ह्रदयविदारक उड़ीसा रेल हादसा; 300 से ज्यादा की मौत, 1200 घायल, लेकिन कई सवाल जिंदा हैं!

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आधुनिक प्रणाली के दावे, ऑटोमेटिक ब्रेकिंग सिस्टम, GPS मॉनिटरिंग, हाइटेक कंट्रोल रूम, सिग्नल सिस्टम आदि सब फेल कैसे हुए? क्या मौत के वास्तविक आँकड़े उजागर होंगे?

दक्षिण पूर्व रेलवे की खड़गपुर डिवीजन के बहानगर बाजार स्टेशन के निकट हुए भीषण हादसे में अबतक 300 से ज्यादा लोगों की मौत और 1200 से अधिक लोगों के घायल होने की खबर ह्रदयविदारक है।

बहनागा बजार इलाके में रातभर चीखपुकार मची रही। ट्रेन के डिब्बों के मलबे में फांसी लाशें, बोगियों के बीच कटे- चिपके शव, बिखरे मांश के टुकड़े, तड़पते लोग… बेहद करुणामयी दृश्य।  

ऐसे में जहाँ इस वक़्त पीड़ित परिवारों के साथ मानवीय भाव से खड़ा होना जरूरी है, वहीं कारणों की तलाश के साथ इस दुखदाई बड़ी घटना से सबक लेने की भी जरूरत है।

अभी बचाव-राहत का कार्य चल रहा है। इधर मौत का आंकड़ा भी लगातार बढ़ रहा है। अग्नि शमन विभाग के महानिदेशक सुधांशु सारंग ने कहा कि हम बचाव कर रहे हैं, अब हम डिब्बे हटाकर देखेंगे कि इसके नीचे कोई जीवित हैं या नहीं?

हालांकि अबतक का अनुभव यही रहा है कि मौत के वास्तविक आँकड़े उजागर नहीं होते हैं। आरक्षित डिब्बों के यात्रियों की मौत के तथ्य तो हाजिर हो जाते हैं, लेकिन खचाखच भरे जनरल डिब्बे, जिसमें मज़दूर आबादी होती है, उनमें ज्यादातर मौत की गणना होती ही नहीं है।

एक नजर दुर्घटना पर

कई विरोधाभाषी खबरों के बीच अबतक जानकारी के अनुसार बालेश्वर जिला अंतर्गत बाहानगा स्टेशन से दो किमी दूर पनपना के पास शुक्रवार शाम चेन्नई की तरफ जा रही ट्रेन नंबर 12841 (शालीमार-चेन्नई कोरोमंडल एक्सप्रेस) लूप लाइन पर खड़ी एक मालगाड़ी से टकरा गई और उसके 12 डिब्बे पटरी से उतरे और साथ के तीसरे ट्रैक पर जा गिरे।

इस बीच विपरीत दिशा से आ रही ट्रेन नंबर 12864 (यशवंतपुर-हावड़ा एक्सप्रेस) ट्रैक पर मौजूद कोरोमंडल एक्सप्रेस की बोगियों से टकरा गई और इस ट्रेन के भी तीन डिब्बे पटरी से उतर गए।

सूत्रों के मुताबिक बहनागा बाज़ार स्टेशन पर चार ट्रैक हैं। एक लूप ट्रैक पर मालगाड़ी खड़ी थी। दो मुख्य लाइनों पर आमने-सामने से दो ट्रेनों को पास करना था।

ज़िंदगी व मौत से जूझ रहे यात्रियों को बालेश्वर सदर अस्पताल एवं कटक एससीबी मेडिकल कालेज में भर्ती किया गया है, जहाँ उनका इलाज चल रहा है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 1175 घायलों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया, इनमें से 793 को छुट्टी दे दी गई और 382 का इलाज जारी है। 

ज्ञात हो कि कोरोमंडल एक्सप्रेस पश्चिम बंगाल को तमिलनाडु से जोड़ती है। इस ट्रेन में ज्यादातर वे लोग होते हैं जो काम के सिलसिले में या बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के लिए तमिलनाडु जाते हैं।

रेलवे ने क्या बताई दुर्घटना की वजह?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, रेलवे की एक संयुक्त निरीक्षण टीम ने जांच के बाद बताया है कि मुख्य गड़बड़ी सिग्नल की है।

कोरोमंडल एक्सप्रेस को तय मेन लाइन से गुजरने के लिए ग्रीन सिग्नल दिया गया था, और फिर इसे बंद कर दिया गया। लेकिन ट्रेन लूप लाइन में प्रवेश कर गई और वहां खड़ी मालगाड़ी से टकरा गई. इस बीच, डाउन लाइन पर यशवंतपुर से सुपरफास्ट एक्सप्रेस आ गई और इसके दो डिब्बे पटरी से उतर गए।

