एमपी: विश्वविद्यालय शिक्षक-कर्मचारी 15 मई से करेंगे आंदोलन; पुरानी पेंशन, नियमितीकरण आदि मांग

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15 मई को काली पट्‌टी बांधकर काम, 16 को 12 बजे तक व 17 को 2 बजे तक काम बंद, 18 मई से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार, 24 से क्रमिक अनशन होगा।

ग्वालियर। मध्य प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों  में बड़ी हड़ताल  शुरू होने जा रही है। ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय   के साथ प्रदेश के अन्य शासकीय विश्वविद्यालयों में 15 मई से बड़ा आंदोलन शुरू होगा। विश्वविद्यालय के शिक्षक, कर्मचारी, अधिकारी और पेंशनर्स सभी इस आंदोलन में शामिल होंगे। जिसके चलते नए सत्र की शिक्षा व्यवस्था प्रभावित हो सकती है।

दरअसल, मध्य प्रदेश विश्वविद्यालय पेंशनर कर्मचारी अधिकारी और शिक्षक संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले यह चरणबद्ध आंदोलन होने जा रहा है। अपनी 9 सूत्रीय मांगों को लेकर इस बार यह सभी आर पार की लड़ाई के मूड में है।

आंदोलन को लेकर यह है प्लान

प्रदेश की सभी यूनिवर्सिटी में 15 मई को काली पट्टी बांधकर अधिकारी शिक्षक कर्मचारी प्रदर्शन करेंगे।

16 मई को दोपहर 12 बजे तक काम का बहिष्कार करेंगे।

17 मई को दोपहर 2 बजे तक काम बंद किया जाएगा।

18 मई से अनिश्चितकालीन कार्य बहिष्कार शुरू किया जाएगा।

23 मई को महारैली निकालते हुए कलेक्टर और जनप्रतिनिधियों को ज्ञापन सौंपा जाएगा।

24 मई से क्रमिक भूख हड़ताल शुरू की जाएगी।

26 मई को आंदोलन की की जाएगी समीक्षा।

ये है कर्मचारियों की प्रमुख मांग

राज्य शासन के कर्मचारियों के समान सातवें वेतन से पेंशन और डीए का भुगतान किया जाए।

स्थाई कर्मचारियों को तत्काल नियमित किया जाए।

2007 के बाद कार्यरत अस्थाई कर्मचारियों को तत्काल वेतन भुगतान किया जाए।

समन्वय समिति के निर्णय के अनुसार मेडिक्लेम पॉलिसी विश्वविद्यालयों में तत्काल लागू की जाएय़

कुल सचिव पद पर विश्वविद्यालय सेवा के अधिकारियों को पदोन्नत कर नियुक्ति प्रदान की जाए।

विश्वविद्यालयों में 2005 के बाद नियुक्त अधिकारियों शिक्षकों कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन लागू की जाए।

श्रम साध्य भत्ते पर पुनर्विचार किया जाए।

विश्व विद्यालय में कार्यरत कर्मचारियों को तत्काल पदोन्नति का लाभ दिया जाए।

विश्वविद्यालय कर्मचारियों के हित से जुड़ी मांगों पर समय-समय पर हो चर्चा।

संघर्ष समिति का कहना है कि शासन से कई वार पत्राचार और मुलाकात के जरिए मांगों को पूरा करने की चर्चा हुई है, लेकिन शासन उनकी मांगों पर विचार नहीं कर रहा है। ऐसे में मजबूरन उन्हें हड़ताल पर जाना पड़ रहा है।