मारुति मानेसर मजदूर आंदोलन के 10 साल : संघर्षों की शानदार मिसाल

उतार-चढ़ाव से गुजरे एक अहम आंदोलन के विभिन्न दौर
4 जून 2011 को मारुति सुजुकी मानेसर प्लांट के मज़दूरों ने अपने जुझारू संघर्ष की शुरुआत की थी। आज उस संघर्ष के एक दशक बीत गए। दमन के बीच यह जुझारू आंदोलन संघर्ष के विभिन्न चरणों से गुजरता रहा। इसने मज़दूर आंदोलन को एक नई दिशा दी, तो कई अहम सबक भी दिए हैं।
4 जून, 2011 से शुरू इस संघर्ष में मारुति सुजुकी मनेसर, गुड़गांव के करीब 2700 मज़दूरों के 5 महीने तक चले लंबे आंदोलन में कई उतार-चढ़ाव के दौर रहे। लेकिन सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि पारंपरिक ट्रेड यूनियन आंदोलन की सारी सीमाओं को तोड़ते हुए इसने एक मिसाल कायम की थी।
यह वह समय था जब पूरे देश में, विशेष रूप से ऑटोमोबाइल क्षेत्र में आंदोलन कमोबेश निराश के दौर से गुजर रहा था। मारुति सुजुकी के मुख्य प्लांट में सन 2000 में बड़े आंदोलन और उसकी पराजय से जापानी मालिकों के हौसले बुलंद थे। हालांकि इस दौर में 2005 के मानेसर स्थित होंडा स्कूटर एंड बाइक व रीको धारूहेड़ा से संघर्षों का एक सिलसिला भी जारी था।
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शोषणकारी स्थितियों से संघर्ष की शुरुआत
मारुति सुजुकी इंडिया लिमिटेड ने अपनी नई इकाई मानेसर में वर्ष 2006 में प्रारंभ की। प्लांट में जहाँ कंपनी प्रबंधन ने नई तकनीक की आधुनिक मशीनें व रोबोट का इस्तेमाल किया, वहीं उन्हीं मजदूरों को भर्ती किया गया जिनकी आयु 23 वर्ष से कम थी। मज़दूर प्लांट में जी तोड़ मेहनत कर अपना सर्वोत्तम उत्पादन दे रहे थे, वहीं कंपनी कम से कम तनख्वाह देकर इनको फोकट के मज़दूरों के रूप में इस्तेमाल कर रही थी।
प्लांट में कुशल श्रमिकों को भी 3 वर्ष की ट्रेनिंग के लिए रखा गया और उन्हें मात्र 34 रुपए मासिक वेतन ही मिलता था। सभी मज़दूरों को मूलभूत जरूरतों से भी वंचित रखा जाता था- जैसे कोई भी मज़दूर चाय के समय या खाने के समय के इलावा बाथरूम नहीं जा सकता था या पानी तक नहीं पी सकता था।
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पहली यूनियन का गठन और दमन
बेहद दमन और शोषण झेलते हुए मारुति सुजुकी मानेसर प्लांट के मज़दूरों ने संघर्ष के दौर की शुरुआत की। स्थाई और ठेका मज़दूरों की एक अटूट एकजुटता कायम हुई और मज़दूरों ने अपनी पहली यूनियन गठित की।
जैसे ही यूनियन पंजीकरण की प्रिया प्रक्रिया शुरू हुई तो प्रबंधन ने दमन और बढ़ा दिया। प्रबंधन ने मज़दूरों से सादे कागजों पर जबरन हस्ताक्षर लेने शुरू कर दिए। उस वक्त नवगठित यूनियन के सात कमेटी सदस्यों सहित 11 मज़दूरों को कंपनी ने बर्खास्त कर दिया।
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ऐसे हुई बेमिसाल संघर्षों की शुरुआत
4 जून, 2011
4 जून 2011 को मज़दूरों ने अपने बेमिसाल संघर्ष की शुरुआत की और 13 दिन तक फैक्ट्री के अंदर हड़ताल करके डट गए। जिसमें स्थाई और ठेका मज़दूर एक साथ शामिल थे। इसमें क्षेत्र की अन्य यूनियनों का भी भरपूर सहयोग मिला।
आंदोलन के दबाव में एक समझौते में 11 बर्खास्त मज़दूरों को प्रबंधन ने वापस ले लिया। लेकिन प्रबंधन मज़दूरों के साथ बदले की भावना से कार्रवाई को आगे बढ़त रहा। उसने मज़दूरों की बस सुविधा बंद कर दी, कई तरीके के प्रतिबंध लगाए। साथ ही दो मज़दूरों को भी निलंबित कर दिया।
