मोदी सरकार का फरमान- आचरण नहीं अच्छा तो नहीं मिलेगी पेंशन; पूर्व नौकरशाहों ने जताया विरोध

केन्द्रीय कार्मिक मंत्रालय द्वारा जारी अखिल भारतीय सेवा संशोधन राज्य सरकारों के अधिकार में कटौती के साथ सरकार की आलोचना या असहमति नौकरशाहों को पेंशन से वंचित करेगा!
मोदी सरकार के तमाम फरमानों के बीच पिछले माह कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) संशोधन नियम 2023 के बारे में अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत रिटायरमेंट के बाद अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों का आचरण सदैव अच्छा रहे, तभी उन्हें पेंशन मिलेगी।
नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा अखिल भारतीय सेवा नियमों में इस बदलाव पर 94 पूर्व सिविल सेवकों के एक समूह ने एक बयान जारी कर चिंता व्यक्त करते हुए कहा गया है कि ये नियम लोक सेवकों के लिए राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर अपनी राय व्यक्त करना असंभव बना देंगे। यदि वे अनुपालन नहीं करते हैं, तो उनकी पेंशन रद्द की जा सकती है।
दरअसल मोदी सरकार किसी प्रकार के विरोध का गला घोंटने के लिए तमाम तिकड़मों के साथ संविधान के विपरीत जाकर प्रावधान ला रही है। पेंशन रोकने संबंधी यह प्रावधान राज्य सरकारों के अधिकार का हनन और लॉक सेवक की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट और अन्य हाईकोर्ट ने कई फैसलों में माना है कि पेंशन एक कर्मचारी का अधिकार है और पहले दी जा चुकी सेवाओं के लिए एक प्रकार का विलंबित भुगतान है।
क्या है नया संशोधन नियम?
दरअसल, बीते 6 जुलाई को केंद्र की मोदी सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) संशोधन नियम 2023 से संबंधित अधिसूचना जारी की थी।
केंद्र सरकार ऐसे सेवानिवृत्ति अधिकारियों की पेंशन सहित सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले सभी लाभ रोक सकती है जो सेवा के बाद सरकार की आलोचना करेंगे या कोई ऐसा बयान देंगे जिसमें सरकार के काम से असहमति जताई गई हो।
अधिसूचना में बताया गया था कि संशोधित नियम 3 (1) कहता है कि रिटायरमेंट के बाद अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों का आचरण सदैव “अच्छा” रहे, तभी उन्हें पेंशन मिलेगी। स्पष्ट है कि अच्छा का मतलब सरकार की अंधभक्ति या गुलामी।
साथ ही यदि सेवानिवृत्ति के बाद, किसी पेंशनभोगी को गंभीर अपराध का दोषी ठहराया जाता है या गंभीर कदाचार का दोषी पाया जाता है, तो केंद्र सरकार संबंधित राज्य सरकार के निर्देश पर या अन्यथा, किसी निश्चित अवधि या अनिश्चितकाल के लिए उनकी पेंशन या उसके एक हिस्से को रोक या वापस ले सकती है।
संशोधित नियम के तहत यदि खुफिया सुरक्षा संबंधी सेवाओं से जुड़े रहे पूर्व कर्मियों को ऐसे संगठनों के प्रमुख से पूर्व मंजूरी के बिना सेवानिवृत्ति के बाद उनके कार्यक्षेत्र से संबंधित किसी भी सामग्री को प्रकाशित करने से प्रतिबंधित किया गया है।
हालांकि इससे पहले भी सेवानिवृत्त अफसरों को लेकर नियम मौजूद हैं, जिनमें कहा गया है कि अगर कोई पेंशनर यानी सेवानिवृत्ति अधिकारी किसी गंभीर आचरण के मामले में दोषी पाया जाता है या उसे सजा होती है, तो यह लाभ वापस ले लिए जाएंगे। लेकिन ऐसा फैसला सिर्फ उस राज्य सरकार के अनुमोदन के बाद ही केंद्र सरकार ले सकती है जहां के कैडर का वह अफसर होगा।
लेकिन जुलाई, 2023 में किए गए संशोधनों के बाद अब केंद्र सरकार को ऐसे मामलों में एकतरफा फैसला लेने का अधिकार मिल गया है, जिसमें वह बिना किसी राज्य सरकार के अनुमोदन के ही अफसरों की पेंशन को रोक सकती है।
नियम 2023 द्वारा परिवर्तन के मुख्य बिन्दु-
