गिग वर्करों ने उठाए राजस्थान में पारित नए अधिनियम पर सवाल

New Doc 08-05-2023 17.32

ज़रुरत है मालिक-मज़दूर के रिश्ते को मान्यता देने की

राजस्थान सरकार ने हाल ही में गिग वर्कर्स पर एक बिल पेश किया था, जिसे 24 जुलाई को राजस्थान विधानसभा में पारित किया गया। इसका नाम “राजस्थान प्लेटफार्म -आधारित गिग वर्कर्स (पंजीकरण और कल्याण) विधेयक 2023” है। विधेयक पंजीकरण के माध्यम से ‘एग्रीगेटर’ या ‘प्लेटफार्म’ पर निर्भर गिग श्रमिकों के कल्याण के लिए नए प्रावधान स्थापित करता है। सरकार द्वारा इस प्रकार के कल्याण कार्यक्रम को ‘सामाजिक सुरक्षा’ कहा जाता है। यह पहली बार है कि देश के किसी भी राज्य में गिग श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा विधेयक पारित किया गया है। लाज़िम है कि इसके इर्दगिर्द कई चर्चाएं उभर रहीं हैं। यह विधेयक कई कारणों से महत्वपूर्ण है। पहला, ऐसा सुनने में आ रहा है कि कुछ अन्य राज्य भी अगले लोकसभा चुनाव से पहले ऐसे विधेयकों के प्रारूपण बनाएंगे। पश्चिम बंगाल सरकार ने भी यह बात कही है। दूसरा, पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र के श्रमिकों द्वारा लगातार विरोध प्रदर्शन जारी रहा है। सरकार के इस कदम से यह समझने में मदद मिलेगी कि इस क्षेत्र में श्रमिकों की समस्याओं को हल करने में राज्य का रवैया कहां जा रहा है ।

यहां सरकार की कार्रवाई और इस बिल पर हमारी प्रारंभिक प्रतिक्रिया है।

विधेयक पूरी तरह बीओसीडब्ल्यूए, यानी, निर्माण और अन्य श्रमिकों के कल्याण के लिए 1996 में बने अधिनियम के ढांचे पर आधारित है जो पंजीकृत मज़दूरों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने का काम करता है। राजस्थान गिग वर्कर्स अधिनियम में राज्य सरकार इन श्रमिकों के लिए एक कल्याण बोर्ड बनाएगी, जो हर साल कंपनियों (एग्रीगेटर्स/ प्राथमिक नियोक्ताओं) से 1-2% कर (उपकर) इकठ्ठा करेगा। इस धनराशि का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में श्रमिकों के कल्याण के लिए किया जाएगा।

समस्या यह है कि अधिकांश निर्माण श्रमिक स्व-नियोजित श्रमिक हैं । यानि यह कार्यकर्ता-मालिक संबंध के अंतर्गत नहीं आते हैं। गिग वर्कर्स के साथ ऐसा नहीं है। कंपनियों को डिलीवरी करने वाले ‘सवारों’ के श्रम से लाभ होता है। सवारों के काम के हर साधन, यहां तक कि वर्दी, हेलमेट आदि व उनके काम करने की स्थिति पूरी तरह से कंपनी द्वारा नियंत्रित होती है। कंपनियां सवारों के साथ किसी भी चर्चा/बातचीत के बिना, अपनी इच्छानुसार इसे बदल सकते हैं। यह कंपनियां अपने कर्मचारियों के साथ जो अनुबंध करती हैं, वे पूरी तरह से कंपनी के अपने अधिकारों के बारे में हैं। इस समझौते में, कर्मचारी के अधिकारों का कोई स्थान नहीं है और काम की जिम्मेदारी पूरी तरह से कर्मचारी पर है। इस क्षेत्र में ऐप के माध्यम से कंपनियां श्रमिकों के काम के हर पल और श्रम प्रक्रिया के हर पहलु पर नियंत्रण बनाए रखती है। केवल ऐप ही नहीं, कंपनी इन श्रमिकों से संबंधित कार्यों को नियोजित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रबंधकों को भी काम पर रखती है। इससे यह साबित होता है कि कंपनियां चाहे जो भी दावा करे, डिलीवरी कर्मियों के साथ उनका संबंध नियोक्ता-मालिक का ही संबंध है।

बिल ने श्रमिकों को नियोक्ताओं द्वारा सीधी भर्ती के सवाल को दरकिनार कर दिया और बहस को दूसरी दिशा में ले कर चला गया। इस अधिनियम में श्रमिकों के कल्याण के नाम पर मालिकों को नियोक्ता की जिम्मेदारियों से छूट देकर श्रमिकों को निजी स्तर पर राज्य का लाभार्थी बनाने का प्रस्ताव रखा गया है। यह दिशा गिग श्रमिकों के सामूहिक सौदेबाजी को मज़बूत करने में बाधा है। साथ ही, श्रमिकों की समस्याओं को हल करने के विषय में यह राज्य को एक ऐसी भूमिका में भी लाती है जो बाज़ार के उतार चढ़ाव पर नियंत्रण करने की जगह, आर्थिक संकट से घायल श्रमिकों के ज़ख्मों पर बस मरहम लगा कर उनके पिटते रहने के लिए छोड़ देती है। हम लोकप्रिय प्रेस के संपादकीय में राज्य की ऐसी भूमिका के बारे में सुनते हैं। जो मालिक गिग अर्थव्यवस्था में लगातार जिम्मेदारी से मुकरते हैं वह इस परिकल्पना में भी किसी तरह मज़दूरों के अधिकार देने के लिए जवाबदेह नहीं बनाए जा रहे हैं।