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29 अगस्त, 2011
29 अगस्त 2011 की सुबह कंपनी के गेट पर एक बैरियर लगा दिया गया और गेट पर एक नोटिस चस्पा कर मज़दूरों के लिए गुड कंडक्ट बांड पर दस्तखत की बाध्यता थोपी गई। मज़दूरों ने इस गुलामी को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और विरोध स्वरूप समस्त मज़दूर कंपनी गेट पर धरने पर बैठ गए।
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सुजुकी के 4 प्लांटों में हड़ताल
14 सितंबर को मारुति सुजुकी मानेसर के मज़दूरों के समर्थन में सुजुकी पावरट्रेन, सुजुकी कास्टिंग और सुजुकी मोटर बाइक के मज़दूरों ने अपनी माँगों को मारुति मज़दूरों की मांगों के साथ जोड़ते हुए हड़ताल शुरू कर दी। हालांकि प्रबंधन ने 16 सितंबर को अन्य फैक्ट्री के मज़दूरों की कुछ माँगों को मानकर हड़ताल खत्म करवा दी।
इस बीच 30 सितंबर को एचएमएस की अध्यक्षता में गुड कंडक्ट बांड पर दस्तखत करा कर अट्ठारह ट्रेनी मज़दूरों को काम पर वापस लेने और 14 बर्खास्त मज़दूरों को निलंबन की श्रेणी में बदलने के समझौते के साथ मज़दूर अंदर गए।
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ठेका मज़दूरों की कार्यबहाली का आंदोलन
लेकिन प्रबंधन ने मज़दूरों को बांटने के लिए नया खेल खेला और 12 सौ ठेका मज़दूरों को कंपनी के अंदर नहीं आने दिया। इसके खिलाफ सभी ठेका मज़दूर कंपनी गेट पर धरने पर बैठ गए। स्थाई मज़दूर भी अपने ठेका मज़दूर साथियों के साथ खड़े हो गए।
7 अक्टूबर को मारुति सुजुकी मानेसर, सुजुकी पावरट्रेन, सुजुकी कास्टिंग और सुजुकी बाइक के सभी मज़दूरों ने मारुति के ठेका मज़दूरों को काम पर वापस लेने और मारुति मज़दूरों की बस सेवा को बहाल करने की माँग को लेकर एक साथ हड़ताल शुरू कर दी और कंपनी के अंदर ही बैठ गए।
समर्थन में इलाके की ओमेक्स, लूमैक्स, सत्यम, एफसीसी, रीको समेत मानेसर की 10 और कंपनियों के करीब 10 हजार मज़दूरों ने हड़ताल कर दी। पार्ट्स आपूर्ति बंद होने से 12 अक्टूबर को गुड़गांव का मुख्य प्लांट फिर से बंद करना पड़ा। इस बीच करीब दो हजार पुलिस वालों के दम पर मानेसर कारखाने में बैठे मज़दूरों को बाहर निकाला गया। उनके साथ जबरदस्त अत्याचार और दमन हुआ।
मज़दूर बाहर आकर गेट पर ही धरने पर बैठ गए। अंततः 21 अक्टूबर को एक बार फिर समझौता हुआ और ठेका सहित सभी मज़दूर काम पर वापस लुई गए। लेकिन उस समय तत्कालीन नेतृत्वकारी 11 कमेटी मेंबर सहित कुल 30 मज़दूरों पर घरेलू जांच के बाद कार्यवाही का फैसला हुआ।
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जून माह में 13 दिन की हड़ताल के बाद 18 जून से 28 अगस्त तक काम के साथ 72 दिन तीखे शीत युद्ध और फिर हड़ताल। कुल मिलाकर सन 2011 में 5 महीने जुझारू संघर्षों का दौर रहा। 7 अक्टूबर 2011 को शुरू हुए संघर्ष में मज़दूर ज्यादे संगठित, आक्रामक, जुझारू हड़ताल पर आए थे।
अंततः कंपनी को सभी मज़दूरों को काम पर वापस लेना पड़ा। यही नहीं निलंबित 30 मज़दूरों को कंपनी से विदा करने के लिए सुजुकी को करोड़ों रुपए खर्च भी करने पड़े थे। आंदोलन के आखिरी पड़ाव में तत्कालीन यूनियन नेताओं द्वारा लाखों रुपए लेकर कंपनी से इस्तीफा देने की घटना ने मारुति मज़दूरों को बहुत आहत किया था। लेकिन परिस्थितियां जटिल थी और तत्कालीन नेतृत्वकारी टीम को उस वक़्त जिस समझदारी और चेतना की जरूरत थी, उसका अभाव था।
