मज़दूर वर्ग के शिक्षक व मित्र एंगेल्स को याद करते हुए

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सर्वहारा के महान योद्धा फ्रेडरिक एंगेल्स की स्मृति अमर रहे!

कॉमरेड फ्रेडरिक एंगेल्स (28 नवंबर, 1820 – 5 अगस्त, 1895) मज़दूर वर्ग और समस्त मानवता की मुक्ति के महानायकों में प्रमुख और मज़दूर जमात के सच्चे दोस्त व शिक्षक थे। मज़दूर आन्दोलन को सक्रीय नेतृत्व देने के साथ वे मज़दूर वर्ग की मुक्तिकामी विचारधारा- वैज्ञानिक कम्युनिज़्म के सिद्धान्त को विकसित करने में कॉमरेड कार्ल मार्क्स के अनन्य सहयोगी और मित्र थे। मार्क्स और एंगेल्स की शानदार दोस्ती की मिसाल विरले ही मिलाती है।

अन्तर्राष्ट्रीय फ्रेंडशिप-डे के जन्मदाताः महान फ्रेडरिक एंगेल्स — Pratibha  Ek Diary

दर्शन व राजनीतिक अर्थशास्त्र पर अभूतपूर्व काम करते हुए एंगेल्स मज़दूर आन्दोलन से लगातार जुड़े रहे तथा उन्हें सतत संगठित और गोलबंद करते रहे। खुद एक धनिक परिवार में पैदा होने के बावजूद उन्होंने कारखाने में एक मज़दूर के रूप में काम किया। उन्होंने उन गन्दी बस्तियों के चक्कर भी लगाये, जहाँ मज़दूर दड़बे जैसी जगहों में रहते थे। उन्होंने अपनी आँखों से उनकी दरिद्रता और दयनीय दशा देखी। 

वे मज़दूर वर्ग के संगठन कम्युनिस्ट लीग के सदस्य बने। 1864 में मार्क्स ने ‘अन्तर्राष्ट्रीय मज़दूर संघ’ की स्थापना की जिसमे एंगेल्स की भी सक्रीय भूमिका रही। मार्क्स-एंगेल्स का मानना था कि ‘अन्तर्राष्ट्रीय संघ’ का कार्य, मज़दूर आन्दोलन के विकास के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण था और इसने सभी देशों के सर्वहारा को एकजुट किया।

Karl Marx et Friedrich Engels travaillant ensemble. News Photo - Getty  Images

एंगेल्स ने मार्क्स के साथ मिलकर 1848 में कम्युनिस्ट घोषणापत्र की रचना की जो आज भी मज़दूर वर्ग के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने कार्ल मार्क्स की अभूतपूर्व पुस्तक “पूँजी” (दास कैपिटल) को लिखने में मदद करने, सम्पादित करने और प्रकाशित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मार्क्स की मृत्यु के बाद अतिरिक्त पूँजी के नियम पर मार्क्स के लेखों को जमा करने की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई और इसे पूँजी के चौथे खंड के तौर पर प्रकाशित किया।

एंगेल्स की प्रमुख रचनाओं में ‘ड्यूहरिंग मत खण्डन’, ‘परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्य की उत्पत्ति, ‘लुडविग फायरबाख’, ‘आवास समस्या’, ‘बानर से नर बनने की प्रक्रिया में श्रम की भूमिका’ आदि शामिल हैं।

एंगेल्स ने 1845 में इंग्लैंड के मज़दूर वर्ग की स्थिति पर ‘द कंडीशन ऑफ वर्किंग क्लास इन इंग्लैंड’ नामक अहम पुस्तक लिखी। अभी पिछले वर्ष इस पुस्तक का हिंदी संस्करण (इंगलैंड में मज़दूर वर्ग की दशा) पहली बार अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है।

“…मज़दूर वर्ग का राजनीतिक आन्दोलन अनिवार्य रूप से मज़दूरों को यह अनुभव करायेगा कि उनकी मुक्ति का एकमात्र मार्ग समाजवाद है। दूसरी ओर, समाजवाद तभी एक शक्ति बनेगा, जब वह मज़दूर वर्ग के राजनीतिक संघर्ष का उद्देश्य बन जायेगा। ये हैं इंगलैण्ड के मज़दूर वर्ग की स्थिति से सम्बन्धित एंगेल्स की पुस्तक के मुख्य विचार।“  -लेनिन

 “सर्वहारा की मुक्ति स्वयं सर्वहारा के हाथों सम्पन्न हो सकती है…” -दुनिया का मज़दूर वर्ग एंगेल्स के मज़दूर वर्ग की मुक्ति के महान वैचारिक अवदानों पर हमेशा गर्व करता रहेगा।

