सीवर सफाई में 3 सफाई मज़दूरों सहित 4 की मौत; ‘गंदे लोगों’ का अस्पताल ने नहीं किया इलाज

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शरीर में मल लगने से डॉक्टर ने दूर से भगाया। हमारी जरूरत लोगों को तब होती है जब गंदगी साफ करना हो। उसके बाद लोग हमें देखना भी पसंद नहीं करते। -सफाई कर्मी

मुगलसराय (उत्तर प्रदेश)। बगैर सुरक्षा उपकरण, जान जोखिम में डालकर सीवर की सफाई के दौरान सफाईकर्मियों की मौत का सिलसिला जारी है। इसी कड़ी में चंदौली जिले के मुगलसराय में तीन सफाई कर्मचारियों सहित चार लोगों की मौत हो गई। चौथा मृतक मल निकालने का काम हो रहे घर का एक लड़का था। वाराणसी मंडल में दो महीने के भीतर यह दूसरी घटना है।

मुगलसराय के यादव हॉस्पिटल में अगर पीड़ितों को ऑक्सीजन उपलब्ध करा दिया जाता तो वे बच सकते थे। मगर पैसे वालों के इलाज के लिए बड़ी निजी हॉस्पिटल में मल निकालने वाले मामूली सफाई कर्मचारियों को अपने यहां भर्ती करना मुनासिब नहीं समझा। इससे उनका देहांत हो गया।

प्रत्यक्षदर्शी बताते हैं कि समय पर इलाज मिलता तो उनमें से एक सफाईकर्मी विनोद की जान बच सकती थी, लेकिन मुगलसराय स्थित एक बड़े नर्सिंग होम ने विनोद का भर्ती कर इलाज करने से मना कर दिया क्योंकि सेप्टिक टैंक में गिरने से वह गंदा हो गया था। ट्रामा सेंटर बीएचयू पहुंचने पर उसने दम तोड़ दिया।

प्रशासनिक अमला और अस्पताल की गैर जिम्मेदाराना हरकत की वजह से चार लोगों की जिंदगी चली गई। किसी भी मैन स्ट्रीम मीडिया में यह खबर नहीं बना। कोई भी मुआवजा इन परिवारों को अभी तक मुहैया करने की बात आधिकारिक रूप से नहीं किया गया।

ऐसे गई सफाई मज़दूरों की जान

बुधवार दिनांक 8 मई की रात में ग्यारह बजे के करीब सफाई मज़दूर कुंदन (45 वर्ष) लोहा (22 वर्ष) विनोद (40 वर्ष) तथा दीपू रावत (30 वर्ष) मुगलसराय के प्लाट नंबर दो न्यू महाल निवासी भरत जायसवाल के घर, सेफ्टिक टैंक की सफाई करने पहुंचे। ये सभी मुगलसराय के काली महाल बस्ती के डोम समाज से थे।

प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि मजदूरों ने सेफ्टिक टैंक का ढक्कन दोपहर में ही आकर खोल दिया था ताकि गैस गैस निकल जाए। उसके बाद रात में वे लोग सेफ्टिक टैंक साफ करने के लिए आए थे।

ग्यारह बजे सफाई के लिए पहला कर्मचारी अंदर घुसा तो अंदर ही रह गया। उसके बाद दूसरा कर्मी अंदर गया और वह भी नहीं निकल पाया। इस बीच तीसरा सफाई कर्मचारी बचाने उतरा, उसने अंदर से बचाने के लिए आवाज लगाई, आवाज सुनकर गृहस्वामी का बेटा अंकुर उसे बचाने दौड़ा। तत्काल रस्सी वगैरह नहीं दिखी तो जल्दबाजी में उसने बेड सीट को अपनी कमर में बांध कर दूसरा छोर अपने पिता को पकड़ाकर आनन-फानन में टैंक में उतर गया। लेकिन सही तरीके से बंधे न होने के कारण चादर छूट गया और वह भी टैंक में समां गया।

घटना होते ही लोगों ने प्रशासन को सूचना दी लेकिन बचावकर्मी आधे घंटे बाद आए। इसबीच बस्ती के लोगों की मदद से सेफ्टिक टैंक से चारों को बाहर निकाल लिया गया था। बाद में लोग उन्हें लेकर अस्पताल भागे।

ज़िंदा बचे सफाईकर्मी दीपू ने बताया  

उन तीन मृतक मजदूरों के साथ चौथे सफाई मजदूर दीपू रावत भी सेफ्टिक टैंक सफाई करने गए थे, लेकिन वे बच गए। दीपू ने बताया कि ‘मालिक ने हमें बताया था कि आठ फिट गहरा है लेकिन मैंने और मेरे भाई विनोद ने जांच की तो वह कुछ और गहरा था। हम लोगों ने ग्यारह बजे काम में हाथ लगाया। करीब 12 से 17 मिनट में सेफ्टिक टैंक को आधा खाली कर दिया। फिर गहराई नापी गई।

