टोयोटा स्ट्राइक: पूंजी द्वारा श्रम के अमानवीय शोषण के ख़िलाफ़ जारी संघर्ष

कर्नाटक स्थित टोयोटा किर्लोस्कर मोटर के मज़दूरों का धरना 40 दिनों से जारी है। 9 नवंबर को लॉकआउट हुआ तब से मज़दूर हड़ताल पर है। आज विभिन्न जन संगठनों और टोयोटा किर्लोस्कर मोटर यूनियन के नेतृत्व में 3000 मज़दूरों द्वारा रामनगर जिले के डीसी ऑफिस का घेराव भी किया गया। ग्राउंड रिपोर्ट की ये दूसरी किस्त है।
श्रमिक असंतोष की वजह: बढ़ता वर्क लोड
टोयोटा के मजदूरों का कहना है कि लॉकडाउन के बाद से प्लांट के अंदर दमन काफी तेज हो गया है। कोविड-19 के बहाने उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रबंधन का दबाव बढ़ता ही जा रहा था।
टोयोटा किर्लोस्कर मोटर के बीदादी प्लांट में इनोवा फॉर्च्यूनर, कैमरी और यारिस आदि गाड़ियां बनती है। कंपनी में दो शिफ्ट चलती है प्रत्येक शिफ्ट में 150 गाड़ियां बनती है। यानी प्रतिदिन 300 गाड़ियों का उत्पादन होता है। टोयोटा प्रबंधन प्रतिदिन 360 गाड़ियां बनाने का दबाव बना रहा है।
यूनियन का कहना है कि पहले जहां एक गाड़ी को असेंबल करने में 3 मिनट लगते थे वहीं अब 2.5 मिनट में एक गाड़ी तैयार करनी पड़ती है। वर्क लोड तो बढ़ा दिया गया मगर लाइन के ऊपर मजदूरों की संख्या नहीं बढ़ाई गई। इसके लिए कोई इंसेंटिव तय किया गया ना ही वेतन बढ़ाया गया। इनका कहना है कि वर्क लोड में यह वृद्धि गैरकानूनी तरीके से तकनीकी पक्षों को नजरअंदाज करते हुए किया गया है। वर्क लोड में वृद्धि करने से पहले यूनियन के साथ कोई वार्ता नहीं की गई।
टोयोटा किर्लोस्कर मजदूर यूनियन के प्रशांत कुमार का कहना है कि इस बढ़े हुए वर्क लोड की वजह से काम में अगर कोई गलती होती है तो इसका खामियाजा मजदूर को भुगतना पड़ता है, उस को नोटिस जारी किया जाता है और उसकी सैलरी में कटौती की जाती है इस वजह से मजदूरों के ऊपर दबाव काफी बढ़ गया है।
यूनियन का आरोप है कि काम के दौरान उन्हें बाथरूम जाने और पानी पीने की भी इजाजत नहीं दी जाती है। अगर कोई मजदूर लाइन से 1 मिनट के लिए भी हट जाता है तो उसकी सैलरी में से कटौती की जाती है और उसको चार्जसीट जारी कर दी जाती है।
फिलहाल मामला और जटिल होता जा रहा है प्रबंधन ने नवंबर महीने में सिर्फ 9 दिन की सैलरी दी है और हड़ताल को गैरकानूनी घोषित करते हुए 8 दिन की सैलरी काट ली है। मजदूरों के ऊपर आर्थिक दबाव बढ़ता जा रहा है।
मज़दूरों ने यह भी आरोप लगाया कि प्रबंधन प्लांट के परमानेंट श्रमिकों पर वीआरएस/वीएसएस लेने का दबाव बना रही है ताकि उनकी जगह कॉन्ट्रैक्ट वर्कर की भर्ती की जा सके। वीएसएस के नाम पर कंपनी को बस छंटनी मुआवजा देना होता है। ढाई साल में करीब 1000 मजदूर वीएसएस लेकर नौकरी छोड़ चुके हैं। सिर्फ पिछले महीने ही 100 मजदूरों ने वीएसएस के जरिए नौकरी छोड़ी थी।
ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में इस तरह का लॉक आउट होना कोई नई बात नहीं है। 1997 में टोयोटा किर्लोस्कर मोटर प्लांट में प्रोडक्शन शुरू होने के बाद कई बार विरोध प्रदर्शन और लॉक आउट हुआ। 2001 में ऐसे ही विरोध प्रदर्शन के बाद टोयोटा किर्लोस्कर मोटर मजदूर यूनियन का गठन हुआ था। अंतिम बार लॉकआउट 2014 में हुआ था जब मजदूरों ने वेतन वृद्धि की मांग की थी। मगर इस बार स्थिति थोड़ी जटिल है और लॉकआउट लंबा खींच रहा है। टोयोटा प्रबंधन यूनियन से बात करने के लिए तैयार नहीं हो रही है।
