आशा, आंगनवाड़ी आदि स्कीम वर्कर्स की 24 सितंबर को देशव्यापी हड़ताल को व्यापक समर्थन

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अखिल भारतीय संयुक्त समिति के आह्वान पर आंगनवाड़ी, आशा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और मिड डे मील समेत अन्य स्कीम वर्कर्स की देशव्यापी हड़ताल को एसकेएम ने भी समर्थन दिया है।

आंगनवाड़ी, आशा, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और मिड डे मील समेत अन्य स्कीम वर्कर्स 24 सितंबर को देशव्यापी एक दिवसीय हड़ताल पर रहेंगे। इस हड़ताल का आह्वान अखिल भारतीय संयुक्त समिति ने किया है।

स्कीम वर्कर्स फेडरेशन के संयुक्त मंच ने 14 सितंबर को हड़ताल का नोटिस दिया था। जिसमें देशभर के स्कीम वर्कर के शामिल होने का दावा किया गया था, यह नोटिस केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय के सचिव को दिया गया है।

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ये फ्रंटलाइन वर्कर न्यूनतम मजदूरी के प्रावधान, सुरक्षा, बीमा आदि के साथ श्रमिकों के रूप में अपनी सेवाओं को नियमित करने की मांग कर रहे हैं। इसके साथ वे सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और सेवाओं के निजीकरण को रोकने और चार श्रम संहिताओं को वापस लेने की भी माँग कर रहे हैं।

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संयुक्त किसान मोर्चा व ट्रेड यूनियनों ने दिया समर्थन

इस हड़ताल को देशभर के किसान संगठनों का भी साथ मिला है जबकि सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने पहले ही इनका समर्थन कर दिया था। संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने रविवार को, 24 सितंबर 2021 को होने वाली इस हड़ताल को सक्रिय समर्थन देने का ऐलान किया है।

एसकेएम ने अपने बयान में कहा है कि वो यह मानता है कि देश के दूरदराज के हिस्सों में भी पोषण, स्वास्थ्य देखभाल, बच्चों की देखभाल और शिक्षा की बुनियादी सेवाएं देने वाले इन योजना कार्यकर्ताओं, जिसमें ज्यादातर महिलाएं हैं, का शोषण किया जा रहा है और उन्हें भरण-पोषण भत्ता भी नहीं मिलता है।

ये श्रमजीवी अपनी जान जोखिम में डालकर कोविड महामारी से लड़ने में सबसे आगे रहे हैं। एसकेएम इन लाखों श्रमिकों को बधाई देता है और 24 सितंबर के लिए नियोजित उनकी ऐतिहासिक अखिल भारतीय हड़ताल के प्रति पूर्ण एकजुटता व्यक्त करता है।

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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की वायदाखिलाफी से आक्रोश

उधर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री द्वारा आशा वर्कर्स से किये गए वायदा खिलाफी के विरुद्ध भी आक्रोश से हड़ताल के व्यापक होने की उम्मीद है।

ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के प्रदेश महामंत्री डॉ कैलाश पाण्डेय, ने प्रेस को जारी बयान में कहा कि, उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने 31 अगस्त को खटीमा में आशाओं के प्रतिनिधिमंडल से 20 सितंबर तक आशाओं के मासिक मानदेय पर शासनदेश जारी करने का वादा किया था। लेकिन 20 दिन बीतने के बाद भी सरकार ने शासनादेश जारी नहीं किया। मुख्यमंत्री जी आपके वादे का क्या हुआ, यह सवाल उत्तराखण्ड की हर आशा आपसे पूछना चाहती है।

यूनियन महामंत्री ने कहा कि, सेवा के नाम पर शोषण झेल रही आशाओं ने आंदोलन जरूर स्थगित किया था लेकिन सरकार अपने वादे को जल्द ही पूरा नहीं करेगी तो फिर से संघर्ष को तेज किया जायेगा और देहरादून कूच कर सरकार को घेरा जायेगा।

