उत्तराखंड: चुनाव पूर्व न्यूनतम वेतन में मामूली वृद्धि का शोर; अब उसे घटाने का प्रयास

चुनावी समर में 25% न्यूनतम वेतन बढ़ाने का खूब शोर मचा। अब इस वृद्धि पर सेवयोजकों की आपत्ति के बाद 17 मई को बोर्ड की पुनरीक्षण बैठक पुनः बुलाई गई है…। जानें पूरा मामला क्या है-
यूं तो लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तराखंड में नान इंजीनियरिंग उद्योगों के लिए न्यूनतम वेतन का आनन-फानन में बोर्ड बैठाया गया और 25 फ़ीसदी वेतन बढ़ाने का शोर मचाया गया। लेकिन अब राज्य में चुनाव खत्म होने के बाद कथित 25 फीसदी वेतन वृद्धि को ही कुछ उद्योगपतियों की आपत्ति के बाद घटाने की तैयारी में 17 मई को बोर्ड की कथित रूप से पुनः बैठक बुलाई गई है।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड में 19 अप्रैल को लोकसभा का चुनाव होना था। उत्तराखंड न्यूनतम वेतन सलाहकार समिति के कथित परामर्श के बाद आर मीनाक्षी सुंदरम, सचिव, उत्तराखंड शासन, श्रम अनुभाग ने दिनांक 15 मार्च 2024 को उत्तराखडं राज्य के वाणिज्यिक अधिष्ठानों और उत्तराखंड के दुकानों में नियोजित श्रमिकों के लिए मजदूरी की न्यूनतम दरों को पुनरीक्षित कर 1 अप्रैल 2024 से बढ़ोतरी का शासनदेश जारी किया था।

5 साल बाद न्यूनतम वेतन में हुए इस बेहद मामूली वृद्धि के बावजूद मज़दूरों में काफी भ्रम की स्थिति है।
चुनावी समर में राज्य सरकार ने इसका खूब जोर-शोर से प्रचार किया। मीडिया ने ’25 फीसदी वेतन बढ़ा’ का खूब शोर मचाया। इसलिए मुश्किल से गुजर-बसर कर रहे तमाम मज़दूर इसका लाभ पाने की उम्मीद में हैं। कई जगह मज़दूरों के स्वतःस्फूर्त आंदोलन भी हो रहे हैं।
भाजपा सरकार की धोखाधड़ी की यह महज बानगी है! राज्य में चुनाव खत्म होते ही आम जनता पर पहली बड़ी चोट राज्य में बिजली बिलों में भारी वृद्धि के रूप में सामने आ चुकी है।
महज 25 फीसदी वृद्धि का खेल कैसे बना?
राज्य में चुनाव से ठीक पूर्व उत्तराखंड में न्यूनतम वेतन में वृद्धि संबंधी ‘उत्तराखंड न्यूनतम मजदूरी सलाहकार बोर्ड’ की बैठक 12.03.2024 को देहरादून में सचिव श्रम की अध्यक्षता में हुई थी।
वेतन पुनरीक्षण के लिए जिस बोर्ड का गठन किया गया उसमें सेवयोजक प्रतिनिधियों के साथ श्रमिक प्रतिनिधियों के तौर पर केवल आरएसएस-बीजेपी से जुड़ी भारतीय मजदूर संघ को ही भागीदार बनाया गया। बैठक में राज्य के श्रमायुक्त और अतिरिक्त श्रमायुक्त भी शामिल थे।
बोर्ड के प्रतिनिधि गणेश मेहरा के अनुसार उन्होंने 45 फीसदी न्यूनतम वेतन बढ़ाने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन सेवयोजकों के अलावा राज्य सरकार के प्रतिनिधियों ने ‘उद्योग हित’ में इसको खारिज कर दिया। समिति द्वारा विचार विमर्श के बाद न्यूनतम वेतन में 27 फीसदी की वृद्धि पर सहमति के बाद प्रस्ताव पारित हुआ, जो कि मिनिट्स में भी दर्ज है। और यह कहा गया कि मुख्यमंत्री जी एक-दो फीसदी और बढ़ाएंगे।
लेकिन दिनांक 15.03.2024 को जो शासनादेश जारी हुआ उसमें 25 फीसदी वेतन वृद्धि दर्ज है।
ध्यानतलब है कि राज्य में इंजीनियरिंग उद्योगों के लिए राज्य बनने के बाद से अबतक न्यूनतम वेतन घोषित नहीं हुआ। अन्य उद्योगों के लिए जब भी न्यूनतम वेतन पुनरीक्षण होता है, तो सरकार का कुतर्क सामने आता है कि वेतन ज्यादा बढ़ाने से उद्योग पलायन कर जाएंगे!
स्पष्ट रूप से यह मज़दूरों के साथ धोखा है और खुलेआम पूँजीपतियों के हित को दर्शाता है।
चोट पर चोट! तय कुछ, हुआ कुछ
वैसे तो बेलगाम महँगाई और पहले से कम वेतन के समय न्यूनतम वेतन में यह वृद्धि बेहद कम है। इसके बावजूद बोर्ड बैठक में जितना ते हुआ उससे भी कम बढ़ा!
बोर्ड बैठक की कार्यवृत्ति में लिखा गया कि- “उपस्थिति सेवायोजक प्रतिनिधियों द्वारा समिति की संस्तुति के क्रम में राज्य में अधिसूचित 57 नियोजनों हेतु न्यूनतम वेतन में 25% की वृद्धि किए जाने पर सहमति व्यक्त की गई।“
उसमें आगे यह भी लिखा कि- “श्रमिक प्रतिनिधियों द्वारा पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों में श्रमिकों की भिन्न-भिन्न कार्यदशाओं तथा बढ़ती महंगाई एवं राज्य में सरकार द्वारा चलाए जा रहे इंडस्ट्रियल मीट कार्यक्रम के कारण बढ़ते हुए उद्योगों को देखते हुए उचित न्यूनतम वेतन बढ़ोतरी किए जाने का सुझाव दिया गया तथा समिति द्वारा प्रस्तावित न्यूनतम वेतन में 27 फ़ीसदी की वृद्धि को वर्तमान परिस्थितियों में श्रमिक हित में न होने का कथन किया गया।”
यानी वेतन वृद्धि में कमी भी श्रमिक हित में हो गया, जय हो सरकार की!
सरकार ने ‘श्रमिक हित’ में “उत्तराखंड राज्य में अधिसूचित 57 नियोजनों हेतु पूर्व निर्धारित न्यूनतम वेतन+वर्तमान परिवर्तनी महंगाई भत्ते के कुल योग पर 25 फ़ीसदी वृद्धि किए जाने का निर्णय लिया।