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संघर्ष से नई यूनियन का गठन और मान्यता
मज़दूरों ने एक नई ऊर्जा के साथ अपने को पुनः संगठित किया और मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन का पंजीकरण करवाने के लिए आवेदन किया। यूनियन पंजीकृत हुई और अंततः फरवरी 2012 के अंतिम सप्ताह में यूनियन पंजीकरण को मान्यता मिल गई। 1 मार्च 2012 को कंपनी गेट पर यूनियन का झंडारोहण भी हो गया।
नई यूनियन ने दिया माँगपत्र
नवगठित मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन ने अपना माँग-पत्र मारुति प्रबंधन को दिया। इसमें सबसे पहली व प्रमुख माँग ठेका प्रथा को खत्म करने और समान काम समान वेतन लागू करने की थी।
लेकिन इस माँग पर मारुति प्रबंधन में खलबली मच गई और उन्होंने हर तरीके से नवनिर्वाचित यूनियन पदाधिकारियों को प्रलोभन देने का प्रयत्न किया। प्रबन्धन यह दबाव बनाने लगा कि यह सिर्फ स्थाई श्रमिकों की यूनियन है और प्रतिनिधि उन्हीं की माँगें व सुविधाओं को उठा सकते हैं।
लेकिन यूनियन नेतृत्व ठेका श्रमिकों की माँग पर कायम रहा। जब कंपनी प्रबंधन के सभी प्रयास असफल हुए तो उन्होंने अंततः 18 जुलाई 2012 को एक षड्यंत्रबद्ध तरीके से प्लांट के अंदर झगड़ा करवाया, जिसमें एक मैनेजर की मौत हो गई।
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18 जुलाई, 2012 में सबसे तीखा दमन
18 जुलाई, 2012 को मारुति सुजुकी, मानेसर प्लांट में हुई साजिशपूर्ण घटना के बाद कंपनी प्रबंधन व हरियाणा सरकार की मिलीभगत से 148 मज़दूरों को जेल में डाल दिया गया था। साथ ही 546 स्थाई मज़दूरों और करीब 1800 ठेका मज़दूरों को बर्खास्त कर दिया। लगभग 5 साल बाद 18 मार्च 2017 को सेशन कोर्ट गुडगांव ने 117 मज़दूरों को बरी किया व 31 लोगों को दोषी करार दिया। लेकिन 13 मज़दूर आज भी जेल की कालकोठरी में अन्यायपूर्ण उम्रक़ैद की सजा भुगत रहे हैं।
प्रोविजनल कमेटी ने की अगुवाई
दमन के विकट दौर में एक नई पहल और आंदोलन को आगे बढ़ने के संकल्प के साथ एक अस्थाई कमेटी के तौर पर एक नई कार्यकारिणी – प्रोविजनल वर्किंग कमिटी, मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन का गठन हुआ। तबसे प्रोविजनल कमेटी की अगुवाई में यह आंदोलन चलता आ रहा है।
यूनियन फिर हुई स्थापित
18 जुलाई के बाद से यूनियन प्रतिनिधियों के जेल में रहने के कारण प्रबंधन ने वर्क्स कमेटी बनाकर यूनियन को खत्म करने का प्रयत्न किया। जिसके विरोध स्वरूप प्रोविजनल कमेटी ने न्यायालय में जाकर इलेक्शन कराने की गुहार लगाई। अंततः अप्रैल 2014 में प्रबंधन चुनाव कराने को मज़बूर हुआ। प्रबन्धन की तमाम कोशिशों के बावजूद मज़दूरों के सच्चे प्रतिनिधि ही जीते। उसके बाद से कंपनी में मारुति सुजुकी वर्कर्स यूनियन एक स्वतंत्र मज़दूर यूनियन के रूप में स्थापित हुई।
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आंदोलन की विशेषता
स्वतःस्फूर्त आंदोलन से शुरुआत
मारुति मानेसर मज़दूरों का यह आंदोलन स्वतःस्फूर्त आंदोलन के रूप में शुरू हुआ था। औद्योगिक संकट के कारण मज़दूर आंदोलन में एक प्रकार की स्वतःस्फूर्तता होती है। यह मारुति सहित गुड़गांव क्षेत्र के छोटे-बड़े ऑटोप्लांट में कई स्तरों पर दिखलाई देती रही।
