बिहार: एक महीने की हड़ताल के बाद आशा कार्यकर्ताओं की सरकार के साथ मांगो पर समझौता

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पारितोषिक (इनाम) शब्द की जगह मासिक मानदेय 1,000 रुपये को बढ़ाकर 2,500 रुपये पर सहमति। लगभग एक लाख आशा कार्यकर्ताओं की 12 जुलाई से जारी अनिश्चितकालीन हड़ताल समाप्त।

पिछले एक महीने से हड़ताल पर रहे आशा कार्यकर्त्ता और उनके सहयोगी कायकर्ताओं ने पटना में स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव के साथ मानदेय बढ़ोतरी सम्बन्धी मांगों पर समझौते के बाद हड़ताल वापस ले लिया है.

मालूम हो की लगभग एक लाख आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) और आशा फैसिलिटेटर जो 12 जुलाई से यानी एक महीने से अधिक समय से हड़ताल पर थे, ने स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव के साथ बातचीत के दौरान एक समझौते पर पहुंचने के बाद रविवार को अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल समाप्त करने की घोषणा की.

उनकी मांग थी की पारितोषिक (इनाम) शब्द को बदलकर मासिक मानदेय कर दिया जाये साथ ही मासिक मानदेय को 1,000 रुपये प्रति माह से बढ़ाकर 10,000 रुपये प्रति माह कर दिया जाये. उनकी दूसरी प्रमुख मांग ये थी की पारितोषिक(इनाम) देने सम्बन्धी जो अश्विन पोर्टल की शुरुआत की गई थी ,जिस पर की आशा कार्यकर्त्ता और उनके सहयोगियों को अपने काम का लेखा-जोखा देना होता था, उसके कार्यान्वयन से पहले और बाद में सभी बकाया राशि का भुगतान करना आदि शामिल था.

इससे पहले राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यकारी निदेशक (ईडी) के साथ पहले दो दौर की वार्ता बेनतीजा रही थी

हालांकि सरकार के आदेश पर 11 अगस्त को संजय कुमार सिंह के साथ ईडी और आशा कार्यकर्ताओं के संयुक्त मोर्चा के नेताओं जैसे बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ (गोप-समूह AICCTU) के प्रमुख शशि यादव के साथ वार्ता सफलतापूर्वक संपन्न हुई.

रविवार को बिहार के उपमुख्यमंत्री-सह-स्वास्थ्य मंत्री तेजस्वी यादव के साथ प्रदर्शनकारी नेताओं की अंतिम दौर की वार्ता हुई और नौ सूत्री मांगों पर सहमति बनने के बाद आशा संयुक्ता ने हड़ताल समाप्ति की घोषणा की.

मालूम हो की आशा कार्यकर्ताओं की पिछली हड़ताल के दौरान तत्कालीन भाजपा स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने आशा कार्यकर्ताओं को मासिक मानदेय देने का वादा किया था और फिर बाद में ‘मानदेय’ शब्द को ‘इनाम’ में बदल दिया था. तेजस्वी के साथ रविवार की बैठक में दुबारा इसी को बदलने को लेकर फिर से चर्चा हुई.

संघ (गोप-समूह ऐक्टू) के प्रमुख शशि यादव ने कहा कि ‘अब आशा और आशा फैसिलिटेटर भी राज्य सरकार के मानदेय कर्मी बन गये हैं. मानदेय कर्मी कहलाना एक लाख आशाओं के लिए गर्व की बात है क्योंकि अब तक उन्हें मानदेय कर्मियों से कमतर आंका जाता था’.

आशा एवं आशा फैसिलिटेटर संघ (सीटू) की महासचिव सुधा सुमन ने न्यूज़क्लिक को फोन पर बताया कि ‘बातचीत के अनुसार, सरकार आशाओं को सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान करने और उनकी सेवानिवृत्ति की आयु 60 से 65 वर्ष तक बढ़ाने पर विचार करेगी’.

संयुक्त महासचिव विश्वनाथ सिंह ने हालांकि कहा कि सरकार ने आशा कार्यकर्ताओं की अपेक्षा के अनुरूप मासिक मानदेय में बदलाव नहीं किया है. वर्तमान मासिक मानदेय 1,000 रुपये को बढ़ाकर 2,500 रुपये करने पर सहमति बनी है. ये भुगतान सितंबर 2023 से किया जाएगा.

आशा कार्यकर्ताओं के संगठन से जुड़े नेताओं ने कहा कि नौ सूत्री मांग पत्र में केंद्र की मोदी सरकार से एक और महत्वपूर्ण मांग की गई है की आशा कार्यकर्ताओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दिया जाये और उनकी प्रोत्साहन राशि में कम से कम 300% की बढ़ोतरी की जाये. रविवार की बातचीत में बिहार के स्वास्थ्य मंत्री ने मोदी सरकार को प्रस्ताव और अनुशंसा पत्र भेजने पर सहमति जताई.

नेताओं ने कहा कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत प्रबंधित आशा कार्यकर्ताओं के लिए प्रत्येक कार्य की लागत (प्रोत्साहन) 2005 में ही तय कर दी गई थी, यहां तक ​​कि उनका काम शुरू होने से पहले ही। इसके बाद, मोदी सरकार के नौ वर्षों सहित 17 वर्षों से अधिक समय से प्रोत्साहन राशि का गंभीरता से पुनर्मूल्यांकन नहीं किया गया है। नतीजतन भारत भर में 10 लाख महिला श्रमिक 2005 में तय की गई दरों पर काम करने के लिए मजबूर हैं। इसके साथ ही हड़ताल के दौरान दर्ज मुकदमे वापस लेने समेत अन्य मुद्दों पर भी सहमति बनी है।

वर्कर्स यूनिटी से साभार