्र’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजीव तोमर ने बताया कि हमारा संगठन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुख्य रूप से उन भूमिहीन, छोटे और मध्यम किसानों के बीच काम करता है,जो यहाँ की कुल किसान आबादी का तकरीबन 86 फीसदी हैं। गन्ना इस इलाके की प्रमुख नकदी फसल है। यह दो बड़े किसान नेताओं— चौधरी चरण सिंह और महेंद्र सिंह टिकैत की भूमि है।
उन्होंने आगे कहा, गाँवों में प्रचार अभियान के दौरान हमें सहयोगी किसान-मजदूर मिले, जिन्होंने प्रचार अभियान में कार्यकर्ताओं की मदद की और इस मुद्दे पर संघर्ष में भागीदारी का वादा किया। इनसे बातचीत करके आन्दोलन की एक शुरुआती रूपरेखा और माँगपत्र तैयार कर लिया गया। स्मार्ट मीटर लगाने की योजना को रद्द करने, बिजली के निजीकरण पर पूरी तरह रोक लगाने, घरेलू बिजली कनेक्शन पर 300 यूनिट बिजली और ट्यूबवेल कनेक्शन की पूरी बिजली बिना शर्त बिल मुक्त करने समेत कुल 11 माँगें तय की गयीं।




दस सालों में बिजली बिलों में आठ गुना से ज्यादा की बढ़ोतरी
आन्दोलन का नेतृत्त्व करते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष संजीव तोमर ने यह भी बताया कि उत्तर प्रदेश में पिछले दस सालों में घरों और ट्यूबवेलों के बिजली बिलों में आठ गुना से ज्यादा की बढ़ोतरी हो चुकी है। देहात में घरेलू और ट्यूबवेल के बिजली कनेक्शनों का लोड कई गुना बढ़ाया गया है।
लोकसभा चुनाव के बाद से ही बिजली विभाग ने गाँवों में छापेमारी का अभियान छेड़ रखा है और किसानों-मजदूरों का उत्पीड़न हो रहा है। इस सब के चलते पूरे इलाके में आये दिन बिजली विभाग के कर्मचारियों और ग्रामीण जनता के बीच टकराव हो रहा है।
कुल मिलाकर बिजली, जो आज इनसान की बुनियादी जरूरत है, उसे उत्तर प्रदेश सरकार ने मेहनतकश जनता के शोषण-उत्पीड़न का औजार बना दिया है।
होना तो यह चाहिये था कि मेहनतकश जनता की तंगहाली को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार बिजली विभाग की छापेमारी पर रोक लगाती, बिजली कनेक्शनों के बढ़ाये गये लोड को वापस लेती और बिजली के दामों में कमी करती।
लेकिन, जिस तरह मक्कार दुकानदार फँसे हुए ग्राहक की चमड़ी भी उतार लेने की कोशिश करता है, उसी तरह प्रदेश सरकार ने घरों और ट्यूबवेलों पर बिजली के स्मार्ट मीटर लगाने की घोषणा कर दी। इसके जरिये सरकार बिजली का सामान बनाने वाली कम्पनियों को 72 हजार करोड़ रुपये का बाजार देने और बिजली के वितरण क्षेत्र का निजीकरण करने की तैयारी कर चुकी है। इससे बिजली के दामों में और ज्यादा बढ़ोतरी होना तथा कई लाख बिजली कर्मचारियों की नौकरी जाना तय है।

सबसे कम बिजली खर्च, सबसे महंगा बिजली बिल
‘किसान एकता केंद्र’ के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रवीण बालियान का कहना है कि उत्तर प्रदेश के लोग दुनिया में बिहार के बाद सबसे कम प्रति व्यक्ति बिजली खर्च करते हैं और आय के मुताबिक इनको दुनिया में सबसे महँगी बिजली मिलती है। बिलों में अनियमितता का आलम यह है, जो ग्रामीण परिवार महीने में बमुश्किल 5-7 हजार रुपये कमाते हैं, जिनकी बिजली की खपत न के बराबर है उनके कई-कई हजार रुपये के बिजली बिल भेज दिये जाते हैं। गाँव के हर पाँचवे-छठे घर का बिजली बिल गलत आता है। बिजली विभाग द्वारा जानबूझकर की जाने वाली इन भूलों को दुरुस्त करवाने के लिए गरीब किसान-मजदूर बिजली दफ्तरों के चक्कर काटते हैं, अफसरों की मिन्नतें करते हैं। रिश्वतखोरी का बाजार भी गर्म है, लेकिन समस्या का सही समाधान नहीं हो रहा है।