यह स्वतःस्फूर्तता हजारों करोड़ मुनाफा कमाने वाले उद्योगों की नई उत्पादन प्रक्रिया में विकट शोषण से पैदा हुई थी। मज़दूरों पर ज्यादा काम का बोझ, प्रबंधन का बढ़ता दबाव, ठेका मज़दूरी, बेहद कम वेतन, आर्थिक व सामाजिक असुरक्षा से विशेष रूप से युवा मज़दूरों की भीतर गुस्सा पनपता रहा है।
हालांकि मारुति में 2011 की तीन हड़तालों के समय भड़काऊ स्थिति के बावजूद कोई भी मारपीट की घटना नहीं हुई। मगर 18 जुलाई 2012 की घटना इस पूरे दौर की दमनकारी स्थितियों और प्रबन्धन की साजिश का प्रतिफल था।
मारुति के संघर्ष की अंतर्वस्तु कुछ आर्थिक मांगों तक सीमित नहीं थी, बल्कि पूरे उत्पादन प्रक्रिया, शोषण-दमन पर आधारित थी।
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आंदोलन के नए रूप, जनवादी तरीका
मारुति संघर्ष गुड़गांव क्षेत्र और देश भर में स्थापित केंद्रीय यूनियनों की संकीर्णता व समझौतापरस्ती के खिलाफ तथा उत्पादन की नई जमीन पर पूँजीपतियों के शोषण से पैदा हो रहे ऑटो मज़दूरों के जुझारू होते संघर्ष और मज़दूरों के स्वतंत्र यूनियन बनाने की नई धारा का प्रतिनिधि है।
इस आंदोलन ने एक तरफ संघर्ष के रूप में व्यापकता और लचीलापन दिया, दूसरी ओर स्थापित ट्रेड यूनियनों के विपरीत जनवादी प्रक्रिया में नेतृत्व का विकास हुआ। आम मज़दूरों का नेतृत्व पर नियंत्रण यूनियन को प्रबंधन के ग्रिप में जाने से रोके रखा।
मारुति आंदोलन में संघर्ष को असरदार बनाए रखने के लिए और मज़दूरों की व्यापक एकता कायम करने के लिए मज़दूरों को प्रचलित कानूनी ट्रेड यूनियन आंदोलन के तौर-तरीकों की सीमाओं को पहचान कर बार-बार नए रूपों को इस्तेमाल करना पड़ा।
इसके अंतर्गत फैक्ट्री कब्जा कर के अंदर बैठ जाना, स्लोडाउन, अन्यायपूर्ण गुड कंडक्ट बांड और समझौता तोड़कर ठेका मज़दूरों के लिए हड़ताल, तीसरी हड़ताल के समय समर्थन में बाकी फैक्ट्रियों में हड़ताल संगठित करना आदि कथित गैरकानूनी पद्धतियों का भी सफल प्रयोग हुआ।
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आंदोलन की व्यापकता और फैलाव
18 जुलाई 2012 की त्रासदपूर्ण घटना के बाद मानेसर में दमन के माहौल के कारण जब मज़दूरों को पीछे हटना पड़ा, तब इलाकाई और सामाजिक समर्थन के लिए कानूनी दायरे में ही अनेकों रूपों को मज़दूरों ने आजमाया।
मज़दूरों ने इसे ऑटो उद्योगों सहित पूरे औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों के बीच विभिन्न प्रकार से छोटे बड़े आंदोलनों के जरिए साथ ही सोशल मीडिया के माध्यम से देशभर के मज़दूरों और समाज के बीच आंदोलन को व्यापकता प्रदान किया और जिंदा रखा।
भारी दमन के बावजूद मज़दूरों ने संघर्ष की जो नई धारा विकसित की उसने मारुति सुजुकी मानेसर प्लांट के मज़दूरों के आंदोलन को पूरे देश और दुनिया के तमाम देशों में एक महत्वपूर्ण मुकाम पर पहुंचा दिया।
कंपनी के भीतर यूनियन एक बार फिर एक स्वतंत्र यूनियन के तौर पर स्थापित हो हुई और अन्यायपूर्ण सजा झेलते जेल में बंद 13 मज़दूरों की रिहाई का संघर्ष हो या साढ़े पाँच सौ स्थाई मज़दूरों की गैरकानूनी बर्खास्तगी के खिलाफ संघर्ष हो, अपनी तमाम कमजोरियों के बावजूद मारुति मज़दूरों का संघर्ष सतत जारी है।
10 साल से सतत जारी यह संघर्ष मिसाल बन कर मज़दूर आंदोलन को नई रोशनी दिखा रहा है।
