रुद्रपुर: श्रम भवन में हुड़दंग; बेहद शर्मनाक है कर्मचारी-अधिकारी में मारपीट की घटना?

श्रम भवन में बनी रही अराजकता। घटना बेहद दुखद और चिंतनीय है। विभाग द्वारा मामले को दबाने की कोशिश, लीपापोती व वीडीओ डिलीट करवाना संदेह पैदा करता है। जबकि घटना के जड़ की तलाश जरूरी है।
रूद्रपुर (उत्तराखंड)। आज 17 मई को उत्तराखंड के औद्योगिक राजधानी कहे जाने वाले उधम सिंह नगर के रुद्रपुर स्थित श्रम भवन में एक भयावह व शर्मनाक घटना सामने आई। विभाग के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने हंगामा खड़ा कर दिया और सहायक श्रम आयुक्त सहित कई अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ जमकर मारपीट की। इससे कार्यालय में हड़कंप मच गया।
श्रम भवन में तैनात अनुसेवक महेश नैनवाल की किसी बात पर सहायक श्रम आयुक्त उधम सिंह नगर के साथ बहसबाजी शुरू हुई, जिसने हंगामे का रूप ले लिया। कर्मचारी उस वक़्त नशे की हालत में था।
घटना के समय श्रम भवन में काफी भीड़ भाड़ थी। तमाम कंपनियों के विवादों से संबंधित वार्ताएं होनी थी, तो कुछ यूनियनों का वेरिफिकेशन संबंधित कार्य था।
बहस से मारपीट तक: क्या है घटाना?
मौके पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शी मजदूर साथियों ने बताया कि कर्मचारी महेश नैनवाल कथित रूप से अवकाश कटौती कर दिए जाने से नाराज था। इसी बात पर उसकी एएलसी महोदय से बहस शुरू हुई जो गाली गलौज और मारपीट तक पहुंच गई। इस बीच पूरे कार्यालय में अफरा-तफरी का माहौल बन गया। कई कर्मचारी विशेष रूप से महिला कर्मचारी वहां से भागते नजर आए।
उक्त कर्मचारी इतने गुस्से में था कि अन्य अधिकारियों जिसमें श्रम प्रवर्तन अधिकारी बाजपुर और डाटा ऑपरेटर सहित तमाम कर्मचारी भी थे, के साथ बुरी तरीके से मारपीट की, तमाम उपकरणों व वाहन को तोड़ा।
यह कर्मचारी काफ़ी वरिष्ठ है। लेकिन लोग बताते हैं कि वह नशे का आदी है।
“श्रम भवन नहीं घूसखोरी का अड्डा है”
इस दौरान कर्मचारी लगातार चिल्लाता रहा- यह सब भ्रष्ट अधिकारी हैं, एक-एक की पोल पट्टी मैं खोलूंगा, इनका पूरा काला चिट्ठा हमारे पास मौजूद है। कंपनी के एचआर 5 मिनट के लिए आते हैं और मोटा पैसा देकर जाते हैं, इसलिए सिर्फ उसकी सुनते हो जो रिश्वत देकर जाते हैं गरीब मजदूर की नहीं सुनते। यह श्रम भवन नहीं घूसखोरी का अड्डा है आदि। ये बातें वीडियो में भी दर्ज हैं।
कर्मचारी वीडियो डिलीट करवाते रहे
इस पूरी घटना के बाद जहां काफी अराजक स्थिति बनी हुई थी वहीं काफी देर बाद पुलिस आई और महेश नैनवाल को पकड़ कर ले गई। इस बीच तमाम मज़दूर साथियों और प्रत्यक्षदर्शियों ने वीडियो बनाएं लेकिन श्रम विभाग के कर्मचारियों ने ज्यादातर वीडियो डिलीट करवा दिए और पूरे मामले को दबाने की कोशिश की।
हालांकि पूरा मामला सीसीटीवी कैमरे में भी मौजूद है। फिर भी विभाग का कोई व्यक्ति कुछ बोलने को तैयार नहीं है। ऐसा लगता है कि विभाग द्वारा पुलिस में मामला भी दर्ज नहीं कराया गया। जो भी संदेह पैदा करता है।
