प्रेस वार्ता: बेलसोनिका प्रबंधन की तानाशाही व मज़दूर वर्ग पर हमलों के खिलाफ एकजुट संघर्ष जरूरी

प्रेस वार्ता में बेलसोनिका यूनियन ने सभी मजदूर यूनियनों, मजदूर संगठनों, किसान संगठनों, इंसाफ पसंद जनता से न्याय के संघर्ष में एकजुट होकर लड़ने का आह्वान किया है।
दिल्ली। बेलसोनिका यूनियन द्वारा ठेका प्रथा के खात्मे, यूनियन पर हो रहे हमले, निलंबित व बर्खास्त मजदूरों की कार्य बहाली, फर्जी दस्तावेजों के नाम पर छिपी छंटनी पर रोक लगाने, चार घोर मजदूर विरोधी लेबर कोड्स को रद्द करने इत्यादि मांगों के साथ प्रेस वार्ता हुई।
8 अप्रैल को दिल्ली के जंतर मंतर पर सम्पन्न प्रेस वार्ता में यूनियन ने बताया कि मानेसर, गुड़गांव स्थित बेलसोनिका फैक्ट्री का प्रबंधन पिछले 2 वर्षों से 10-15 वर्षों से कार्य कर रहे स्थाई श्रमिकों व सात-आठ वर्षो से कार्य कर रहे ठेका श्रमिकों को फर्जी दस्तावेजों का हवाला देकर, काम से निकालना चाहता है।
प्रबंधन ने लगभग 30 स्थाई श्रमिकों को तथा चार ठेका श्रमिकों को फर्जी दस्तावेजों का हवाला देकर आरोप पत्र जारी किए तथा उनकी घरेलू जांच कार्यवाही पूरी कर “सेवा बर्खास्तगी के प्रस्ताव” सहित द्वितीय कारण बताओ नोटिस भी जारी कर चुका है।
केवल बेलसोनिका प्रबंधन ही नहीं अपितु गुड़गांव, मानेसर, बावल, धारूहेड़ा की कई फैक्ट्रियों का प्रबंधन इस तरह की प्रक्रिया अपना रहा है। हाई लेक्स, बजाज, सनबीम इत्यादि फैक्ट्री का प्रबंधन यही प्रक्रिया अपनाकर श्रमिकों को वीआरएस दे चुका है। लुमैक्स के फैक्ट्री प्रबंधन ने 11 मजदूरों को फर्जी दस्तावेजों के हवाले से आरोप पत्र देकर, निलंबित कर चुका है तथा उनकी मनमानी घरेलू जांच कार्यवाही जारी है।

यूनियनों को कमजोर करने तथा तोड़ने की साजिश
फर्जी दस्तावेजों के नाम पर यह गुडगांव-औद्योगिक इलाके में छिपी छंटनी कर बची-खुची मजदूर यूनियन को कमजोर करने तथा तोड़ने की एक साजिश है। ताकि श्रमिकों की “सामूहिक समझौते” की ताकत को खत्म किया जा सके।
गुड़गांव औद्योगिक इलाके में बहुत कम फैक्ट्रियों में यूनियने हैं और वो भी उन फैक्ट्रियों में कार्य करने वाले मजदूरों की संख्या की दृष्टि से बहुत छोटी है। क्योंकि तमाम फैक्ट्रियों में ठेके पर कार्य करने वाले श्रमिकों की एक बड़ी संख्या कार्य करती है। स्थाई मजदूरों की तादाद बहुत कम या फिर नाम मात्र की है।
अगर मारुति सुजुकी जैसी मदर फैक्ट्री जिसके गुड़गांव-मानेसर में तीन प्लांट है, में कुल लगभग 35000 मजदूर कार्य करते हैं। जिनमें मात्र 5500-6000 मजदूर ही स्थाई है। जोकि कुल मजदूरों का 15% से 17% ही बनता है। मारुति की वेंडर फैक्ट्रियों में परमानेंट मजदूरों की यह तादाद 2% से 5% तक की बनती है। अगर बात करे बेलसोनिका फैक्ट्री की तो यहां पर लगभग 50% फीसदी मजदूर हैं।

स्थाई कार्य-स्थाई मजदूर; समान काम-समान वेतन क्यों नहीं?