- केंद्र सरकार स्वयं IAS, IPS और IFos के विरुद्ध कार्रवाई करने तथा राज्य सरकार के संदर्भ के बिना भी उनकी पेंशन रोकने या वापस लेने का अधिकार रखती है यदि वे गंभीर कदाचार या अपराध के लिये दोषी पाए जाते हैं।
- संशोधित नियम दर्शाते हैं कि पेंशन रोकने या वापस लेने पर केंद्र सरकार का निर्णय “अंतिम होगा”।
- इन जोड़े गए नियमों में ‘गंभीर कदाचार’ में आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम में उल्लिखित किसी दस्तावेज़ या जानकारी का संचार या प्रकटीकरण शामिल है तथा ‘गंभीर अपराध’ में आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत अपराध से संबंधित कोई भी अपराध शामिल है।
- अखिल भारतीय सेवा (मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति लाभ) नियम, 1958 में पहले नियम 3(3) में कहा गया था कि केंद्र सरकार संबंधित राज्य सरकार के संदर्भ पर पेंशन या उसके किसी भी हिस्से को रोक या वापस ले सकती है।
- खुफिया या सुरक्षा-संबंधी संगठनों के सदस्य, जिन्होंने ऐसी क्षमताओं में सेवा की है, अपने संबंधित संगठन के प्रमुख से पूर्व मंज़ूरी प्राप्त किये बिना कोई लेख नहीं लिखेंगे या प्रकाशित करेंगे।
पूर्व सिविल सेवकों ने इसे संविधान का उल्लंघन बताया
कॉन्स्टीट्यूशनल कंडक्ट ग्रुप द्वारा जारी एक बयान में पूर्व सिविल सेवकों ने कहा है कि प्रस्तावित परिवर्तन ‘संविधान के अनुच्छेद 51 ए का उल्लंघन होगा जो सभी नागरिकों को ‘स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित करने वाले महान आदर्शों को संजोने और उनका पालन करने’ की अनुमति देता है। सत्ता में सरकार की आलोचना करने का अधिकार इन आदर्शों का हिस्सा है और इसे ‘कदाचार’ नहीं कहा जा सकता।
बयान में कहा गया है कि यह न सिर्फ संघीय सिद्धांतों का उल्लंघन और केंद्र सरकार को असीमित और कठोर अधिकार देता है बल्कि यह अखिल भारतीय सेवा संरचना में परिकल्पित नियंत्रण के द्वंद्व के अनुरूप भी नहीं है।
बयान में यह भी कहा गया, ‘कदाचार के लिए निर्धारित गंभीर सजा को ध्यान में रखते हुए इस शब्द की एक विस्तृत परिभाषा देना केंद्र सरकार के लिए कानूनी रूप से अनिवार्य है। इसे जानबूझकर अस्पष्ट, भ्रामक और अनिश्चित रखकर केंद्र सरकार ने किसी भी पेंशनभोगी, जिनकी करनी- जो किसी लेख की शक्ल में हो, किसी विरोध या सेमिनार की भागीदारी या किसी तरह की आलोचना, उसे (सरकार को) पसंद नहीं है, को परेशान करने और सताने के लिए खुद को असीमित शक्तियों से लैस कर लिया है।’
नियमों में बदलाव केंद्र सरकार का क्यों है मानमानापन?
- अखिल भारतीय सेवा नियमों में संशोधन की अधिसूचना संविधान के विपरीत प्रावधान है। पेंशन रोकने संबंधी यह प्रावधान केंद्र सरकार का मानमानपन है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है।
- संविधान के अनुच्छेद 19 ‘1’ में यह प्रावधान है कि कोई भी नागरिक, सरकार की आलोचना कर सकता है। वह उसकी अभिव्यक्ति, किसी माध्यम के जरिए करने के लिए स्वतंत्र है। ये सब बातें मौलिक अधिकारों की श्रेणी में आती हैं। यह नया फरमान इसका खुला उल्लंघन है।
- संशोधन, अधिकारियों की पदस्थापना के अधिकार एकपक्षीय रूप से बिना राज्य सरकार अथवा संबंधित अधिकारी की सहमति के प्रदान करते हैं। यह संविधान में रेखांकित संघीय भावना के पूर्णत: विपरीत है।
- केंद्र सरकार को ऐसे मामलों में एकतरफा फैसला लेने का अधिकार मिल गया है, जिसमें वह बिना किसी राज्य सरकार के अनुमोदन के ही अफसरों की पेंशन को रोक सकती है। यह राज्य सरकार के अधिकार पर अंकुश है।
- प्रस्तावित संशोधन नौकरशाही पर राज्य के राजनीतिक नियंत्रण को कमज़ोर कर देगा।
- संशोधित नियम केंद्र सरकार को सेवानिवृत्त अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की अप्रतिबंधित शक्ति प्रदान करेंगे। यह प्रभावी शासन को बाधित करेगा और परिहार्य कानूनी तथा प्रशासनिक विवाद पैदा करेगा।