भारत: कैसे हो इलाज? मोदी सरकार का स्वास्थ्य सेवा पर ख़र्च कम; प्रति व्यक्ति आय भी कम

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स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च जीडीपी का 1.2 प्रतिशत, जबकि आम लोगों की जेब से लगने वाला खर्च अधिक; सरकारी पहल अब तक जरूरतमंद लोगों को सेवाएं देने में विफल रहीं –रिपोर्ट

नई दिल्ली: एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश की स्वास्थ्य सेवा को महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.

रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य देखभाल पर सरकारी खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 1.2 प्रतिशत है, जबकि इस पर आम लोगों की अपनी जेब से लगने वाला खर्च अधिक है. लांसेट ने अपनी नई रिपोर्ट में कहा है कि प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज पर प्रमुख पहल अब तक जरूरतमंद लोगों को सेवाएं देने में विफल रही हैं.

दरअसल, जी-20 देशों में स्वास्थ्य सेवा पर भारत का खर्च सबसे कम है. इसके अलावा, जी-20 में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद इस समूह में भारत की प्रति व्यक्ति आय भी सबसे कम है.

‘भारत में चुनाव: डेटा और पारदर्शिता के मायने’ नामक शीर्षक वाले लेख में लांसेट ने कहा है कि हेल्थकेयर की पहुंच और गुणवत्ता दोनों में लगातार असमानता अच्छी तरह से पहचानी जाती है. लेकिन भारत के सामने एक बड़ी बाधा स्वास्थ्य डेटा और डेटा पारदर्शिता की कमी से संबंधित है, जिससा अधिकांश भारतीयों को पता तक नहीं है.

रिपोर्ट के अनुसार ताजा और विश्वसनीय डेटा की कमी लोकतांत्रिक निर्णय लेने में बाधा बनती है और 2047 तक विकसित भारत के सरकार के दृष्टिकोण में रुकावट है. इसमें कहा गया है कि स्वास्थ्य नीति, योजना और मैनेजमेंट के लिए सटीक और अपडेट डेटा जरूरी हैं, लेकिन भारत में ऐसे डेटा के संग्रह और प्रकाशन में गंभीर रुकावटें आई हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 महामारी के कारण 2021 की जनगणना में देरी हुई. ऐसा 150 सालों में पहली बार हुआ जब भारत या उसके नागरिकों पर कोई आधिकारिक व्यापक डेटा के बिना पूरा एक दशक बीत चुका है. लांसेट ने बताया है कि 2024 में एक इलेक्ट्रॉनिक सर्वे कराने वाली अगली जनगणना का वादा अभी तक पूरा नहीं हुआ है.

जर्नल में आगे कहा गया है, ‘जनगणना सभी राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय हेल्थ सर्वे का भी आधार है. उदाहरण के लिए, नेशनल सैंपल सर्व संगठन जेब से किए जाने वाले खर्च का समय-समय पर मापन ओवरड्यू है और इसे करने की कोई योजना नहीं है. 2021 के लिए सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम सर्वे रिपोर्ट में देरी क्यों हुई है? या गरीबी सर्वे पब्लिक डोमेन में क्यों नहीं हैं? इसका कोई कारण नहीं बताया गया है.’

लांसेट रिपोर्ट में जनसंख्या विज्ञान संस्थान के निदेशक केएस जेम्स के इस्तीफे का भी जिक्र है. जेम्स ने भारत के सबसे मजबूत डेटा स्रोतों में से एक – राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण का नेतृत्व किया था. स्वास्थ्य मंत्रालय ने उनके इस्तीफे की वजह भर्ती में अनियमितता बताई थी, लेकिन ख़बरों ने उनकी बर्खास्तगी को सर्वेक्षण के नतीजों से जोड़ा है, जो सरकार के अनुकूल नहीं थे.

द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने भर्ती में अनियमितता का हवाला देते हुए उन्हें निलंबित कर दिया था.

सूत्रों ने द वायर को बताया कि जेम्स को सरकार ने पहले इस्तीफा देने के लिए कहा था क्योंकि सरकार इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस) द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में सामने आए कुछ डेटासेटों से खुश नहीं थी. आईआईपीएस राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण तैयार करता है. यह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आता है.

एनएफएचएस-5 ने सरकार के लिए असुविधाजनक कई डेटा सेट पेश किए थे. उदाहरण के लिए, इससे पता चला था कि भारत अभी खुले में शौच से मुक्त नहीं है. जबकि यह दावा प्रधानमंत्री मोदी सहित भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार अक्सर करती रहती है.

एनएफएचएस-5 ने बताया था कि उन्नीस प्रतिशत परिवार किसी भी शौचालय सुविधा का उपयोग नहीं करते हैं, जिसका अर्थ है कि वे खुले में शौच करते हैं. इसमें कहा गया था कि लक्षद्वीप को छोड़कर देश का एक भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ऐसा नहीं है, जहां 100 प्रतिशत आबादी के पास शौचालय है.

एनएफएचएस-5 ने यह भी दिखाया था कि 40 प्रतिशत से अधिक घरों में स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन तक पहुंच नहीं थी. इससे उज्ज्वला योजना की सफलता के दावों पर सवाल खड़ा हो गया था. इसमें बताया गया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में आधी से अधिक आबादी 57 प्रतिशत, के पास एलपीजी या प्राकृतिक गैस तक पहुंच नहीं है.

भारत में कोविड-19 से मरने वालों की संख्या की विश्वसनीयता सवालों के घेरे में है,  जहां आधिकारिक आंकड़े अंतरराष्ट्रीय अनुमानों से काफी कम हैं. 2021 नागरिक पंजीकरण रिपोर्ट और सैंपल पंजीकरण प्रणाली सर्वेक्षण जैसी प्रमुख रिपोर्टें अभी तक प्रकाशित नहीं हुई हैं, जिससे डेटा पारदर्शिता के बारे में चिंताएं बढ़ गई हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के और विश्वसनीय डेटा तक पहुंच के बिना, लोकतांत्रिक विकल्प कमज़ोर हैं.

यह कहता है, ‘भारत के लिए यह उचित होगा कि वह डेटा के साथ नेतृत्व करने की आकांक्षा रखे और इसके उपयोग से न डरे. डेटा की कमी के माध्यम से अस्पष्ट करने के व्यवस्थित प्रयास का मतलब है कि भारतीय लोगों को पूरी तरह से सूचित नहीं किया जा रहा है.’

द वायर से साभार

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