प्रेस वार्ता में यूनियन ने कहा कि पुराने श्रम कानूनों में स्थाई प्रकृति के कार्य पर स्थाई मजदूरों से कार्य करवाने का प्रावधान है और समान काम के समान वेतन का आदेश तो देश की सर्वोच्च न्यायालय का फैसला है। फैक्ट्री मालिक ना तो स्थाई कार्य पर स्थाई मजदूर के कानूनी प्रावधान को लागू करते हैं और ना ही समान कार्य के समान वेतन के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लागू करते हैं।
अगर फैक्ट्रियों में श्रम कानूनों की पालना की बात करें तो यह केवल किताबी बातें रह गई हैं। जिन फैक्ट्रियों में यूनियने नहीं है या फिर जहाँ ठेका मजदूर हैं, उन फैक्ट्रियों में मजदूरों के हालात बहुत दयनीय ही नहीं बल्कि गुलामों जैसे है। उनको तो इंसान ही नहीं समझा जाता। उन मजदूरों को दिन-प्रतिदिन फैक्ट्री मालिकों द्वारा अपमान व गाली-गलौच झेलना पड़ता है कि मशीन की क्षमता अनुसार कार्य क्यों नहीं किया?
छिपी छंटनी का धंधा नई नीतियों की देन
असल में उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों को जो आज मोदी सरकार ने प्रकाष्ठा पर पहुंचा दिया है। हर फैक्ट्री का मालिक चाहता है कि परमानेंट मजदूरों को बाहर कर सस्ते से सस्ते मजदूरों को फैक्ट्री में भर्ती कर अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जाए। हर फैक्ट्री में मालिकों के बीच यही होड़-प्रतियोगिता लगी हुई है। इसलिए मजदूरों की स्थाई नौकरियों को कभी फर्जी दस्तावेजों के नाम पर तो कभी वीआरएस के नाम पर तो कभी अनुशासनहीनता के नाम पर छिपी छंटनी को अंजाम दिया जा रहा है।

श्रम विभाग मजदूरों की कानूनी मांगों को भी लागू नहीं करवाता
बेलसोनिका यूनियन ने स्थाई कार्य पर स्थाई मजदूर तथा समान कार्य के लिए समान वेतन के कानूनी प्रावधान को लागू करवाने के लिए एक सामूहिक मांग पत्र दिनांक 12.11.2021 श्रम विभाग में दायर किया। आज डेढ़ वर्ष के लगभग समय बीत जाने के बाद उस सामूहिक मांग पत्र को संयुक्त श्रम सचिव ने एक तरह से कानून में ही उलझा कर लेबर कोर्ट में भेज दिया है।
श्रम विभाग मजदूरों की उन कानूनी मांगों को भी लागू नहीं करवा पा रहा है जो श्रम कानूनों में निहित है। यह श्रम विभाग का, मालिकों के साथ गठजोड़ को दर्शाता है। इस सामूहिक मांग पत्र को हल कराने के लिए तथा श्रम निरीक्षक महोदय के फैक्ट्री में निरीक्षण कर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने को लेकर यूनियन ने कई दफा उपायुक्त महोदय गुरुग्राम को ज्ञापन भी दिए। लेकिन आज तक कोई समाधान नहीं हुआ।
ठेका श्रमिक को सदस्यता देना गुनाह नहीं
