बजट 2022-1 : मनरेगा राशि आवंटन में भारी कटौती, बेरोज़गारी चरम पर

बजट में खाद्यान्न सब्सिडी में भी कटौती करके 2.1 लाख करोड़ से घटा कर 1.46 लाख करोड़ तो खाद सब्सिडी पिछले बजट के अपेक्षा 1.4 लाख करोड़ से कम करके 1.05 लाख करोड़ कर दिया गया।
आज, 1 फरवरी 2022, को देश के वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने देश का बजट 2021-22 संसद में पेश किया। इस बीच देश का मीडिया जगत शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव पर बात करता रहा। बड़े-बड़े विशेषज्ञों को बैठा कर लगातर बहस की जा रही थीं।
लेकिन इन सब के बीच लॉकडाउन और भूखमरी की मार झेल रहा देश का मेहनतकश-मजदूर इस आशा में था कि शायद उन्हें कुछ अच्छा मिलेगा। अर्थशास्त्रियों के मुताबिक युवाओं में बेरोज़गारी चरम सीमा पर पहुंच चुकी है—20-24 वर्श के युवाओं में से लगभग एक-तिहाई (30%) बेरोज़गार है। इसी दौर में, देश के सबसे धनी 20% परिवारों के आय में 39% बढ़ोतरी हुई है।
बल्कि मनरेगा जैसी सरकारी योजना जिससे कामगारों को काम और मजदूरी मिलती थी (कम ही सही, लेकिन कुछ तो मिलती थी) इस बजट में इसमें दी जाने वाली राशी में भरी कटौती कर दी गई है।
साल 2020-21 के बजट में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार योजना (मनरेगा) में कुल आवंटित राशि 1,11,500 करोड़ था जिसमें 2021-22 के बजट में 34.52% कटौती करते हुए मात्र 73,000 करोड़ ही दी गई है। इसके साथ ही काम के दिनों में भी कटौती की गई है।
जबकि कोविड-19 महामरी के दौरान सरकार द्वारा बिना सोचे समझे किए गए लॉकडाउन से शहरों से काम छोड़कर बहुत बड़ी संख्या में मेहनतकश अपने गांवों की और पलायन किया है। जिससे बेरोजगारी चरम पर है और लोगों को अपना पेट और घर चलाने के लिए काम की सख्त जरूरत है। उस समय मनरेगा जैसे योजना में फंड को इतनी बड़ी मात्रा में कम करना यह साफ जाहिर करता है कि मेहनतकश-मजदूरों को मनरेगा के तहत् जो काम की गारंटी मिलती थी सरकार उसे भी मजदूरों से छीन लेना चाहती है और मगरमच्छ के तरह मुंह बाए कॉरपोरेट के आगे फेंक देने के लिए तैयार है।
वहीं दूसरी तरफ इस बजट में खाद्यान्न सब्सिडी में भी कटौती करते हुए 2.1 लाख करोड़ से इसे घटा कर 1.46 लाख करोड़ की गई है। वहीं खाद सब्सिडी को घटाते हुए इसमें पिछले बजट के अपेक्षा इस बार 1.4 लाख करोड़ से कम करते हुए 1.05 लाख करोड़ कर दिया गया है।लेकिन देश की कुछ मीडिया चैनल सरकार की दलाली की हदें पार करते हुए हुए शेयर बाजार और क्रिप्टो के नियमन, उछल और गिरावट पर बहस कर रही है। इस देश को बनाने वाले मजदूर किसान उनके बहस से बाहर हैं।