नया क़ानून : आइए जानें कैसे मज़दूर बन जाएगा बंधुआ

नयी श्रम संहिताएँ होंगी लागू, मज़दूरों पर क्या पड़ेगा फर्क?
मोदी सरकार का तोहफा- आ रही हैं 4 श्रम संहिताएँ! अब कोई भी कंपनी किसी भी मज़दूर को कभी भी निकाल सकती है, स्थाई श्रमिक को फिक्स्ड टर्म कर सकती है, 12 से 16 घंटे मनमर्जी काम करा सकती है, घंटे के आधार पर मनमाना वेतन दे सकती है और यूनियन की जगह एक व्यक्ति से भी समझौता कर सकती है!
जी हाँ, आप लगे रहो मंदिर-मस्जिद, लबजेहद, पाकिस्तान-चीन, राष्ट्र-धर्म में; मोदी सरकार को असल में जो करना है, यानी मुनाफाखोरों के हित में व्यवस्था, वह तेजी से कर रही है!
असल में हो क्या रहा है, आइए कुछ झलकियाँ देखें!
44 श्रम कानून कि जगह 4 श्रम संहिताएँ
लगातार विरोधों के बावजूद मोदी सरकार द्वारा मालिकों के हित में 44 श्रम कानूनों को खत्म करके जो चार श्रम संहिताएँ बनाई गई हैं, उनमें एक मज़दूरी श्रम संहिता 2019 पारित हो चुकी है और उसकी नियमावली भी बन चुकी है। बाकी तीन श्रम संहिताएँ- औद्योगिक संबंधों पर श्रम संहिता, सामाजिक सुरक्षा व कल्याण श्रम संहिता तथा व्यवसायिक सुरक्षा एवं कार्यदशाओं की श्रम संहिता संसद से पारित हो चुकी है।
महत्वपूर्ण बात ये है कि पूरे देश में मज़दूर संगठनों द्वारा इसके लगातार विरोध होते आ रहे हैं, इसके बावजूद देशी-बहुराष्ट्रीय पूँजीपतियों के हित में मोदी सरकार ने ना केवल श्रम संहिताएँ ही पारित कीं, बल्कि उसकी नियमावली भी तैयार कर दी और मार्च तक उसे लागू भी करने जा रही है।
ये संहिताएँ पहले से ही सीमित श्रम कानूनी अधिकारों को भी ख़त्म करके मज़दूरों को पूरी तरीके से बंधुआ मज़दूर बना देगी। इसका मूल मंत्र है- ‘‘हायर एंड फायर’’ यानी मालिकों की मनमर्जी जब चाहे रखें लें जब चाहे निकाल दें!
इन श्रम संहिताओं से मज़दूरों पर क्या फर्क पड़ने जा रहा है?
★ 100 के बजाय अब 300 की संख्या तक कर्मचारियों वाली कंपनियां बिना सरकार की इजाजत किसी भी मज़दूर को निकाल सकेंगी;
★ कामबंदी (लेऑफ़) के लिए महज 15 दिन की नोटिस, छंटनी के लिए 60 दिन पहले नोटिस और कंपनी बंद करने पर 90 दिन पहले नोटिस देना होगा;
★ छंटनी या कामबंदी के समय नियोक्ताओं से मांगी जाने वाली सूचनाओं को भी घटा दिया गया है; यानी वे जो भी सूचना श्रम विभाग को देंगे, वे ही मान्य होंगे;
★ मनमाने काम के घंटे- 12 घंटे काम को कानूनी मान्यता और 16 घंटे तक भी काम कराने की छूट;
★ नौकरी के नए तरीके- नियत अवधि का रोजगार यानी फिक्स टर्म व फोकट के मज़दूर नीमट्रेनी को कानूनी मान्यता;
★ मौजूदा (पुराने) स्थाई श्रमिकों को भी फिक्सड टर्म में लाने की खुली छूट यानि अब अनुबन्ध/ठेके पर नौकरी होगी;
★ यूनियन बनाना पहले से ज्यादा मुश्किल, यूनियनों की मान्यता मालिकों व सरकार पर निर्भर;
★ “ज्यादातर चीजें इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रिया पर छोड़ दी गई हैं, यानी ट्रेड यूनियन के पास इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन सिस्टम होना जरूरी है;
★ हक के आंदोलन के रास्ते लगभग खत्म, हड़ताल लगभग असंभव, 15 दिन की जगह 60 दिन की नोटिस देने की बाध्यता, समझौता वार्ता समाप्त होने के 7 दिन तक हड़ताल करना मान्य नहीं;