यूनियन ने बताया कि एक ठेका श्रमिक को यूनियन की सदस्यता दिए जाने पर ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार हरियाणा ने “कारण बताओ नोटिस” जारी कर कहा कि यूनियन ने गैर कानूनी तरीके से एक ठेका मजदूर को यूनियन की सदस्यता दी है “क्यों न आपके यूनियन के पंजीकरण को रद्द किया जाए”। इस मुद्दे पर फैक्ट्री प्रबंधन व ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार हरियाणा दोनों एक साथ यूनियन के खिलाफ खड़े दिखाई दिए।
प्रबंधन नहीं चाहता कि एक फैक्ट्री में कार्य करने वाले परमानेंट व ठेका मजदूर एक साथ एक यूनियन में शामिल होकर फैक्ट्री प्रबंधन से सामूहिक समझौते की अपनी ताकत को बढ़ाएं। प्रबंधन चाहता है कि मजदूर स्थाई व ठेका में अलग-अलग बंटा रहे।
प्रबंधन द्वारा तरह-तरह से उत्पीड़न जारी
प्रेस वार्ता के दौरान यूनियन ने कहा कि बेलसोनिका प्रबंधन द्वारा फर्जी दस्तावेजों के नाम पर शुरू की गई इस छिपी छंटनी को परवान चढ़ाने, मजदूरों को प्रताड़ित करने तथा मजदूरों को उकसाने भड़काने के लिए तरह तरह से फैक्ट्री के भीतर कार्रवाईयों को अंजाम दिया गया।
प्रबंधन ने पिछले वर्ष की भीषण गर्मी में मजदूरों के पंखे (एयर वॉशर) बंद कर दिए व मजदूरों को मिलने वाले नींबू पानी में नींबू की कटौती कर दी। अनुशासनहीनता के नाम पर श्रमिकों को कारण बताओ नोटिस, आरोप पत्र, निलंबन इत्यादि कार्रवाई की गई। श्रमिकों को प्रतिदिन एक मशीन से हटाकर दूसरी मशीन पर परेशान करने के उद्देश्य से भेजा जाने लगा। कैंटीन के खाने की गुणवत्ता में गिरावट की गई।
प्रबंधन द्वारा यह सब कार्रवाई केवल मजदूरों को उकसाने-भड़काने के लिए की गई थी। ताकि मजदूर किसी अप्रिय घटना को अंजाम दे और फैक्ट्री प्रबंधन बड़े पैमाने पर परमानेंट मजदूरों की बड़ी संख्या में छंटनी कर सके। बेलसोनिका प्रबंधन ने तो अब लगभग एक शिफ्ट में ठेका मजदूरों को लाइनों पर लगा दिया है।
प्रबंधन द्वारा की गई तमाम उकसावे पूर्ण कार्रवाई पर यूनियन ने शिकायत व ज्ञापन भी दिए। लेकिन आज तक भी प्रबंधन की इन कार्रवाईयों पर रोक नहीं लगी है।
कोरोना काल की भीषण त्रासदी का भी प्रबंधन ने उठाया फायदा
कोरोना काल के दौरान जो श्रमिक सार्वजनिक परिवहन के वाहन ना चलने के कारण समय पर फैक्ट्री नहीं पहुंच पाए थे, उन श्रमिकों को छुट्टियों के नाम पर प्रबंधन द्वारा आरोप पत्र दिए गए। लगभग 4 श्रमिकों को कोरोना काल के दौरान आरोप पत्र देकर जांच कार्यवाही की गई। कोरोना काल की भीषण त्रासदी का भी बेलसोनिका प्रबंधन ने फायदा उठाकर दिनांक 21 अक्टूबर 2022 को एक श्रमिक तथा 23 दिसंबर 2022 को छुट्टियों तथा फर्जी दस्तावेजों के नाम पर दो अन्य श्रमिकों को नौकरी से बर्खास्त कर दिया।