आधुनिकरण के बीच बढ़ते हादसे

दावा है कि भारतीय रेलवे दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है। अपनी तमाम खामियों के बावजूद प्रतिदिन हजारों यात्री ट्रेनें चलती हैं, जिसमें 2 करोड़ से अधिक यात्री सफर करते हैं। लेकिन, आधुनिकीकरण के तमाम दावों के विपरित ट्रेनों की दुर्दशा और हादसे लगातार बढ़ते गए हैं।

तीन ट्रेनों के बीच टक्कर कोई मामूली घटना नहीं है। किसी हादसे में तीन ट्रेनों का टकराना गंभीर किस्म की विफलता को दर्शाता है।

कुछ अहम सवाल

  • तमाम दावों के बावजूद इन ट्रेनों में एंटी कॉलिजन सिस्टम (कवच) क्यों नहीं था? जबकि यही वह प्रणाली है जिससे एक ट्रैक पर दो ट्रेनों के आने से ऑटोमेटिक ब्रेक लग जाता है।
  • GPS मॉनिटरिंग में ट्रेन हादसे का पता क्यों नहीं चला?
  • क्या ट्रेन का ऑटोमेटिक ब्रेकिंग सिस्टम फेल हो गया?
  • चार लाइन होने के बावजूद गलत सिग्नल कैसे दिया गया?
  • कंट्रोल रूम पटरियों पर ट्रैफिक निर्देश देता है, उसी निर्देश पर रेल ड्राइवर ट्रेन को चलाता है। रेलवे कंट्रोल रूम में एक बड़ी सी डिस्पले लगी होती है, जिस पर दिख रहा होता है कि कौन सी पटरी पर ट्रेन है और कौन सी खाली पड़ी है। फिर एक पटरी पर दो ट्रेनें कैसे आ गईं?

रेलवे की बढ़ती दुर्दशा

देश में मोदी युग में एक तरफ सेमी व हाई स्पीड ट्रेनों की बखान हो रही है, वहीं आम जन की ट्रेनें लगातार दुर्दशा की शिकार बन रही हैं। देश के सबसे बड़े इस सार्वजनिक क्षेत्र को निजीकरण की ओर तेजी से धकेल जा रहा है।

हालात ये हैं कि कोविड के दौरान से अबतक सामान्य ट्रेनों का संचालन लगातार बुरी स्थिति में पहुंचता गया है। कई बार ट्रेनें अपनी दिशा भटक गईं और अपने गंतव्य से हजारों मील दूर दूसरी जगह पहुँच गईं।

स्थिति ये है कि-

  • बंदे भारत जैसी ट्रेनों पर मोदी सरकार का जोर है, हालांकि वे भी दुर्घटनाग्रस्त हो रही हैं। जबकि सामान्य ट्रेनें राम भरोसे हैं।
  • भारतीय रेलवे में कर्मचारियों की भारी कमी के चलते रनिंग स्टाफ तक को उचित आराम नहीं मिलता है। जिसके चलते कर्मचारी भारी शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक दबाव में रहते हैं।
  • रेलवे में नई स्थाई नियुक्तियों की जगह अंधाधुंध आउटसोर्सिंग व ठेकेदारी अप्रशिक्षित मज़दूरों से बेहद तकनीकी व सुरक्षा कार्यों में लगाया जाता है।

बहरहाल, घटना के बाद देश के प्रधानमंत्री, रेल मंत्री, मुख्यमंत्री आदि पहुँचने लगे, हर बार की तरह मुआवाजों और जांच की घोषणाएं हुईं। हालांकि उन जनरल डिब्बे वाले मज़दूर यात्रियों की लाश भी शायद ना मिले! फिलहाल वक़्त के साथ सब ठंड पड़ जाएगा। और फिर एक नई दुर्घटना के साथ यही सब दुहराया जाएगा।