संघर्ष से मिले बेमिसाल सबक
कई नंगी सच्चाईयां हुईं उजागर
- मारुति मजदूरों के इस संघर्ष में पूँजी निवेश के नए इलाकों में शोषण के पहिए का सच उजागर किया और संघर्ष की संभावनाओं को सामने रखा है।
- इस संघर्ष में सरकार-प्रशासन-पुलिस-न्यायपालिका-मीडिया, चुनावी राजनीति पार्टी, स्थापित ट्रेड यूनियनों की पोल खोली है।
आंदोलन ने बहुत कुछ दिया
- मारुति मज़दूरों ने जो पहलकदमी की उसका इलाकाई ट्रेड यूनियन स्तर पर भारी असर रहा है।
- इस संघर्ष ने गुड़गांव से बावल तक मज़दूरों के संघर्षों की नई जमीन और नए रास्ते तैयार किए।
- इस संघर्ष ने देशभर में प्रगतिशील और क्रांतिकारी ताक़तों और संगठनों के बीच जमीनी संपर्क का आधार बनाया है।
- इस आंदोलन में मज़दूरों के स्वतंत्र यूनियन बनाने की नई धारा का प्रतिनिधित्व किया है।
- इस आंदोलन ने देश के मजदूर आंदोलन विशेष रूप से क्रांतिकारी आंदोलन को काफी ऊर्जा दी है।
- इस आंदोलन ने यह भी दिखाया है कि सिर्फ छोटे छोटे बंद या बंद होने वाले कारखानों की दयनीय स्थिति में रह रहे मज़दूरों के बीच ही नहीं, बल्कि संगठित क्षेत्र में जहाँ पूँजी का नए रूप में भारी निवेश हो रहा है, वहाँ भी मज़दूरों में क्रांतिकारी तौर-तरीके से आंदोलन आगे बढ़ सकता है।
मारुति आंदोलन : संकट और चुनौतियाँ
ठेका मज़दूरों का मुद्दा पीछे छूटा
ठेका मजदूरों का मुद्दा मारुति आंदोलन में एक अहम मुद्दा होने के बावजूद 18 जुलाई 2012 के बाद ठेका मजदूर आंदोलन से बाहर रह गए। बाद में आई इस कमजोरी ने भी एक यहां सबक दिया है। इसके बावजूद आंदोलन ने विशेष रूप से आज के हालात में स्थाई ठेका मज़दूरों की जुझारू एकता बनाने की जरूरत को महत्वपूर्ण रूप से पेश किया है।
नई धारा को और ताकतवर बनाने की जरूरत
- मारुति आंदोलन एक अहम स्थान रखता है लेकिन जुझारू आंदोलन होने के बावजूद यह नहीं कहा जा सकता है कि मजदूर वर्ग अभी नई जागरण की स्थिति में है।
- आज देशभर में स्थापित ट्रेड यूनियनों के खोखलेपन के विरुद्ध जुझारू स्वतंत्र जनवादी ट्रेड यूनियन की उभरती नई धारा को और ताकतवर बनाने की जरूरत है।
- मारुति आंदोलन को मलिकों और सत्ताधारी वर्ग ने वर्गीय आंदोलन के रूप में लिया और मज़दूरों से वर्गीय दुश्मनाना व्यवहार किया। लेकिन मज़दूरों की इसे वर्गीय आंदोलन के रूप में समझने में कमजोरी रही।
- समाज में मज़दूरों का राजनीतिक संघर्ष और संगठित मज़दूर आंदोलन में क्रांतिकारी शक्तियों की भूमिका अभी भी बहुत सीमित है और उसमें कोई विकल्प देना अभी दूर की बात है।
यह याद रहे…
पिछले 10 साल से जारी मारुति मज़दूरों का आंदोलन वर्तमान समय में मज़दूर आंदोलन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह संघर्ष मेहनतकश जनता, ट्रेड यूनियनों से जुड़े लोगों या परिवर्तनकामी राजनीति में आस्था रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण मुद्दों को सामने लाता है।
यह गौरतलब है कि मारुति के मज़दूरों ने अपने आंदोलन द्वारा स्वतःस्फूर्त रूप से जो शुरुआत की उसे सचेत व्यवहार में लाने का मतलब पूरे पूँजीवादी वर्ग के शोषण-दमन के इस तंत्र के खिलाफ श्रमिक वर्ग की वर्गीय लड़ाई को संगठित करने की जिम्मेदारी लेना है। यह सिर्फ मारुति मज़दूर की नहीं बल्कि देश के हर क्षेत्र में संघर्षरत मज़दूरों और क्रांतिकारियों के सामने एक अहम चुनौती है।