प्रबंधन की साजिश, यूनियन का प्रतिरोध
प्रबंधन ने फर्जी दस्तावेजों के नाम पर जांच कार्यवाही पूरे किए हुए श्रमिकों को निकालने की प्रक्रिया फरवरी मार्च माह में तेज करना शुरू कर दिया था। प्रबंधन ने 25-27 फरवरी को फैक्ट्री में लगभग ढाई सौ ठेका मजदूरों को भर्ती कर अपना इरादा जाहिर कर दिया था।
यूनियन ने प्रबंधन की मंशा को भाँपते हुए दिनांक 1 मार्च 2023 की सुबह 7:30 बजे से दोपहर 2:00 बजे तक टूल डाउन कर काम रोक दिया। सभी मजदूरों ठेका, अप्रेंटिस, नीम ने मशीनें बंद कर, प्रबंधन की मजदूर विरोधी मंशा का विरोध किया और कहा कि फर्जी दस्तावेजों के नाम पर स्थाई मजदूरों व पुराने ठेका मजदूरों की छंटनी करना बंद किया जाए तथा बर्खास्त तीन मजदूरों को काम पर वापिस लिया जाए।
प्रबंधन ने पुलिस प्रशासन व श्रम विभाग को हड़ताल खुलवाने के लिए बुलाया लेकिन मजदूर एकता के सामने पुलिस प्रशासन व श्रम विभाग को भी यूनियन व प्रबंधन के बीच बातचीत कर फर्जी के नाम पर शुरू की गई छंटनी पर रोक लगाने के लिए मजबूर किया गया।
प्रबंधन ने श्रम अधिकारी के निर्देश को तोड़ा
श्रम विभाग ने 10 दिनों में बर्खास्त किए गए तीन मजदूरों को काम पर वापस लेने, फर्जी दस्तावेजों के नाम पर शुरू की गई छंटनी की प्रक्रिया पर रोक लगाने व समाधान करने की कार्यवाही कर 3 मार्च 2023 को प्रबंधन व यूनियन की समाधान वार्ता बुलाई। उसके बाद यूनियन ने हड़ताल खोल दी। परंतु श्रम विभाग की उस कार्यवाही पर प्रबंधन ने अपनी असहमति जताई।
3 मार्च को प्रबंधन पक्ष अपने अड़ियल रुख पर कायम रहा और सहायक श्रम आयुक्त महोदय ने भी प्रबंधन को इस पर रोक लगाने के लिए दृढ़ता से नहीं कहा। मामले की गंभीरता को देखते हुए सहायक श्रम आयुक्त ने दोनों पक्षों को यथास्थिति तथा शांति बनाए रखने के लिखित आदेश पारित किया। 13 व 15 मार्च की वार्ताओं में भी प्रबंधन का रवैया अड़ियल रहा तथा उसने तीन बर्खास्त श्रमिकों को वापस लेने से और फर्जी दस्तावेजों के नाम पर की जा रही छंटनी पर रोक लगाने से मना कर दिया।
श्रम अधिकारी ने दोनों पक्षों को यथास्थिति व शांति बनाए रखने के निर्देश दिए। इसके बावजूद 17 मार्च को प्रबंधन ने यूनियन के तीन पदाधिकारियों यूनियन के प्रधान मोहिंदर कपूर, महासचिव अजीत सिंह व संगठन सचिव सुनील कुमार को पुलिस बल लगाकर निलंबित कर दिया गया। यूनियन के आंदोलन को तोड़ने के लिए प्रबंधन ने यह पूरी योजना बनाकर यूनियन प्रतिनिधियों को निलंबित किया।
18 मार्च को जब यूनियन प्रतिनिधि कंपनी में यूनियन कार्यालय गए तो प्रबंधन ने प्रतिनिधियों को गेट पर रोकने के प्रयास किए। लेकिन मजदूरों ने एकजुट विरोध किया और प्रतिनिधियों को यूनियन कार्यालय लाए। प्रबंधन ने पुलिस को बुला लिया जिसने यूनियन ऑफिस में जाकर पदाधिकारियों से बातचीत की।