एंगेल्स के 200वें जन्मदिवस पर हम यहाँ मज़दूरों के वेतन और ट्रेड यूनियन की महत्ता पर उनके एक महत्वपूर्ण लेख का एक हिस्सा प्रस्तुत कर रहे हैं-

Friedrich Engels Definition

“…जब तक समाज दो विरोधी वर्गों में बँटा हुआ है – जिसमें एक ओर हैं, उत्पादन के सभी साधनों, ज़मीन, कच्चे माल, मशीनरी पर एकाधिकार रखने वाले पूँजीपति; और दूसरी ओर हैं, उत्पादन के साधनों के स्वामित्व से पूरी तरह वंचित मेहनतकश, जिनके पास अपनी काम करने की शक्ति के अलावा और कुछ भी नहीं होता; जब तक यह सामाजिक संगठन मौजूद है तब तक मज़दूरी का नियम सर्वशक्तिमान बना रहेगा, और हर दिन उन ज़ंजीरों को और मज़बूत बनाता रहेगा जो मेहनतकश इंसान को ख़ुद अपनी पैदावार का ग़ुलाम बनाये रखती हैं – जिस पर पूँजीपति का एकाधिकार होता है।

…इंग्लैण्ड में, और औद्योगिक उत्पादन करने वाले हर देश में, पूँजी के विरुद्ध मज़दूर वर्ग के हर संघर्ष में ट्रेड यूनियनें उसके लिए ज़रूरी हैं। किसी भी देश में मज़दूरी की औसत दर उस देश में आम जीवन स्तर के अनुसार मज़दूरों की नस्ल को जिन्दा रहने के लिए आवश्यक बुनियादी वस्तुओं के योग के बराबर होती है। यह जीवन स्तर अलग-अलग श्रेणियों के मज़दूरों के लिए अलग-अलग हो सकता है।

…मज़दूरी की दर ऊँची बनाये रखने और काम के घण्टे कम करने के संघर्ष में ट्रेड यूनियनों का बहुत बड़ा लाभ यह है कि वे जीवन स्तर ऊँचा बनाये रखने और उसे बेहतर करने में मदद करती हैं।

https://mehnatkash.in/2020/05/05/karl-marx-who-showed-the/

…हर मामले में मज़दूरी का निर्धारण सौदेबाज़ी से होता है और सौदेबाज़ी में जो सबसे देर तक और सबसे अच्छी तरह प्रतिरोध करता है उसीके पास अपने देय से अधिक पाने का सबसे अधिक मौक़ा रहता है। अगर कोई अकेला मज़दूर पूँजीपति के साथ सौदेबाज़ी की कोशिश करता है तो वह आसानी से मात खा जाता है और उसे अपनेआप समर्पण करना पड़ता है, लेकिन अगर किसी पेशे के सभी मज़दूर एक शक्तिशाली संगठन बना लेते हैं, अपने बीच से इतना कोष जमा कर लेते हैं जिससे वे ज़रूरत पड़ने पर अपने नियोक्ताओं के ख़िलाफ़ जा सकें, और इस प्रकार इन नियोक्ताओं से एक ताक़त के तौर पर मुक़ाबला करने में सक्षम हो जाते हैं, तभी, और सिर्फ़ तभी, उन्हें वह थोड़ी-सी रक़म मिल सकती है जिसे वर्तमान समाज के आर्थिक संगठन के अनुसार, काम के उचित दिन की उचित मज़दूरी कहा जा सकता है।

…ट्रेड यूनियनें मज़दूरी व्यवस्था पर हमला नहीं करतीं। लेकिन मज़दूरी कम या ज्यादा होने से मज़दूर वर्ग की आर्थिक अवनति नहीं होती। यह अवनति इस तथ्य में निहित होती है कि अपने श्रम की पूरी पैदावार प्राप्त करने के बजाय मज़दूर वर्ग को अपनी पैदावार के एक हिस्से से सन्तुष्ट होना पड़ता है जिसे मज़दूरी कहते हैं। पूँजीपति सारी पैदावार को हड़प लेता है (उसी में से वह मज़दूर का भुगतान करता है) क्योंकि श्रम के साधनों पर उसका मालिकाना होता है। और, इसलिए, जब तक मज़दूर वर्ग काम के सभी साधनों – ज़मीन, कच्चा माल, मशीनरी, आदि का – और इस प्रकार अपनी समस्त पैदावार का मालिक नहीं बन जाता तब तक वह वास्तव में मुक्त नहीं हो सकता।”

‘द लेबर स्टैण्डर्ड’ अख़बार के 21 मई, 1881 के अंक में प्रकाशित

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