केंद्र सरकार ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को किस्तों में कर रही है ख़त्म

MGNREGA-workrs

ह्यूमेन राइट्स फोरम और LIB टेक की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार मनरेगा के तहत ग्रामीण इलाकों में कार्यरत मज़दूरों के जॉब कार्ड और नाम में भारी कटौती की जा रही है।

वित्तीय वर्ष 2022 – 23 के दौरान देश के अलग-अलग राज्यों से मनरेगा के तहत काम कर रहें मज़दूरों के जॉब कार्ड और उनके नाम लिस्ट से हटाए जाने की ख़बरें लगातार आ रही हैं.

ह्यूमेन राइट्स फोरम(HRF) और LIB टेक की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना(MGNREGA ) के तहत देश के सुदूर ग्रामीण इलाकों में काम कर रहे लोगों के जॉब कार्ड और काम करने वाले मज़दूरों के नाम में भारी कटौती की जा रही है.

आंध्र प्रदेश के पार्वतीपुरम मनयाम जिले के गावों में ह्यूमन राइट्स फोरम और LIB टेक के तीन सदस्यीय टीम ने मनरेगा से हटाए जा रहे जॉब कार्ड एवं नामों की जांच करने के लिए दौरा किया.

LIB टेक जो की शोधकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक ग्रुप है, द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट में यह बताया गया है की आंध्र प्रदेश के साथ-साथ देश के अलग-अलग राज्यों में मनरेगा से मज़दूरों के नाम भरी संख्या में हटाए जा रहे हैं.रिपोर्ट के अनुसार अकेले आंध्र प्रदेश से वर्ष 2022 -23 के दौरान 77 .9 लाख मज़दूरों के जॉब कार्ड और नामों को निरस्त कर दिया गया है,जो की मज़दूरों की कुल संख्या 1.22 करोड़ का 59 .6 % है.

गांवों के दौरे पर गई टीम के सदस्यों ने बताया की हमने तीन गांवों के उन 30 मज़दूरों से बात की जिनके नाम काम करने वालों के लिस्ट से हटा दिए गए है. उनके नाम नरेगा के कामगारों के लिस्ट से हटाए जाने के पीछे का कारण ‘काम न करने की इच्छा’,’व्यक्ति की मृत्यु’ और ‘पंचायत में उसका न पाया जाना’ बताया गया है.जबकि LIB टेक के सदस्यों ने मात्र 5 लोगों के मामलें में इन कारणों को सच पाया बाकि 25 लोगों के मामलें में ये पूरी तरह से झूठ पाया गया.

चिंतालापाडु गांव के 29 वर्षीय मज़दूर कोलक रंगाराव ने बताया की” मेरा नाम भी लिस्ट से हटा दिया गया है.जब मैंने कारण पूछा तो बोला गया की इस नाम के व्यक्ति की मृत्यु को चुकी है”.

आरिका चुक्कामा जो दूरबील गावं के रहने वाले है ने बताया की उनको काम की बहुत जरुरत है,लेकिन उनका नाम भी लिस्ट से हटा दिया गया है,और बोला गया की ये व्यक्ति अब नरेगा के तहत काम नहीं करना चाहता.

रिपोर्ट बताती है की जब उन्होंने मज़दूरों और नरेगा पर्यवेक्षकों से इस मसलें पर बात की तो पता चला की नेशनल इन्फार्मेटिक्स सेंटर(NIC) जो की केंद्र सरकार के डाटा बेस को संभालती हैं,ने जब से आधार बेस्ड पेमेंट शुरू किया है तब से लगातार नाम हटाए जाने की घटनाएं बढ़ गई है.

दौरे पर गए टीम के सदस्यों का कहना है की  नेशनल पेमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया(NPCI) की मैपिंग मज़दूरों से ये अपेक्षा रखती है की उनके राशन कार्ड,जॉब कार्ड और आधार कार्ड के सारे डिटेल्स आपस में मैच करते हो.

आदिवासी इलाके जहाँ बैंक और आधार सेंटर के सर्विस बहुत अच्छे नहीं है,वहां मज़दूरों के डिटेल्स में थोड़ी भी चूक उनके लिए मुसीबत का सबब बन जाती है. राशन,आधार और जॉब कार्ड की सही जानकारी के लिए उन्हें लगातार बैंक और आधार सेंटर के चक्कर काटने पड़ते हैं.

नरेगा पदाधिकारियों का काम है की वो मज़दूरों के जॉब कार्ड और बैंक के साथ NPCI मैपिंग में उनकी मदद करें.लेकिन सही प्रशिक्षण की कमी और सख्त समय सीमा की वजह से मज़दूरों के नाम लिस्ट से हटा दिए जा रहे हैं.

नतीजतन नरेगा के तहत उनके काम का अधिकार उनसे छिना जा रहा है.कई मज़दूरों को उनकी मज़दूरी भी नहीं मिल रही है.

सदस्यों का कहना है की ” हम मनरेगा जैसी योजना को धीरे-धीरे खत्म होते देख रहे है. ऐसे में मज़दूरों के लिए डिजिटलाइजेशन के नाम पर एक भूलभुलैया बना दिया गया है.समाज के आखिरी पायदान पर खड़े जरूरतमंदों के काम के अधिकार का केंद्र सरकार हनन कर रही है.आदिवासी इलाकों में इसका और ज्यादा असर देखने को मिल रहा है,जहाँ इंफ्रास्ट्रकचर की कमी और तकनीकी जानकारी का आभाव और बुरे हालात बना दे रही हैं”.