20 मार्च को प्रबंधन ने बड़ी संख्या में पुलिस को बुलाकर फैक्ट्री को छावनी में तब्दील कर तथा बाउंसरो के रूप में असामाजिक व अराजक तत्वों को भर्ती कर फैक्ट्री में तैनात कर दिया। इसके साथ ही बाउंसर फैक्ट्री के भीतर श्रमिकों के कार्य स्थल पर जाकर श्रमिकों को डराने घूरने लग गए। आज 8 अप्रैल को यह प्रेस विज्ञप्ति लिखे जाने तक भी बाउंसर व पुलिस फैक्ट्री के अंदर तैनात हैं।
उपायुक्त के निर्देश के बावजूद प्रबंधन की मनमानी जारी
यूनियन ने कहा कि 21 मार्च को अतिरिक्त उपायुक्त गुरुग्राम के कार्यालय में समाधान वार्ता हुई। अतिरिक्त उपायुक्त ने दोनों पक्षों से मामले का विवरण समझा। उन्होंने प्रबंधन से कहा कि क्या उनके पास मजदूरों को फैक्ट्री में भर्ती करने का कोई क्राइटेरिया या मापदंड है? कोई नोटिफिकेशन या एडवर्टाइजमेंट है? अगर है तो प्रबंधन उसे आगामी 24 मार्च की वार्ता में पेश करे।
इसके साथ ही उन्होंने जनवरी, फरवरी, मार्च माह में प्रबंधन ने जितने भी ठेका श्रमिकों की फैक्ट्री में भर्ती किया है उनका नाम सहित विवरण पेश करने और दोनों पक्षों को शांति बनाए रखने के निर्देश दिए।
उक्त वार्ता में प्रबंधन ने अतिरिक्त उपायुक्त महोदय को यह भी बताया कि यह यूनियन एक्टिव यूनियन है। यह ठेका मजदूरों को यूनियन की सदस्यता देती है। अन्य मजदूरों के संघर्षों में शामिल होती है। यह मार्क्ससिस्ट हैं। यह जेएनयू जाते हैं। जिस पर प्रशासनिक अधिकारी ने चुप्पी साध ली।
24, 27, 29 मार्च को अतिरिक्त उपायुक्त महोदय के समक्ष वार्ता नहीं हो पाई। इसी बीच प्रबंधन ने 28 मार्च को दो श्रमिकों को तथा 29 मार्च को यूनियन के दो प्रतिनिधियों को आरोप पत्र दे दिया।
प्रबंधन ने 7 अप्रैल को 3 पुराने ठेका मजदूरों को भी फर्जी दस्तावेजों का हवाला देकर बर्खास्त कर दिया। इन तीनों ठेका श्रमिकों को वर्ष 2022 में यूनियन ने सदस्यता दी थी और इन श्रमिकों का यूनियन की सदस्यता को लेकर पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में मामला लंबित था। ठेका मजदूर यूनियन का सदस्य न बने इसके लिए प्रबंधन ने इस मामले को तिलांजलि देने के लिए बर्खास्त कर दिया।
श्रम व प्रशासनिक अधिकारी प्रबंधन को दे रहे हैं शह
श्रम विभाग व प्रशासननिक अधिकारी जब यथास्थिति व शांति बनाए रखने के आदेश/निर्देश दोनों पक्षों को दे रहे हैं तो उसके बावजूद भी प्रबंधन ने तीन यूनियन पदाधिकारियों को निलंबित कर दिया और चार श्रमिकों को आरोप पत्र क्यों दे दिया?