★ किसी उद्योग में कार्यरत पचास प्रतिशत या उससे अधिक श्रमिकों द्वारा एक निश्चित दिन पर अवकाश को हड़ताल माना जाएगा;
★ हड़ताल गैरकानूनी होने पर 25 से 50 हजार रुपए तक का जुर्माना या जेल अथवा दोनों; हड़ताल का सहयोग करने वालों पर 50 हजार से दो लाख तक का जुर्माना अथवा जेल या दोनो;
★ यूनियन के सामूहिक माँगपत्र पर एक व्यक्ति द्वारा भी प्रबंधन से समझौता करने को कानूनी मान्यता;
★ श्रम विभाग और भी पंगु होगा और श्रम अधिकारी अब फैसिलेटर होंगे, श्रम न्यायालय के अधिकार और सीमित होंगे;
★ ठेका प्रथा को खुली कानूनी मान्यता, 50 से कम संख्या वाले कारखानों में ठेकेदार को पंजीकरण कराने की भी बाध्यता समाप्त;
★ मालिकों द्वारा खुद प्रमाणित किए हुए दस्तावेज को मान्यता होगी;
★ वेतन व बोनस में घोटाले के बावजूद मालिकों पर किसी आपराधिक (क्रिमिनल) केस का प्रावधान खत्म!
★ छंटनी का शिकार हुए कर्मचारी के री-स्किल डेलवपमेंट का झुनझुना, धोखा यह कि छंटनी किए गए कर्मचारी के 15 दिन के वेतन के बराबर की राशि केंद्र सरकार के पास जमा होगी, जो बाद में सरकार की ओर से सम्बंधित मज़दूर को पुनर्कौशल के लिए मिलेगा;
★ असंगठित क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा, जिनमें प्रवासी मजदूर भी शामिल हैं, के साथ ही स्व-रोजगार नियोजित श्रमिकों, घर पर काम करने वाले श्रमिकों और अन्य कमजोर समूहों को सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान बेहद कमजोर;
★ भवन व अन्य निर्माण श्रमिकों की 10 और उससे अधिक पुरानी सीमा बरकरार; व्यक्तिगत व आवासीय निर्माण कार्य को संहिता के प्रावधानों से बहार रखा गया है;
★ भविष्य निधि के लिए केवल उन प्रतिष्ठानों को ही मान्य किया गया है, जहां 20 या अधिक कर्मचारी हों, जबकि लाखों सूक्ष्म और लघु उद्यमों को इसके दायरे से बाहर कर दिया गया है।
★ विधेयक असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के एक बड़े हिस्से जैसे- छोटी खदानें, होटल और छोटे भोजनालय, मशीनों की मरम्मत, निर्माण, ईंटभट्टे, हथकरघे, कालीन या कारपेट निर्माण और ऐसे श्रमिक या कर्मचारी जो संगठित क्षेत्रों में अनौपचारिक तौर पर काम कर रहे हैं, जिसमें नए और उभरते क्षेत्रों जैसे आईटी और आईटीईएस, डिजिटल प्लेटफॉर्म (जिसमें ईकॉमर्स समेत कई क्षेत्र शामिल हैं) को छोड़ देता है;
★ प्लेटफॉर्म श्रमिक, प्रशिक्षु, आईटी श्रमिक, स्टार्टअप्स और लघु, कुटीर एवं मध्यम उपक्रम में कार्यरत, घर आधारित स्वनियोजित श्रमिक, असंगठित और अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिक, वृक्षारोपण श्रमिक व मनरेगा श्रमिक आदि लाखों नए और मौजूदा श्रेणियों को वैधानिक औद्योगिक संबंध संरक्षण के दायरे से बाहर रखा गया है; यानी इसे श्रमिकों का संरक्षण समाप्त।
यह तो चंद बानगी है। स्थितियां इससे भी भयावह हैं।
इसलिए, आइए, 26 नवम्बर, 2020 की देशव्यापी आम हड़ताल को सफल बनाएं, इसे निरंतरता में आगे बढाकर अपने हक के फैसलाकुन आन्दोलन में तब्दील करें!
-मज़दूर सहयोग केंद्र (MSK) द्वारा जारी