तमिलनाडु: मछली पालन बिल के खिलाफ मछुआरों का विरोध प्रदर्शन

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मछली पकड़ने का कारोबार भी होगा कॉरपोरेट के हाथों में

मछुआरों को चेन्नई के मरीना बीच में प्रवेश करने से रोका जा रहा है। सोमवार को समूचे तमिलनाडु के मछुआरों ने भारतीय समुद्री मत्स्य पालन विधेयक के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, रैलियां और हडतालें आयोजित कीं। विरोध प्रदर्शन के दौरान मछुआरा बस्तियों में काले झंडे फहराए गए और जिला कलेक्टरों को जनहित याचिकाएं सौंपी गईं, जिसमें विधयेक को वापस लिए जाने की मांग की गई थी।

चेन्नई में, मरीना बीच पर मछुआरों को समुद्र तट की घेराबंदी करने से रोकने के लिए भारी बंदोबस्त के साथ बैरिकेडिंग की गई थी। थूथुकुडी में, सभी मछुआरों ने विधयेक पर अपने विरोध को दर्ज करने के लिए मछली पकड़ने के लिए काम पर जाने का बहिष्कार किया। तमिलनाडु-पुड्डुचेरी मछुआरा महासंघ, कई मछुआरा यूनियनों के एक छतरी निकाय, ने विधेयक के खिलाफ अनवरत संघर्ष को जारी रखने का आह्वान किया है।

मछुआरा संघों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार पर प्रस्तावित कानून को आगे बढ़ाने से पहले हितधारकों से परामर्श नहीं करने का आरोप लगाया है।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, मरीना बीच पर विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले के. भारती का कहना था: “बिल में पारंपरिक मछुआरों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर विचार नहीं किया गया है। इसका उद्देश्य मछुआरों से सिर्फ लाइसेंस और जुर्मानों के लिए धन उगाही करने का है। चूँकि भारत सरकार ने इस बारे में किसी भी हितधारकों से परामर्श नहीं किया है, यही वजह है कि उन्होंने मछुआरा समुदाय की परंपराओं और संस्कृति को नहीं समझा है।” सभी छोटे, फाइबर एवं स्वचालित नावों को मछली पकड़ने वाले पोत के रूप में मान्यता देने के प्रावधान ने इस समुदाय के गुस्से को मुख्य रूप से बल दिया है।

“मीनावम काप्पोम” (मत्स्य व्यवसाय बचाओ) अभियान के धर्मराज ने इस परिभाषा की खिल्ली उड़ाई। उनका कहना था “यह केंद्र सरकार की मछुआरों द्वारा उपयोग में लाये जाने वाली विभिन्न प्रकार की मछली पकड़ने वाली नावों के बारे में अज्ञानता को दर्शाता है। पारंपरिक मछुआरों और नावों के मालिकों के पास अपनी नावों में परिष्कृत उपकरण स्थापित करने की क्षमता नहीं है। सिर्फ बड़े पोतों में इस प्रकार की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। सभी नावों को एक ही श्रेणी के तहत लाना बेतुका है।”

विधेयक में मछुआरों द्वारा अन्य चीजों के अलावा, लाइसेंस हासिल करने और प्रतिबंधित क्षेत्रों में बने रहने जैसे मामलों के उल्लंघन करने पर दंड को सूचीबद्ध किया गया है। परंपरागत मछुआरा समुदाय अनुकूल समय के हिसाब से समुद्र में प्रवेश करते हैं, जिसे वे न्यूनतम तकनीक के सहारे तय करते हैं।

भारती ने कहा “विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) में मछली पकड़ने के लिए मछुआरों को लाइसेंस हासिल करना; शुल्क चुकाने पर, मछली पकड़ने के लिए उनके समय-सीमा को सीमित करना और उन्हें दण्डित करना, उनके मछली पकड़ने के अधिकारों के खिलाफ जाता है। हर प्रकार से यह विधेयक मछुआरों के सिर्फ अधिकारों को ही छीनने के काम आएगा और उन्हें कुछ क्रियान्वयन कराने वाले अधिकारियों के निर्देशों का पालन करने के लिए मजबूर करने वाला साबित होता है।”

विरोध कर रहे मछुआरों के नेताओं को भी डर है कि विधेयक से मछली पकड़ने के कारोबार को कॉरपोरेट्स के हाथों में सौंपे जाने की प्रक्रिया तेज हो जायेगी। धर्मराज ने दावा किया “इतने सारे प्रतिबंधों के साथ, पारंपरिक मछुआरे समुद्र में जाने और मछली पकड़ने के व्यवसाय से ही खुद को दूर करने के लिए मजबूर हो जायेंगे। यह कॉरपोरेट्स द्वारा समुद्र में खजाने की लूट का मार्ग प्रशस्त करेगा जिनके पास ऐसा करने के लिए फिर खुली छूट होगी।”

भारती ने आगे कहा “इस 16 पन्नों के विधेयक में से 14 पृष्ठों को पारंपरिक मछुआरा समुदाय को आतंकित करने के लिए ही समर्पित कर दिया गया है। यह मछुआरा समुदाय की पीड़ा और दुर्दशा के बारे में शायद ही कोई बात करता है।”

अंतर्देशीय मछली विक्रेता और मछुआरे भी विधेयक के विरोध में एकजुट हैं और इसके तत्काल वापस लिए जाने की मांग कर रहे हैं। तमिलनाडु मछली श्रमिक संघ (सीटू) के महासचिव एस. एंथनी ने कहा: “अंतर्देशीय मछुआरे और मछली पालन ने शामिल महिलाएं भी इस विधेयक से प्रभावित होंगी। इससे उपभोक्ताओं के लिए कीमत में बढ़ोत्तरी होगी और जिसके चलते लोगों के रोजगार को नुकसान पहुंचेगा।”

इस बारे में नेताओं का कहना था कि विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के प्रति “सरकार की वचनबद्धता” को “पूरा” करने के लिए इस विधेयक का मसौदा तैयार किया गया था। भारती ने कहा “विधेयक में मछुआरा समुदाय की लंबे समय से लंबित मांगों में से किसी पर भी विचार नहीं किया गया है, लेकिन सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के प्रति अपनी वचनबद्धता को बनाये रखने की मंशा को जाहिर किया है। मछुआरों को समुद्र से बाहर करने के लिए मजबूर करने से न सिर्फ राज्य और केंद्र सरकार को विदेशी मुद्रा के मामले में नुकसान होने जा रहा है, बल्कि आम जनता के लिए आसानी से उपलब्ध होने वाला पौष्टिक भोजन भी इससे प्रभावित होगा।”

विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले विभिन्न यूनियनों के नेताओं ने विधेयक को तत्काल वापस लिए जाने की मांग की है और “केंद्र सरकार के खिलाफ संघर्ष को जारी रखने” की कसम खाई है।

न्यूजक्लिक से साभार

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