सीटू से सम्बद्ध उत्तराखंड आशा कार्यकर्ता एसोसिएशन ने कहा मानदेय में वृद्धि की मांग को लेकर पिछले एक महीने से अधिक समय से अपने काम का बहिष्कार कर रही आशा कार्यकर्ता भी उत्तराखंड में 24 सितंबर को राज्य भर में रैलियां करेंगी। उन्होंने कहा, “राज्य में 13,000 आशाएं हैं और सभी हड़ताल हिस्सा लेंगी।”

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स्कीम वर्कर्स की माँगें-

10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा हस्ताक्षरित, नोटिस में 17 मांगों को शामिल किया गया है-

  1. उन सभी योजना कर्मियों को फ्रंटलाइन वर्कर अधिसूचित करें जिन्हें कोविड ड्यूटी में नियुक्त किया गया था। फ्रंटलाइन वर्कर्स को प्राथमिकता देते हुए सभी के लिए तत्काल मुफ्त और सार्वभौमिक टीकाकरण सुनिश्चित करें। एक निश्चित समय सीमा के भीतर सार्वभौमिक मुफ्त टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए वैक्सीन उत्पादन में तेजी लाएं और वितरण को सरकारी विनियमन के तहत लाएं।
  2. सभी फ्रंटलाइन वर्कर्स और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं तथा स्कीम वर्कर्स सहित महामारी-प्रबंधन कार्य में लगे लोगों के लिए सुरक्षात्मक उपकरण आदि की उपलब्धता सुनिश्चित करें। सभी फ्रंटलाइन श्रमिकों के बार-बार, निरंतर और फ्री कोविड-19 टेस्ट किए जाएं। कोविड से संक्रमित फ्रंटलाइन वर्कर्स को अस्पताल में भर्ती करने को प्राथमिकता दी जाए।
  3. स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए जीडीपी का 6 प्रतिशत आवंटित किया जाए। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली और स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत करें ताकि अस्पताल में पर्याप्त बिस्तर, ऑक्सीजन और अन्य चिकित्सा सुविधाओं को सुनिश्चित किया जा सके और कोविड संक्रमण बढ़ने पर आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके। आवश्यक स्वास्थ्य कर्मियों की भर्ती सहित सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जाए। सुनिश्चित करें कि गैर-कोविड रोगियों को सरकारी अस्पतालों में प्रभावी उपचार मिले।
  4. सभी फ्रंटलाइन श्रमिकों को 50 लाख रुपये का बीमा कवर दो जिसमें ड्यूटी पर होने वाली सभी मौतों को कवर किया जाए, साथ ही मृत्यु होने वाले वर्कर के आश्रितों को पेंशन/ नौकरी दी जाए। पूरे परिवार के लिए कोविड-19 के उपचार का भी कवरेज दिया जाए।
  5. कोविड-19 ड्यूटी में लगे सभी कॉंट्रैक्ट व स्कीम वर्कर्स के लिए प्रति माह 10,000 रुपए का अतिरिक्त कोविड जोखिम भत्ता भुगतान किया जाए। स्कीम वर्कर्स के वेतन और भत्ते आदि के सभी लंबित बकायों का भुगतान तुरंत किया जाए।
  6. ड्यूटी पर रहते हुए संक्रमित हुए सभी लोगों के लिए न्यूनतम 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।
  7. मजदूर विरोधी लेबर कोड्स को वापस लिया जाए। स्कीम वर्कर्स को ‘वर्कर’ की श्रेणी में लाया जाए। जब तक स्कीम वर्कर्स का नियमितिकरण लंबित है तब तक सुनिश्चित करें कि सभी स्कीम वर्कर्स का ई श्रम पोर्टल में पंजीकरण किया जाए।
  8. केंद्र प्रायोजित योजनाओं जैसे आईसीडीएस, एनएचएम व मिड डे मील स्कीम के बजट आबंटन में बढ़ोतरी कर इन्हें स्थायी बनाओ। आईसीडीएस और मिड डे मील स्कीम के सभी लाभार्थियों के लिए अच्छी गुणवत्ता के साथ पर्याप्त अतिरिक्त राशन तुरंत प्रदान किया जाए। इन योजनाओं में प्रवासियों को शामिल किए जाए।
  9. 45वें व 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन की सिफारिशों के अनुसार स्कीम वर्कर्स को मजदूर के रूप में मान्यता दो, सभी स्कीम वर्कर्स को 21000 रुपए प्रतिमाह न्यूनतम वेतन दो, 10000 रुपए प्रतिमाह पेंशन तथा ईएसआई, पीएफ आदि प्रदान करो।
  10. मौजूदा बीमा योजनाएं- प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बीमा योजना। इन सभी योजनाओं को सभी स्कीम वर्कर्स को कवर करते हुए सार्वभौमिक कवरेज के साथ ठीक से लागू किया जाए।
  11. गर्मियों की छुट्टियों सहित वर्तमान में स्कूल बंद होने की स्थिति में मिड डे मील वर्कर्स को न्यूनतम वेतन दिया जाए। केंद्रीयकृत रसोईयां और ठेकाकरण न किया जाए।
  12. कोरोना अवधि तक सभी को 10 किलो राशन प्रति व्यक्ति प्रति माह दिया जाए। महंगाई पर रोक लगाई जाए। छः महीने तक टैक्स के दायरे से बाहर सभी परिवारों के लिए 7500 रुपये प्रति माह और ज़रूरतमंदों के लिए मुफ्त राशन/भोजन की व्यवस्था की जाए। सभी के लिए नौकरियां और आय सुनिश्चित की जाए।
  13. स्वास्थ्य (अस्पतालों सहित), पोषण (आईसीडीएस और मिड डे मील स्कीम सहित) और शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाओं के निजीकरण के प्रस्तावों को वापस लो। एनडीएचएम और एनईपी 2020 को रद्द करो। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयों और सेवाओं के निजीकरण पर रोक लगाओ।
  14. जनविरोधी कृषि कानूनों को वापस लो जोकि योजनाओं के लिए हानिकारक हैं।
  15. डिजिटाइजेशन के नाम पर लाभार्थियों को निशाना बनाना बंद करें। ’पोषण ट्रैकर’, ’पोषण वाटिका’ आदि के नाम पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का उत्पीड़न बंद करें।
  16. भोजन के अधिकार और शिक्षा के अधिकार की तरह सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा के अधिकार के लिए कानून बनाया जाए।
  17. वित्त जुटाने के लिए, ‘सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट’ जैसी परियोजनाओं पर रोक लगाई जाए। संसाधनों के लिए अति धनी वर्गों पर कर लगाया जाए।
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देशभर में करीब 70 लाख स्कीम वर्कर्स हैं