मौजूदा हड़ताल के पीछे एक कारण यूनियन प्रतिनिधि का निलंबित किया जाना है मगर इस गतिरोध का वास्तविक कारण टोयोटा किर्लोस्कर की उत्पादन नीति है जो टोयोटा प्रबंधन द्वारा वैश्विक रूप से अपनाई जाती है।
2016 में टोयोटा किर्लोस्कर मोटर मैनेजमेंट और टोयोटा किर्लोस्कर मोटर मजदूर यूनियन के बीच काम के घंटों और कार्य दिवस के संबंध में एक समझौता हुआ था जो 2019 तक लागू था और यही समझौता 2020 में भी चल रहा था। लेकिन यूनियन का कहना है कि इस समझौते में कार्य नीति और वर्क लोड के बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है।
टोयोटा का प्रोडक्शन सिस्टम
टोयोटा के अनुसार, टोयोटा प्रोडक्शन सिस्टम एक “लीन प्रोडक्शन सिस्टम,” या “जस्ट-इन-टाइम (जेआईटी) प्रणाली” है। यह वाहनों को अधिक से अधिक तेजी से डिलीवर करने के लिए काफ़ी तेज गति और कुशल तरीके से वाहन बनाने की पद्धति है।
टोयोटा इस प्रक्रिया का वर्णन इस प्रकार करता है: “टोयोटा प्रोडक्शन सिस्टम (टीपीएस) दो अवधारणाओं के आधार पर स्थापित किया गया था: ‘जिदोका’ (जिसे मोटे तौर पर” मानव स्पर्श के साथ ऑटोमेशन “के रूप में अनुवादित किया जा सकता है), जब कोई समस्या आती है, तो मशीन तुरंत बंद हो जाती है, और ख़राब पार्ट का प्रोडक्शन रुक जाता है और जस्ट-इन-टाइम ‘की अवधारणा, जिसमें प्रत्येक उत्पादन प्रक्रिया निरंतर प्रवाह में अगली प्रक्रिया के लिए केवल उसी चीज का उत्पादन करती है जो आवश्यक है। “
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोशल चेंज एंड डेवलपमेंट (CSSCD) के सहायक प्रोफेसर सोबिन जॉर्ज ने 2014 में इकोनामिक एंड पॉलीटिकल वीकली में लिखे एक लेख में बताया कि इस उत्पादन प्रणाली का एक महत्वपूर्ण पहलू श्रम नियंत्रण है, जो मजदूरों की हर एक गतिविधि पर नजर रखता है और उसका हिसाब रखता है। वे लिखते हैं कि यह प्रणाली श्रम को अपने हिसाब से अनुशासित करती है और श्रमिकों की क्षमता को प्रभावित करते हुए काम की गति में वृद्धि करती है।
इस लेख के अनुसार “लाइन पर मजदूरों की काम करने की क्षमता के आधार पर लाइन सुपरवाइजर मजदूरों के परफॉर्मेंस का मूल्यांकन करते हैं और इस मूल्यांकन के आधार पर वेतन वृद्धि इत्यादि की रिपोर्ट तैयार होती है। परफॉर्मेंस खराब रहने पर वेतन से कटौती की जाती है यहां तक कि नॉन परफॉर्मेंस के आरोप में नौकरी से भी निकला जा सकता है।”
यूनियन भी प्रबंधन पर यही आरोप लगा रही है। मजदूरों का कहना है की नई व्यवस्था के लागू होने के बाद लाइन पर काम करना और मुश्किल हो जाएगा।
यूनियन के प्रधान प्रसन्ना कुमार का कहना है कि प्रबंधन काम को मिली सेकंड के हिसाब से तय करना चाहती है। ऐसा कर पाना संभव नहीं है। यह अमानवीय है यहां तक कि हमें पानी पीने की भी छूट नहीं देना चाहती है।
यूनियन का कहना है कि इस कार्य पद्धति की वजह से प्लांट में काम करते हुए कई मज़दूरों अब पैर में दर्द, पीठ में दर्द, गर्दन में दर्द, नसों में ऐटन और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे हैं। इसके अलावा, उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें अकसर गंभीर स्वास्थ्य समस्या होने या परिवार में मृत्यु होने पर भी छुट्टी नहीं दी जाती है और मजबूरन मजदूरों को अवैतनिक छुट्टी लेनी पड़ती है।………..जारी
The News Minute से साभार
पहली किस्त यहां पढ़ें.. https://mehnatkash.in/2020/12/17/toyota-kirloskar-motor-workers-struggling-for-39-days-against-management/