स्मार्ट मीटर धोखा है
अखबारों में खबर छपी कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्मार्ट मीटर लगने की शुरुआत बागपत जिले से होगी। साथ ही सरकार-परस्त अखबारों ने इसके फायदों की लम्बी फेहरिस्त छापनी शुरू कर दी। गाँव-गाँव में बैठे सरकार के पैरोकार स्मार्ट मीटर के फायदे गिनवाकर जनता को भरमाने लगे। ऐसे में हमने जनता के हक़-हुकुक की रक्षा के लिए स्मार्ट मीटर के खिलाफ आन्दोलन करने की योजना बनायी।
प्रवीण बालियान कहते हैं कि हमारा सहयोग कर रहे कुछ किसान सोचते थे कि मजदूरों के बीच अभियान चलाने का कोई फायदा नहीं है, क्योंकि वे किसानों का साथ नहीं देंगे। दूसरे किसानों ने इसका जबरदस्त विरोध किया और कहा कि आज बिजली के बिना किसी को पानी और भोजन मिलना भी सम्भव नहीं है, स्मार्ट मीटर और बिजली का निजीकरण हम सब के लिए रोटी-पानी दुश्वार कर देगा, मजदूर भी यह सच्चाई समझ सकते हैं।
कुछ ने यह भी कहा कि हम किसान खुद मजदूरों को अपना भाई नहीं मानते इसलिए मजदूर हमारे साथ नहीं आते। अगर हम अपनेपन से मजदूरों के पास जायें तो वे जरूर इस साझी लड़ाई में हमारा साथ देंगे।

‘किसान-मजदूर संघर्ष समिति’ द्वारा विरोध प्रदर्शन
काफी बहस के बाद मजदूरों के बीच आन्दोलन को फैलाने की बात सभी ने मान ली और बागपत जिले में संघर्ष के लिए एक साझी ‘किसान-मजदूर संघर्ष समिति’ बनायी गयी। इस समिति ने 18 सितम्बर को बागपत जिला मुख्यालय पर एक दिन का धरना और ज्ञापन देने का फैसला लिया। इसके लिए जिले के कुछ गाँवों में सघन और कुछ में व्यापक प्रचार किया गया। प्रचार के दौरान ही स्पष्ट हो गया कि मजदूर इस संघर्ष में किसानों के साथ मिलकर लड़ेंगे।
18 सितम्बर को सैंकड़ों मजदूर-किसान दर्जनों टैक्टरों में सवार होकर जिला मुख्यालय पहुँचे। वहाँ हुई सभा में आम किसानों और मजदूरों ने भाषण दिये। संघर्षों के गीत गाये गये। कई वक्ताओं ने स्मार्ट मीटर योजना का पर्दाफाश किया। किसान-मजदूर के भाईचारे पर भी जोर दिया गया। उन्होंने इसे राजनेताओं और भाषणबाजों से मुक्त 36 बिरादरी की अपनी पंचायत कहा और दावा किया कि यह भाईचारा कायम रहा तो स्मार्ट मीटर के खिलाफ लड़ाई जरूर जीती जाएगी।
संगठन के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने धरना स्थल पर सभी के लिए खिचड़ी और चाय का इंतजाम किया। सभी ने एक डेग में पका खाना एक ही पंगत में बैठकर खाया। इसने किसान-मजदूर के बीच की दूरी कम करने और जाति-धर्म के भेद को दूर करने में व्यवहारिक स्तर पर सकारात्मक भूमिका निभायी।
चुनौतियाँ भी हैं तमाम
आन्दोलन की कमियों के बारे में बताते हुए प्रवीण बालियान ने कहा कि बागपत के पूरे कार्यक्रम के बाद सार-संकलन के लिए हुई संघर्ष समिति की मीटिंग में मुख्य रूप से तीन कमियाँ और चुनौतियाँ चिन्हित की गयीं— पहली, अधिकतर लोगों को बिजली के बारे में सरकार की जनविरोधी नीति की गहरी समझ नहीं है जिसके चलते प्रचार बहुत असरदार नहीं रहता।
दूसरी, समिति ने महिलाओं की भागीदारी पर ध्यान नहीं दिया। तीसरी, समिति ने छोटे दुकानदारों को अपने साथ शामिल करने पर भी जोर नहीं दिया, जबकि उनकी माँग हमारे माँग-पत्र में शामिल है। समिति के सदस्य अपनी इन कमियों से लड़ रहे हैं और गाँव-गाँव में स्मार्ट मीटर के खिलाफ किसान-मजदूर संघर्ष समिति की इकाइयाँ गठित कर रहे हैं।