देश की कुछ महत्वपूर्ण रेल दुर्घटनाएं

  • 13 जनवरी 2022 को बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस के कम से कम 12 डिब्बे पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार क्षेत्र में पटरी से उतर गए, जिससे नौ लोगों की मौत हो गई थी और 36 अन्य घायल हो गए थे।
  • 29 सितंबर, 2017 को मुंबई के एलफिंस्टन रोड रेलवे स्टेशन पर एक फुट ओवर ब्रिज दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें 29 यात्रियों की मौत हो गई थी।
  • 23 अगस्त 2017 को दिल्ली की ओर आ रही कैफियत एक्सप्रेस के नौ डिब्बे उत्तर प्रदेश के औरैया के पास पटरी से उतर गए, जिससे कम से कम 70 लोग घायल हो गए थे।
  • 18 अगस्त 2017 को पुरी-हरिद्वार उत्कल एक्सप्रेस मुजफ्फरनगर में पटरी से उतर गई। इसमें 23 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 60 अन्य घायल हो गए थे।
  • 20 नवंबर, 2016 को कानपुर देहात के पुखरायां में इंदौर-पटना एक्सप्रेस ट्रेन पटरी से उतर गई थी। इस हादसे में 152 लोगों की मौत हो गई थी और 260 घायल हो गए थे।
  • 26 मई 2014 को गोरखपुर की ओर जा रही गोरखधाम एक्सप्रेस उत्तर प्रदेश के खलीलाबाद स्टेशन के पास रुकी मालगाड़ी से टकरा गई थी। हादसे में 25 लोगों की मौत हो गई थी और 50 से ज्यादा घायल हो गए थे।
  • 22 मई 2012 को एक मालगाड़ी और हुबली-बैंगलोर हम्पी एक्सप्रेस आंध्र प्रदेश के करीब टकरा गई थी। ट्रेन के चार डिब्बों के पटरी से उतरने और उनमें से एक में आग लगने के कारण लगभग 25 लोगों की मौत हो गई थी और लगभग 43 घायल हो गए थे।
  • 28 मई, 2010 को मुंबई जा रही जनेश्वरी एक्सप्रेस ट्रेन झारग्राम के पास पटरी से उतर गई थी और फिर एक मालगाड़ी से टकरा गई थी, जिससे 148 यात्रियों की मौत हो गई थी।
  • 29 अक्टूबर 2005 को हैदराबाद के निकट वेलिगोंडा में पुल के बाढ़ में बह गए हिस्से को पार कर रही ट्रेन सवारों समेत पानी में समा गई। इस हादसे में लगभग 114 लोग मारे गए और 200 से अधिक घायल हो गए।
  • 14 दिसंबर, 2004: जम्मू तवी एक्सप्रेस और जालंधर-अमृतसर पैसेंजर ट्रेन आपस में टकरा गई थीं। ये हादसा होशियारपुर, पंजाब के पास हुआ जिसमें 39 यात्रियों की मौत हो गई थी।
  • 9 सितंबर, 2002 को हावड़ा राजधानी एक्सप्रेस रफीगंज में धावे नदी पर एक पुल के ऊपर पटरी से उतर गई थी, जिसमें 140 से अधिक लोगों की मौत हो गई।
  • वर्ष 2001 में केरल के कोझीकोड के पास कदलुंडी नदी रेल पुल हादसे में 57 से अधिक लोगों की जान गई थी, लगभग 300 लोग घायल हुए थे।
  • दो अगस्त, 1999 को ब्रह्मपुत्र मेल उत्तर सीमांत रेलवे के कटिहार डिवीजन के गैसल स्टेशन पर अवध असम एक्सप्रेस से टकरा गई थी। इस दुर्घटना में 285 से अधिक लोगों की मौत हुई थी और 300 से अधिक घायल हो गए।
  • 26 नवंबर, 1998 को जम्मू तवी-सियालदह एक्सप्रेस पंजाब के खन्ना में फ्रंटियर गोल्डन टेंपल मेल के पटरी से उतरे तीन डिब्बों से टकरा गई थी, जिसमें 212 लोगों की मौत हुई थी।
  • 14 मई, 1995: मद्रास-कन्याकुमारी एक्सप्रेस सलेम के पास एक मालगाड़ी से टकरा गई थी, जिसमें 52 लोगों की मौत हो गई थी।
  • 20 अगस्त, 1995 को फिरोजाबाद के पास पुरुषोत्तम एक्सप्रेस खड़ी कालिंदी एक्सप्रेस से टकरा गई थी। इस घटना में 305 लोगों की मौत हुई थी।
  • 27 जनवरी, 1982: आगरा के पास घने कोहरे में एक मालगाड़ी और एक एक्सप्रेस पैसेंजर ट्रेन की आमने-सामने टक्कर हो गई थी, जिसमें 50 लोगों की मौत हो गई थी।
  • छह जून, 1981 को बिहार में पुल पार करते समय एक ट्रेन बागमती नदी में गिर गई थी, जिसमें 750 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी। यह सबसे बड़ी दुर्घटना मानी जाती है।
  • 23 दिसंबर, 1964 को पंबन-धनुस्कोडि पैसेंजर ट्रेन रामेश्वरम चक्रवात का शिकार हो गई थी, जिससे ट्रेन मे सवार 126 से अधिक यात्रियों की मौत हो गई।

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