गौरतलब है कि स्कीम वर्कर्स में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता तथा सहायिका, मिड-डे-मील रसोइए, ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य कार्यकर्ता आशा (ASHA) तथा शहरी क्षेत्रों की स्वास्थ्य कार्यकर्ता ऊषा (USHA), तथा सरकार के कई अन्य योजनाओं में संलग्न कार्यकर्ता शामिल हैं।

स्कूलों में कार्यरत शिक्षा मित्र समेत एएनएम योजना के कार्यकर्ता एवं आजीविका मिशन श्रमिक आदि मिलाकर विभिन्न योजनाओं से जुड़े हुए हैं।

ऐसे लोग 43 साल से स्कीम वर्कर काम कर रहे हैं लेकिन आजतक नौकरी की सुरक्षा नहीं है, यही नहीं अभी तक इन्हे श्रमिक का दर्जा नहीं मिला है। इनकी संख्या तकरीबन 65 से 70 लाख होगी। इन्हीं पर देश की स्वास्थ्य व्यवस्था का आधार टिका हुआ है।

श्रमिकों का दुख है कि उनके श्रम को मान्यता दिलाने की उनकी लंबे समय से चली आ रही मांग अभी भी पूरी नहीं हुई है, आज भी इन्हे कर्मचारी नहीं बल्कि कार्यकर्ता ही मान जाता है।

हालांकि पिछले साल से देश में स्कीम वर्कर ने स्थानीय स्वास्थ्य विभागों को कोरोना प्रसार को रोकने में मदद करने में सबसे अहम भूमिका निभाई।

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