मज़दूर भ्रम की स्थिति में: आखिर क्या है माजरा?
यह पूरा मामला ही काफी धोखाधड़ी वाला है।
- इंजीनियरिंग उद्योगों (ऑटोमोबाईल, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि) को छोड़कर यह बाकी उद्योगों के लिए है।
- वर्तमान महंगाई की दृष्टि से यह वृद्धि पहले से ही पहले से कम न्यूनतम वेतन वाले इस राज्य में बेहद कम है।
- इसके निर्धारण के लिए जिस बोर्ड का गठन किया गया उसमें श्रमिक प्रतिनिधियों के तौर पर केवल आरएसएस-बीजेपी से जुड़ी भारतीय मजदूर संघ को ही भागीदार बनाया गया।
- न्यूनतम 45 फीसदी वेतन वृद्धि की माँग, बोर्ड की बैठक में 27 फीसदी हुआ, लेकिन जब अधिसूचना जारी हुई तो वह वृद्धि दो फीसदी और घटकर 25 फीसदी हो गई।
- इस न्यूनतम वेतन को दो हिस्सों में वितरित किया गया है- एक लाख से अधिक आबादी वाला क्षेत्र और दूसरा इससे कम आबादी वाला क्षेत्र।
- उत्तराखंड के ज्यादातर औद्योगिक क्षेत्र का दायरा इस रूप में बनाया गया है कि वह एक लाख से कम आबादी वाले क्षेत्र में आ जाए, हालांकि वास्तविकता भिन्न है। जैसे पंतनगर का औद्योगिक क्षेत्र सिड़कुल कम आबादी वाले क्षेत्र में रखा गया है, जबकि तकनीकी रूप से भले ही पंतनगर हो लेकिन पंतनगर और रुद्रपुर मिलकर यह क्षेत्र है और हर हाल में यहाँ की आबादी एक लाख से ज्यादा है। इसी तरीके से सिडकुल सितारगंज, काशीपुर, कोटद्वार आदि भी कम आबादी वाले क्षेत्र में आ गए हैं।
- भयावह रूप ले चुकी महँगाई और उद्योगों के बेलगाम मुनाफे के बीच यह वृद्धि नाकाफ़ी है।
- यह मामूली वृद्धि भी उद्योगपतियों को रास नहीं आ रही है, ज्यादातर कारखाने में अभी तक इसे लागू नहीं किया गया और इसी बीच 6 नियोक्ताओं द्वारा इस पर आपत्ति दर्ज कर दी गई।