‘जब पानी में घुसकर साफ करने भर का हो गया तो सबसे पहले सैप्टिक टैंक में एक लड़के लोहा को घुसाया गया। दो टीन भरकर मलबा निकालने के बाद वह छटपटाने लगा। रस्सी से मलबा खींच रहें दूसरे मजदूर कुंदन ने हमें आवाज दी। हम जब तक आते कुंदन ने लोहा को बचाने के लिए रस्सी से ऊपर खींचने का प्रयास किया लेकिन वह भी इस प्रयास में नीचे गिर चुके थे।

‘जब दो लोग अंदर गिर गये तो मैं घरवालों को फोन करने के लिए मैं बाहर आ गया और घरवालों को फोन से सूचना देने लगा। इसी बीच विनोद भी उन दोनों को बचाने के लिए अंदर गया और वह भी अंदर ही रह गया। आखिरी में मकान मालिक का लड़का अपनी कमर में चादर (बेड सीट) बांधकर उतरा और वह भी अंदर रह गया।’

दीपू बताते हैं कि ‘घटना के बाद उनके घर के ही दो लड़के घटनास्थल पर पहुंचे और सेफ्टिक टैंक से लोगों को बाहर निकाला था। किसी और ने कोई मदद नहीं की।’ कहा कि कि ‘हम लोगों ने शुरू में ही मालिक से सीढ़ी मांगी थी लेकिन उन्होंने नहीं दिया।’

शरीर पर मल लगी होने से निजी अस्पताल ने नहीं किया भर्ती 

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार विनोद को जब सेफ्टिक टैंक से बाहर निकाला गया तो उनकी सांसें चल रहीं थीं। उन्हें मुगलसराय के एक नामी चिकित्सक यादव हास्पिटल ले गये लेकिन उन्होंने दूर से ही बनारस ट्रामा सेंटर में ले जाने के कहा। ट्रामा सेंटर पहुँचने तक एक घंटे का समय बीत चुका था और इलाज में देर होने के कारण पीड़ितों ने अपनी जान गंवा दी।

सफाईकर्मी दीपू का कहना है कि अस्पताल वाले चाहते तो कम से कम विनोद की जान बच सकती थी, लेकिन हमारी जरूरत लोगों को तब होती है जब गंदगी साफ करना हो। उसके बाद लोग हमें देखना भी पसंद नहीं करते।

मृतक सफाईकर्मियों के परिवारवालों ने आरोप लगाया कि ‘हम लोगों से ठेके पर काम करवाया जाता है जिसमें मात्र 8-10 हजार रुपये महीने में मिलते हैं। ठेकेदार काम तो रोज समय पर करवाते हैं लेकिन मज़दूरी समय पर नहीं देते।। परिवार चलाने के लिए मजबूरीवश हम लोग अपनी जान जोखिम में डालकर इधर-उधर काम करते हैं।’

सफाईकर्मियों की मौत का बढ़ता आँकड़ा

आंकड़े बताते हैं कि सीवर सफाई के दौरान पिछले दिनों में मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। पिछले पांच सालों के सरकारी आंकड़ों के अनुसार सीवर सफाई के दौरान सन 2019 में 117 मौतें, 2020 में 22 मौतें, 2021 में 58 मौतें, 2022 में 66 मौतें, 2023 में 09 मौतें दर्ज की गईं।

बार-बार होने वाली मौतों से भी प्रशासन की आंखें नहीं खुल रही हैं। ज्यादातर मौतों में ठेकेदार स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर रिपोर्ट दर्ज होने ही नहीं देते।

पिछले महीने प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र में सीवर के गहरे मेनहोल में घुसने से एक सफाई कर्मचारी की मौत जिस लापरवाही से हुई थी उससे साफ जाहिर है कि अन्य जगहों पर उनकी स्थिति कितनी बदतर होगी।

क्या हैं सीवर सफाई का कानून 

कानून के मुताबिक, सफ़ाई एजेंसियों को सफ़ाई कर्मचारियों को मास्क, दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक उपकरण देना ज़रूरी है। हालांकि, अक्सर एजेंसियां ऐसा नहीं करतीं और कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा के सीवरों में उतरना पड़ता है। असुरक्षित सफ़ाई करवाना कानूनी अपराध है।

सुप्रीम कोर्ट की 2013 की गाइडलाइन में सीवर सफाई के लिए 45 प्रकार के सुरक्षा उपकरण मुहैया कराए जाने की बात की गई है लेकिन वह मात्र कागजों तक सीमित है। हकीकत यह है कि सफाईकर्मियों के पास हैंड ग्लब्स तक नहीं होता। आक्सीजन सिलेंडर और अन्य सुरक्षा उपकरण तो दूर की बात है।

वर्ष 2013 में संसद ने मैनुअल स्कैवेंजर्स और उनके पुनर्वास के रूप में रोज़गार का निषेध अधिनियम बनाया।  इस अधिनियम के अंतर्गत यह प्रावधान है कि सीवर लाइनों या सेप्टिक टैंकों की सफ़ाई के लिए किसी भी व्यक्ति को सीवर में खतरनाक तरीके से उतारना या शामिल करना गैरकानूनी है।