मज़दूर विरोधी 4 श्रम संहिताएं: मोदी सरकार लागू करने की जल्दी में; फिर क्यों हो रही है देरी?

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केंद्र की मोदी सरकार मज़दूरों को बंधुआ बनाने वाली चार श्रम संहिताओं (लेबर कोड्स) को जल्द से जल्द लागू करने की तैयारी में है। पूंजीपतियों की चाहत के अनुरूप वह पूरे देश में इसे एक साथ लागू करना चाहती है, लेकिन इसमें कुछ पेंच फंस गए हैं।

ज्ञात हो कि मोदी सरकार ने तमाम विरोधों को दरकिनार करते हुए लंबे संघर्षों से हासिल 44 श्रम क़ानूनों को खत्म करके चार श्रम संहिताएं बनाकर पारित करवा दी, आनन-फानन में उसकी केंद्रीय नियमावली भी बना दी और राष्ट्रपति के मोहर भी लग गए। लेकिन लागू नहीं हो पा रहे हैं।

पूरे देश में एकसाथ लागू करने में रुकावट

दरअसल भारतीय संविधान के अनुसार पूरे देश में एक साथ लागू करने के लिए सभी राज्य सरकारों द्वारा इन संहिताओं के आधार पर नियमावली बनाना जरूरी है। भाजपा शासित सभी राज्य सरकारों और कुछ अन्य राज्य सरकारों ने केंद्र सरकार की तर्ज पर ऐसी नियमावली बनाकर पारित भी कर ली।

लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने जो नियम (रूल्स) बनाए हैं, वे केंद्रीय नियमावलियों से भिन्न हैं और पूंजीपतियों की चाहत उससे पूरी नहीं होती है। यही नहीं पश्चिम बंगाल सहित कुछ राज्य सरकारों ने इसे लागू करने से ही मना कर दिया है। ऐसे में मोदी सरकार के सामने बड़ी चुनौती आन पड़ी है।

राज्य सरकारों के नियम अलग

पिछले साल सरकारी एजेंसी वी.वी. गिरी नेशनल लेबर इंस्टीट्यूट की ओर से जारी एक अध्ययन में कहा गया था कि अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से बनाए गए नियम केंद्रीय नियमों से बहुत ज्यादा अलग हैं। एजेंसी ने बताया था कि केवल 24 राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों ने ही सभी 4 संहिताओं के अंतर्गत नियम बनाए हैं और पश्चिम बंगाल, मेघालय, नागालैंड, लक्षद्वीप तथा दादर एवं नगर हवेली की स्थिति अब तक साफ नहीं है।

सभी राज्यों में कंपनियों के लिए एक जैसे हों नियम

पिछले दिनों श्रम एवं रोजगार मंत्रालय में सचिव सुमित डाबर ने कहा था कि लेबर कोड्स के बारे में हमने कई वर्कशॉप आयोजित करने का प्लान बनाया है इसमें सभी राज्यों के साथ नियमों पर चर्चा होगी। हमने यह देखा है की सेंट्रल फ्रेमवर्क और राज्य सरकारों की तरफ से पहले प्रकाशित नियमों के बीच फर्क है। सभी राज्यों में कंपनियों के लिए नियम एक जैसे होने चाहिए।

डाबर ने कहा कि “पश्चिम बंगाल अकेला ऐसा राज्य है, जिसने 20 जून को कहा था कि वह प्रस्तावित नए नियमों को लागू नहीं करेगा। हमने उसे समझाने की कोशिश की है कि यह नौकरी करने वाले लोगों के लिए बहुत अच्छा है। यह निवेश आकर्षित करने के लिहाज से भी फायदेमंद है।”

केन्द्र व राज्यों के बीच तालमेल की तैयारी

हाल ही में देश के अलग-अलग भागों में 6 रीजनल कांफ्रेंसेज आयोजित हुए। इनमें केंद्र और अलग-अलग राज्यों के श्रम अधिकारियों ने भाग लिया। जिसमें पूँजीपतियों की चाहत के अनुसार श्रम सुधार, ई-श्रम पोर्टल, कुशल रोजगार और भवन व अन्य निर्माण श्रमिकों के साथ अन्य मुद्दों पर चर्चा हुई।