उद्योगपति संतुष्ट नहीं, 17 मई को बैठक
यह कम वेतन वृद्धि भी उद्योगपतियों के लिए ‘भारी’ है। चुनाव के खत्म होते ही उत्तराखंड शासन की ओर से कथित रूप से 17 मई को बोर्ड की पुनः बैठक आपत्तियों के निस्तारण के लिए बुलाई गई है।
आपत्ति दर्ज कराने वाले सेवायोजक प्रतिनिधियों में संदीप साहनी, अध्यक्ष, होटल व रेस्टोरेंट एसोसिएशन, मसूरी; डॉ हरिन्द्र के गर्ग, चैयरमैन, नेशनल काउंसिल, SMSU इन्टरनेशनल इंडस्ट्रीज एण्ड ट्रैड चैम्बर; संजय अग्रवाल, अध्यक्ष, मसूरी होटल एसोसिएशन, मसूरी; विजय सिंह तोमर अध्यक्ष, लघु उद्योग भारती, सेलाकुई, देहरादून; पंकज गुप्ता, अध्यक्ष, इंडस्ट्रीज एसोसिएशन ऑफ उत्तराखण्ड, देहरादून; गौतम कपूर, जनरल सेक्रेटरी, भगवानपुर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन, हरिद्वार हैं।
उपरोक्त आपत्ति दर्ज कराने वाले सेवायोजकों में से एक विजय सिंह तोमर न्यूनतम पुनरीक्षित वेतन तय करने वाली बोर्ड के सदस्य हैं लेकिन बोर्ड की बैठक में शामिल नहीं हुए थे। बोर्ड के नियमानुसार कोई सदस्य यदि बैठक में शामिल नहीं होता है तो वह आपत्ति भी दर्ज नहीं कर सकता है। महोदय बोर्ड की बैठक में शामिल नहीं हुए लेकिन आपत्ति दर्ज भी कर दी और सरकार ने उसे मान लिया, बैठक के लिए आमंत्रित भी कर दिया।
3 मई 2024 को उत्तराखंड शासन की ओर से बोर्ड प्रतिनिधियों को भेजे गए पत्र में दर्ज है कि “दिनांक 1 अप्रैल 2024 से लागू विभिन्न नियोजनों में नियोजित कर्मचारियों के लिए पुनरीक्षित मजदूरी की न्यूनतम दरों के संबंध में विभिन्न सेवायोजक/श्रमिक संगठनों से प्राप्त आपत्तियों के क्रम में संबंधित सेवायोजक/श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श हेतु सचिव महोदय की अध्यक्षता में एक बैठक दिनांक 17.05.2024 को देहरादून में बुलाई गई है।”

तो यह सारा गोल-माल चल रहा है, मजदूरों के साथ धोखाधड़ियां चल रही हैं। और चूंकि अब चुनाव समाप्त हो चुका है इसलिए 25 फीसदी की जो मामूली वृद्धि हुई थी उसे और भी काम करने के लिए पूरी हद्धार्मिता से सरकार काम कर सकती है।

₹26 हजार न्यूनतम मज़दूरी की माँग जायज
गौरतलब है कि भारतीय श्रम आयोग और देश की सर्वोच्च अदालत द्वारा न्यूनतम वेतन निर्धारण के लिए जो मानदंड बनाए गए हैं, उसके अनुसार देश के लगभग सभी श्रम संगठन न्यूनतम मजदूरी 26000 रुपए से 30000 रुपए तक की मांग करते रहे हैं। और यहां 12-13 हजार रुपए मासिक वेतन भी देना गवारा नहीं हो रहा है।
यही नहीं उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से इंजीनियरिंग उद्योगों के लिए आज तक न्यूनतम वेतन के लिए ना तो बोर्ड का गठन हुआ न ही न्यूनतम वेतन घोषित हुआ। और मज़दूर 24 साल पुराने न्यूनतम वेतन पर खड़े हैं जिसमें परिवर्तनीय महंगाई भत्ता जुड़ते-जलते 11-12 हजार तक पहुंचा है। जबकि देश में महँगाई सुरस के मुंह की तरह बढ़ते हुए बेइंतहाँ हो चुकी है।
इस दुर्दशा की वजह क्या है?
मज़दूरों के साथ ये सब जो धोखाधड़ी चल रही है, उसका मूल कारण यही है कि मज़दूर बंटे-बिखरे हुए हैं, उनका ध्यान अपने हक़-अधिकार की ओर नहीं है। आज मज़दूर आंदोलन बेहद कमजोर स्थिति में है। और इसलिए खुलेआम सरकार की मनमानी सामने है।