वर्कर्स यूनिटी से साभार

ह्यूमेन राइट्स फोरम और LIB टेक की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार मनरेगा के तहत ग्रामीण इलाकों में कार्यरत मज़दूरों के जॉब कार्ड और नाम में भारी कटौती की जा रही है।

वित्तीय वर्ष 2022 – 23 के दौरान देश के अलग-अलग राज्यों से मनरेगा के तहत काम कर रहें मज़दूरों के जॉब कार्ड और उनके नाम लिस्ट से हटाए जाने की ख़बरें लगातार आ रही हैं.

ह्यूमेन राइट्स फोरम(HRF) और LIB टेक की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार महात्मा गाँधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना(MGNREGA ) के तहत देश के सुदूर ग्रामीण इलाकों में काम कर रहे लोगों के जॉब कार्ड और काम करने वाले मज़दूरों के नाम में भारी कटौती की जा रही है.

आंध्र प्रदेश के पार्वतीपुरम मनयाम जिले के गावों में ह्यूमन राइट्स फोरम और LIB टेक के तीन सदस्यीय टीम ने मनरेगा से हटाए जा रहे जॉब कार्ड एवं नामों की जांच करने के लिए दौरा किया.

LIB टेक जो की शोधकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक ग्रुप है, द्वारा जारी एक हालिया रिपोर्ट में यह बताया गया है की आंध्र प्रदेश के साथ-साथ देश के अलग-अलग राज्यों में मनरेगा से मज़दूरों के नाम भरी संख्या में हटाए जा रहे हैं.रिपोर्ट के अनुसार अकेले आंध्र प्रदेश से वर्ष 2022 -23 के दौरान 77 .9 लाख मज़दूरों के जॉब कार्ड और नामों को निरस्त कर दिया गया है,जो की मज़दूरों की कुल संख्या 1.22 करोड़ का 59 .6 % है.

गांवों के दौरे पर गई टीम के सदस्यों ने बताया की हमने तीन गांवों के उन 30 मज़दूरों से बात की जिनके नाम काम करने वालों के लिस्ट से हटा दिए गए है. उनके नाम नरेगा के कामगारों के लिस्ट से हटाए जाने के पीछे का कारण ‘काम न करने की इच्छा’,’व्यक्ति की मृत्यु’ और ‘पंचायत में उसका न पाया जाना’ बताया गया है.जबकि LIB टेक के सदस्यों ने मात्र 5 लोगों के मामलें में इन कारणों को सच पाया बाकि 25 लोगों के मामलें में ये पूरी तरह से झूठ पाया गया.

चिंतालापाडु गांव के 29 वर्षीय मज़दूर कोलक रंगाराव ने बताया की” मेरा नाम भी लिस्ट से हटा दिया गया है.जब मैंने कारण पूछा तो बोला गया की इस नाम के व्यक्ति की मृत्यु को चुकी है”.

आरिका चुक्कामा जो दूरबील गावं के रहने वाले है ने बताया की उनको काम की बहुत जरुरत है,लेकिन उनका नाम भी लिस्ट से हटा दिया गया है,और बोला गया की ये व्यक्ति अब नरेगा के तहत काम नहीं करना चाहता.

रिपोर्ट बताती है की जब उन्होंने मज़दूरों और नरेगा पर्यवेक्षकों से इस मसलें पर बात की तो पता चला की नेशनल इन्फार्मेटिक्स सेंटर(NIC) जो की केंद्र सरकार के डाटा बेस को संभालती हैं,ने जब से आधार बेस्ड पेमेंट शुरू किया है तब से लगातार नाम हटाए जाने की घटनाएं बढ़ गई है.

दौरे पर गए टीम के सदस्यों का कहना है की  नेशनल पेमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया(NPCI) की मैपिंग मज़दूरों से ये अपेक्षा रखती है की उनके राशन कार्ड,जॉब कार्ड और आधार कार्ड के सारे डिटेल्स आपस में मैच करते हो.

आदिवासी इलाके जहाँ बैंक और आधार सेंटर के सर्विस बहुत अच्छे नहीं है,वहां मज़दूरों के डिटेल्स में थोड़ी भी चूक उनके लिए मुसीबत का सबब बन जाती है. राशन,आधार और जॉब कार्ड की सही जानकारी के लिए उन्हें लगातार बैंक और आधार सेंटर के चक्कर काटने पड़ते हैं.

नरेगा पदाधिकारियों का काम है की वो मज़दूरों के जॉब कार्ड और बैंक के साथ NPCI मैपिंग में उनकी मदद करें.लेकिन सही प्रशिक्षण की कमी और सख्त समय सीमा की वजह से मज़दूरों के नाम लिस्ट से हटा दिए जा रहे हैं.

नतीजतन नरेगा के तहत उनके काम का अधिकार उनसे छिना जा रहा है.कई मज़दूरों को उनकी मज़दूरी भी नहीं मिल रही है.

सदस्यों का कहना है की ” हम मनरेगा जैसी योजना को धीरे-धीरे खत्म होते देख रहे है. ऐसे में मज़दूरों के लिए डिजिटलाइजेशन के नाम पर एक भूलभुलैया बना दिया गया है.समाज के आखिरी पायदान पर खड़े जरूरतमंदों के काम के अधिकार का केंद्र सरकार हनन कर रही है.आदिवासी इलाकों में इसका और ज्यादा असर देखने को मिल रहा है,जहाँ इंफ्रास्ट्रकचर की कमी और तकनीकी जानकारी का आभाव और बुरे हालात बना दे रही हैं”.

वर्कर्स यूनिटी से साभार

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