राजस्थान विधेयक में गिग वर्कर को परिभाषित करते हुए केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित सामाजिक सुरक्षा कोड में ‘गिग वर्कर’ की परिभाषा बताई गई है। यह परिभाषा गिग कर्मियों के ‘नियोक्ता-मालिक संबंध के बाहर’ होने का दावा करती है। यह दावा निराधार है। स्विगी, ओला, उबर, ऐमेज़ोन, फ्लिपकार्ट, जोमैटो जैसी बड़ी कंपनियां श्रम कानूनों को दरकिनार कर बेलगाम शोषण के पक्ष में देश के कानूनों को बदलना चाहती हैं।

गिग वर्कर्स की नौकरियों में’ स्वतंत्रता/लचीलेपन’ का विज्ञापन वास्तव में मालिकों की बढ़ती गैरजिम्मेदारी की रीढ़ है। मज़दूर के रोज़गार की अनिश्चितता को बनाए रखना ‘गिग’ अर्थव्यवस्था का मूल मन्त्र है। इस क्षेत्र में कार्यरत मज़दूरों को वास्तविक सुरक्षा देने के लिए इस अनिश्चितता को हटाना अनिवार्य है। हर मज़दूर को काम करने का अधिकार और न्यूनतम मजदूरी की गारंटी राज्य को देनी चाहिए। सामूहिक सौदेबाजी के अधिकार को कानूनी रूप से संरक्षित किया जाना चाहिए।

कई संघर्षों और आंदोलनों के बाद संगठित क्षेत्र के श्रमिकों को ईएसआई, पीएफ सहित कई कानूनी अधिकार प्राप्त हुए हैं। उन अधिकारों को गिग श्रमिकों पर लागू नहीं किया जा रहा है। इस तथ्य के बावजूद कि यहां व्यवहार में कंपनी के साथ कार्यकर्ता का संबंध किसी भी संगठित क्षेत्र में समान है। इसके अलावा यह विधेयक सरकार के पक्ष से लगातार वेतन में कटौती, आईडी-ब्लॉक के नाम पर अवैध छंटनी इत्यादि जैसे गिग क्षेत्र के ज्वलंत समस्याओं से मज़दूरों के बचाव के सवाल का कोई उत्तर नहीं देता है।

ऐसा नहीं है कि गिग श्रमिकों के संबंध में वर्तमान श्रम कानून में कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि देश के मौजूदा बुनियादी कानूनी ढांचे में अपने अधिकारों को पाने के लिए गिग श्रमिकों का संघर्ष अभी तक शुरू नहीं हुआ है। गिग मज़दूरों के अनेकों संघर्षों के बाद आज मालिक यह मानने को तैयार हैं की मज़दूरों के अधिकारों की सुरक्षा के कुछ प्रावधान बनाने चाहिए। लेकिन उनका कहना है की यह सुरक्षा मज़दूरों को सरकार दे ना की इसकी ज़िम्मेदारी कम्पनियों के ऊपर आये। राजस्थान सरकार द्वारा पेश किया गया यह बिल इसी दिशा में काम करता है। इससे गिग श्रमिकों को लाभ नहीं होगा, लेकिन मालिक और सरकार गिग मज़दूरों की सामूहिक लड़ाई को गलत साबित करने का एक आधार इसके ज़रिये बना पाएँगे।

गिग श्रमिकों के हालिया आंदोलनों ने स्पष्ट रूप से कंपनी के खिलाफ सामूहिक रूप से अपनी लड़ाई दिखाई है। श्रमिकों की जिम्मेदारियों से हांथ धोने की कंपनी की नीति के खिलाफ नारे लगाए हैं। सवाल यह है कि जिन कम्पनियों के ख़िलाफ़ मज़दूर आवाज़ उठा रहे हैं उनको छूट दे कर राज्य की ‘सामाजिक सुरक्षा’ की पहल से कितना लाभ श्रमिकों को होगा और कितना मालिकों को?

गिग श्रमिकों को श्रमिक की मान्यता दी जानी चाहिए। ‘सामाजिक सुरक्षा’ के नाम पर लोगों के आँखों में धूल नहीं झोंका जाना चाहिए। लगातार गैर-जिम्मेदार मालिक (कंपनी) द्वारा शोषित हो रहे गिग श्रमिक मालिक के साथ संयुक्त रूप से सौदेबाजी का अधिकार व उचित कानूनी सुरक्षा चाहते हैं।

— डिलिवरी वॉयस–