रिपोर्ट के मुताबिक, यह शिविर को-आपरेटिव फेडरलिस्म की भावना से आयोजित किया जाएगा, जिसमें लेबर कोड्स के साथ-साथ महत्वपूर्ण श्रम-संबंधी मुद्दों पर चर्चा की जाएगी। इससे केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर नीति बनाने और श्रम सुधार योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने में और ज्यादा तालमेल बनाने में मदद मिलेगी।

श्रम मंत्रियों व अधिकारियों के साथ होगा ‘चिंतन शिविर’

बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक, 4 नए लेबर कोड को लागू करने और श्रम कल्याण योजनाओं पर चर्चा के लिए केन्द्रीय श्रम मंत्रालय दिसंबर की शुरुआत में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के श्रम मंत्रियों के साथ बैठक बुला सकती है। इस ‘चिंतन शिविर’ से राज्यों की तैयारियों का आंकलन हो सकेगा।

रिपोर्ट के मुताबिक, बैठक की तैयारियों के तहत सभी राज्यों से कहा गया है कि वे अपनी तरफ से तैयार किए गए ड्राफ्ट नियमों और केंद्र सरकार की ओर से तैयार किए गए मॉडल नियमों की एक तुलनात्मक अध्ययन पेश करें। इससे केंद्र सरकार को समरूपता लाने में मदद मिलेगी।

2022 में तिरुपति में हुई थी बैठक

इससे पहले अगस्त 2022 में तिरुपति में इसी तरह की एक बैठक हुई थी, जिसमें 19 राज्यों के श्रम मंत्रियों ने भाग लिया था। इसे ‘विजन श्रमेव जयते @ 2047’ नाम दिया गया था। हालांकि उसमें मोदी सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद सभी राज्य सरकारों से सहमति नहीं बन पाई थी।

इधर मज़दूरों के देशव्यापी विरोध भी जारी रहे। इस बीच चुनाव का समय आ गया था, तो मोदी सरकार ने इसको लागू करने पर जोर धीमा कर दिया था।

नए लेबर कोड क्यों हैं घातक?

मोदी सरकार की चार श्रम संहिताओं के मूल में है ‘हायर एण्ड फायर’ यानि मालिकों की मर्जी, जब चाहो काम पर रक्खो, जब चाहो निकाल दो! मज़दूर, उद्योग एवं कार्य दिवस की नई परिभाषा होगी।

सबसे घातक मुद्दों में स्थाई रोजगार की जगह फिक्स्ड टर्म इम्पालाइमेन्ट (नियत अवधि रोजगार) होगा। काम के घंटे मालिक की मनमर्जी होगी। ठेका प्रथा कानूनी बन जाएगा। ट्रेनी के नाम पर ‘फोकट के मज़दूरों से काम करना वैध होगा। छाँटनी-बंदी आसान होगी, यूनियन बनाना, आंदोलन और समझौता लगभग असंभव होगा; श्रम न्यायालय खत्म होंगे और श्रम अधिकारी फैसिलिटेटर होंगे, जिनका काम सलाह देना होगा। असंगठित क्षेत्र के मज़दूर और असुरक्षित होंगे!

आपराधिक क़ानूनों के बाद अब लेबर कोड्स की बारी

अब मोदी सरकार की तीसरी पारी शुरू हो चुकी है। मज़दूर विरोधी नीतियों को लागू करने का जोर और बढ़ गया है। हालांकि पूर्व की तरह प्रचंड बहुमत न मिलने से मोदी सरकार बहुत संभलकर क़दम उठा रही है। लेकिन उसकी गति बरकरार है। पुराने आपराधिक क़ानूनों को एक झटके में खत्म कर पुलिसिया राज में बदलने वाले तीन नए आपराधिक क़ानूनों को थोपकर उसने अपने तेवर दिखला दिए हैं।

अब पूरा जोर मज़दूर विरोधी चार श्रम संहिताओं को किसी प्रकार से पूरे देश में लागू करने पर है। क्योंकि मोदी जमात को यह मालूम है कि उसके पास हिन्दू-मुस्लिम का मजबूत हथियार है और वह मज़दूरों की गर्दन भी काट ले तो भी उसकी जयजयकार होगी! इसीलिए वह पूँजीपतियों की प्रिय है।

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