ट्रॉली टाइम्स: मोर्चे से निकाला आंदोलनकारी किसानों ने अख़बार

दिल्ली के सिंघू और टीकरी बॉर्डर पर बैठे किसानों और आंदोलनकारियों ने अपना अख़बार निकाला है। नाम रखा है” ट्रॉली टाइम्स”।
“इन्कलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है” भगत सिंह के इस विचार से प्रेरणा लेते हुए किसान आंदोलन से निकला है ये अख़बार।

ट्रैक्टर की ट्रॉली पर बैठे चार लोग चर्चा कर रहे थे कि मीडिया तो अपनी खबरें और आंदोलन की सच्चाई दिखता नहीं है बल्कि सरकार के इशारे पर आंदोलन को बदनाम कर रहा है तो क्यों ना अपना अख़बार निकला जाए। फिर क्या था किसी ने पेज डिजाइन कर दिया किसी ने मास्ट हेड डिजाइन कर दिया और किसी ने अनुवाद की जिम्मेदारी ले ली। एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया और जनता से अखबार के लिए सामग्री मांगी गई। कई कविताएं, कहानियां और अनुभव संपादक समूह के पास पहुंच गए।
इस प्रकार मंगलवार को “ट्रॉली टाइम्स” का पहला अंक 4 पन्नों में गुरुमुखी और हिंदी भाषा में छप कर आ गया। पहले अंक की 2000 प्रतियां छप कर अाई। 1000 प्रति सींघू बॉर्डर के लिए 800 प्रति टीकरी बॉर्डर के लिए।
पहले पन्ने पर ही नारा लिखा है ” जुटान्गे! लड़ांगे! जीतांगे! यानी संगठित होंगे! लड़ेंगे और जीतेंगे।
गोदी मीडिया के के माध्यम से मोदी सरकार ने किसान आंदोलन को बदनाम करने की कोई कसर नहीं छोड़ रखी है। तथाकथित मैनस्ट्रीम मीडिया किसान आंदोलन में किसानों के पक्ष की खबरें नहीं दिखा रहा है। ऐसे में आंदोलन से जुड़े एक्टिविस्टों और किसानों ने अध्ययन और संघर्ष के विचार को लेकर ये अख़बार निकाला है।
दिल्ली में इस वक्त क़रीब 4 लाख किसान आंदोलन कर रहे हैं और मंच की गतिविधियां भी उन तक नहीं पहुंच पाती और गोदी मीडिया की खबरों पर भरोसा नहीं किया जा सकता ऐसे में उनकी अपनी ही भाषा में ट्रॉली टाइम्स अखबार निकाल दिया गया। अजय पाल नट, सुरमीत माही, गुरदीप सिंह धालीवाल, नरिंदर बिंदर, नवकिरण नट इस अख़बार के पीछे जिम्मेदारी निभा रहे हैं।