बागपत से आगे बढ़ा आंदोलन
बागपत के बाद पड़ोसी जिले शामली में बागपत की ही तर्ज पर ‘किसान मजदूर संघर्ष समिति’ का गठन किया गया। यहाँ भी मजदूरों के प्रति कुछ किसानों के मन में शक-शुबहा था, जिस पर खूब बहस हुई और आखिरकार मजदूरों के साथ भाईचारा कायम करने का फैसला लिया गया। इस जिले में मजदूरों के संगठन ‘मजदूर सहायता समिति’ ने स्मार्ट मीटर आन्दोलन साथ मिलकर लड़ने का वायदा किया।
28 सितम्बर को शामली जिला मुख्यालय पर एक दिन का धरना और डीएम को ज्ञापन दिया गया। शामली जिला मुख्यालय पर हुए इस धरने में मजदूर भाई किसानों के साथ न केवल ट्रैक्टरों पर सवार होकर आये, बल्कि अपने इ-रिक्शा, टैंपो आदि साधनों से भी आये। इस धरने में मजदूरों की संख्या किसानों के बराबर थी। ‘मजदूर सहायता समिति’ के आह्वान पर इनमें से अधिकतर मजदूर आये थे। अच्छी बात यह थी कि गाँव और शहर दोनों जगह से मजदूर संगठन की लगभग 50 मजदूर महिलाएं भी धरने में शामिल हुई और उनकी प्रतिनिधि अन्नू ने महिलाओं के मुद्दे भी उठाये।

चुनावी समर के बाद फैल रहा है आंदोलन
शामली के बाद इसी तरह का प्रचार अभियान और धरना कार्यक्रम मुजफ्फर नगर और सहारनपुर जिलों में करने की योजना थी, लेकिन उपचुनाव की आचार संहिता लागू हो जाने के कारण हमें अपना कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। आन्दोलन की अगली कड़ी के तौर पर 22 अक्टूबर को मेरठ के जिला मुख्यालय पर धरना और ज्ञापन देना तय हुआ।
मेरठ में ‘मजदूर सहायता समिति’ के साथियों ने स्मार्ट मीटर के खिलाफ जबरदस्त प्रचार अभियान चलाया। ‘किसान एकता केंद्र’ के कार्यकर्ताओं ने भी कई गाँवों में सघन प्रचार किया। 22 अक्टूबर को मेरठ में डीएम ऑफिस के सामने धरना दिया गया। मेरठ के धरने में मजदूरों की संख्या किसानों से भी ज्यादा थी। मजदूरों में भी महिला मजदूरों की संख्या अधिक थी।
यहाँ ‘किसान एकता केंद्र’ के अध्यक्ष संजीव तोमर, प्रवक्ता प्रवीण बालियान, ऋषभ त्यागी, और ‘मजदूर सहायता समिति’ के उत्कर्ष विश्वकर्मा, मोहित पुंडीर, जैनब, अजहर ने लोगों को संबोधित किया। गाँव के आम किसानों ने भी अपनी बात रखी। प्रवाह सांस्कृतिक टीम ने जन गीत गाये।
आन्दोलन जारी है और आगे बढ़ रहा है
प्रवीण बालियान ने तीन जिलों के आन्दोलन की समीक्षा करते हुए कहा कि हमने देखा, बिजली के मुद्दे पर गरीब किसान, खेत-मजदूर और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों ने आन्दोलन में प्रमुख भूमिका निभायी है। अमीर किसान हमारे साथ नहीं आये। हमने यह भी देखा है कि अगर मुद्दा साझा हो और हमारी कार्यशैली सही हो तो न केवल किसान-मजदूर, बल्कि छोटे दुकानदार भी साथ आ सकते हैं। अगर हम संजीदगी से महिलाओं में प्रचार करें तो वे भी हमारे आन्दोलन में शामिल हो सकती हैं। हमारा आन्दोलन अभी जारी है और फैल रहा है। हम इसे उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में फैलाने के लिए काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि प्रचार अभियान को और अधिक सशक्त बनाने की जरुरत है। इसके लिए दीवार लेखन, पोस्टर, सोशल मीडिया और अखबारों के इस्तेमाल पर जोर दिया जाएगा।
4 नवम्बर 2024