दूसरी ओर बाउंसरो को तैनात कर प्रबंधन ने फैक्ट्री में डर व भय का माहौल बना दिया है। 30 मार्च को प्रबंधन ने 10 श्रमिकों को और निलंबित कर दिया। प्रबंधन ने 13 श्रमिकों को निलंबित तथा चार श्रमिकों को आरोप पत्र देकर जाहिर कर दिया है कि वह छंटनी की अपनी मंशा को त्यागने को तैयार नहीं है।
वही दूसरी ओर श्रम विभाग व प्रशासनिक अधिकारी कंपनी प्रबंधन को शह दे रहे हैं। प्रबंधन ने श्रम विभाग व प्रशासनिक अधिकारी की यथास्थिति व शांति के निर्देशों को ठेंगा दिखा दिया।
प्रबंधन का अड़ियल रुख जारी
5 अप्रैल की संराधन वार्ता में भी प्रबंधन का रुख अड़ियल रहा। वह फर्जी दस्तावेजों के बहाने तथा यूनियन कार्यवाहियों में भाग ले रहे श्रमिकों को निकालने की बात करता रहा। प्रबंधन ने वार्ता में यह भी कहा कि जब सभी फैक्ट्रियों जिसमें यूनियने भी हैं, में फर्जी दस्तावेजों के कारण स्थाई मजदूरों को निकाला जा रहा है तो यह यूनियन हमें श्रमिकों को क्यों नहीं निकालने दे रही है। इस पर भी सहायक श्रम आयुक्त चुप रहे।
प्रबंधन की असल पीड़ा यही है कि जब गुड़गांव औद्योगिक इलाके की अन्य फैक्ट्रियों में भी स्थाई मजदूरों को छिपी छंटनी के रूप में निकाला जा रहा है तो वह पीछे क्यों रहे। प्रबंधन फैक्ट्री में श्रमिकों की छंटनी कर मौजूद 693 स्थाई की संख्या 300 से कम करना और बड़े पैमाने पर ठेका मजदूरों की भर्ती कर श्रम की खुली लूट करना चाहता है।
मज़दूर विरोधी नीतियों का परिणाम
यूनियन ने कहा कि असल में यह सब उदारीकरण की उन्हीं नीतियों का परिणाम है जिसके तहत मोदी सरकार ने 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को खत्म कर मजदूर विरोधी चार लेबर कोड्स बनाए हैं। बेलसोनिका प्रबंधन के साथ-साथ पूरे देश में स्थाई मजदूरों को निकालकर ठेके के तहत तथा कौशल विकास के नाम पर सस्ते व अधिकार विहीन मजदूरों को भर्ती कर पूंजीपति वर्ग श्रम की खुली लूट करना चाहता है।
लेबर कोड्स में मजदूरों को संगठित होने के अधिकार को कठिन कर दिया है, स्थाई कार्य पर स्थाई मजदूरों के स्थान पर अस्थाई मजदूरों को नियुक्त करने का अधिकार मालिकों को दे दिया गया है, गैर कानूनी हड़ताल करने पर जुर्माने व सजा के प्रावधान मजदूरों व मजदूर यूनियन के ऊपर कर दिए गए हैं।
इसके साथ ही हड़ताली मजदूरों का समर्थन करने वाले संगठनों-व्यक्तियों पर भी जुर्माने व सजा के प्रावधान इन लेबर कोड्स में किए गए हैं। यहां तक की महिलाओं के रात्रि पाली में खतरनाक उद्योगों में कार्य करने तक के प्रावधान किए गए हैं।
बेलसोनिका प्रबंधन इन्हीं मजदूर विरोधी लेबर कोड्स से ऊर्जा लेकर परमानेंट मजदूरों की छंटनी करना चाहता है। बेलसोनिका यूनियन पिछले 2 वर्षों से प्रबंधन की इस छिपी छंटनी के खिलाफ संघर्ष कर रही है।
बेलसोनिका यूनियन का आह्वान
यूनियन ने प्रेस वार्ता में बेलसोनिका प्रबंधन द्वारा की जा रही तानाशाही के साथ-साथ पूरे मजदूर वर्ग पर हो रहे हमलों, लेबर कोड्स व ठेका प्रथा पर सवाल उठाए। मजदूर वर्ग पर हो रहे इन हमलों के खिलाफ मजदूरों की वर्गीय एकता बनाकर लड़ने का आह्वान किया है।
कहा कि मजदूर वर्ग को इन हमलों के खिलाफ अपनी क्षेत्रीय एकता से लेकर राष्ट्रीय एकता बनाकर संघर्ष को व्यापक बनाना होगा। बेलसोनिका यूनियन ने सभी मजदूर यूनियनों, मजदूर संगठनों, किसान संगठनों, इंसाफ पसंद जनता से इस संघर्ष में एकजुट होकर लड़ने का आह्वान किया है।