मामला क्या है क्यों श्रम विभाग पूरे मामले को दबाने की कोशिश कर रहा है, यह सोचनीय विषय है।
श्रम विभाग में कोई सक्षम अधिकारी नहीं
उल्लेखनीय कि इस श्रम विभाग में लंबे समय से कोई भी सक्षम अधिकारी मौजूद नहीं है। उप श्रमयुक्त कार्यालय होने के बावजूद उप श्रम आयुक्त की नियमित तैनाती नहीं है। मौजूदा सहायक श्रम आयुक्त अभी एकदम नए हैं और ना तो उन्हें तमाम मामलों की जानकारी है और ना ही वेतन, बोनस, ग्रेच्युटी पेंशन जैसे अहम मुद्दों पर 2 साल तक सुनवाई का अधिकार ही है।
ऐसे में लंबे समय से श्रमिकों के तमाम मामले लटके हुए हैं निस्तारण नहीं हो रहे हैं, जिससे मजदूर पीड़ित है और परेशान भी हैं। कई बार सक्षम अधिकारियों की तैनाती की मांग होती रही है। बीते दिनों श्रमिक संयुक्त मोर्चा उधम सिंह नगर ने पुनः श्रम सचिव को पत्र लिखकर उप श्रम आयुक्त की तैनाती और सक्षम सहायक श्रमायुक्त की नियुक्ति की अपील की थी, लेकिन अभी तक उसपर कोई सुनवाई नहीं हुई।
विवाद की जड़ गुटबाजी तो नहीं?
इधर श्रम विभाग के भीतर कर्मचारियों में भी रोष है और आपस में एक दूसरे के प्रति द्वेष भी बढ़ रहा है। विभाग में गुटबाजी चरम पर है। कुछ कर्मचारियों की माने तो विभाग में पक्षपात होता है। किसी को बढ़ावा दिया जाता है और किसी के जायज और जरूरी मामले को भी तवज्जो नहीं दिया जाता है।
ऐसा लगता है कि मौजूदा विवाद की जड़ यहीं पर थी और मानसिक रूप से पीड़ित उक्त कर्मचारी ने नशे की हालत में अपने दिल का गुबार और भड़ास निकाला। हालांकि यह पूरी घटना बेहद दुखदाई और शर्मनाक है।
मज़दूरों के मामले लंबित रखने की स्थिति
यहां यह उल्लेखनीय है कि बीते दिनों पिछले सहायक श्रम आयुक्त का अचानक मुख्यमंत्री के आदेश पर इसलिए स्थानांतरण हो गया कि वह उद्योगपतियों की बात ठीक से नहीं सुन रहे थे। यह भी चर्चा है की मौजूदा सहायक श्रम आयुक्त मुख्यमंत्री के विश्वासपात्र हैं और उन्होंने विशेष रूप से इन्हें यहां पर प्रमोट करके बिठाया था।
एक अधिकारी ने बीते दिनों यह भी बताया की मुख्यमंत्री कार्यालय से यह मौखिक आदेश है कि मजदूरों के मसले पर बहुत ज्यादा कुछ करना नहीं है और किसी भी रूप में उद्योगपति पीड़ित नहीं होने चाहिए। यानी मुख्यमंत्री ने अपने गृह नगर में ऐसे हालात बना दिए हैं जिसमें मालिकों की मनमर्जी बेलगाम रहे।
यही वजह है कि ज्यादातर श्रम विवाद या तो लंबित हैं या फिर फटाफट श्रम न्यायालय भेज दिए जाते हैं। संराधान वार्ताएं महज औपचारिकता बन गई हैं। मज़दूरों के साथ छलावा जारी है।
बेहद चिंतनीय घटना
आज की घटना बेहद दुखद होने के साथ ही चिंतनीय भी है। एक प्रमुख कार्यालय में ऐसी घटना शर्मसार करने वाली है और विभाग द्वारा इस पूरे मामले को दबाने की कोशिश व लीपापोती और भी ज्यादा शर्मनाक है।
अब देखना है कि शासन स्तर पर इसपर क्या कार्रवाई होती है? क्या इस घटना से सरकार कोई सबक निकलेगी? क्या मज़दूरों के लंबित मामलों के समाधान की दिशा में मुख्यमंत्री महोदय विभाग को चाक-चौबंद करेंगे?