हल्द्वानी की घटना चिंताजनक व निंदनीय; उत्तराखंड के जन संगठनों, बुद्धिजीवियों, नागरिकों का संयुक्त बयान

प्रशासन की लापरवाही, जल्दबाजी और पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण: जब मस्जिद और मदरसा सील कर प्रशासन के कब्जे में थे और कोर्ट में सुनवाई 14 फरवरी को होनी थी तो बगैर तैयारी ध्वस्तीकरण की क्या जल्दीबाजी थी?

हल्द्वानी में 8 फरवरी को घाटी घटना के बाद उत्तराखंड के जन संगठनों, बुद्धिजीवियों, एवं नागरिकों की और से संयुक्त बयान एवं अपील जारी की है। बयान में लिखा है कि-

8 फरवरी को हल्द्वानी में हुई घटना चिंताजनक, निंदनीय एवं दुखद है। हम सभी मृतकों और घायलों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं और उनके लिये उचित मुआवजे की मांग करते हैँ।

हम हल्द्वानी, उत्तराखंड और देश की जनता से निवेदन करते हैं कि शांति बनाए रखें। हम हर प्रकार की हिंसा की निंदा करते हैं और चाहते हैं कि निष्पक्ष कानूनी कारवाई हो। कोई भी प्रतिरोध क़ानूनसम्मत और संविधान के दायरे में होना चाहिये।

इस गंभीर समय में हम प्रशासन से भी निवेदन करना चाहते हैं कि कोई भी कार्यवाही संवैधानिक मूल्यों के विपरीत न हो।  

★ इस घटना में प्रशासन की लापरवाही, जल्दबाजी और पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण साफ दिखाई दे रहा है। प्रशासन के बयानों में ही सांप्रदायिक भाषा का इस्तेमाल दिखाई दिया है। जब कथित रूप से अवैध बनी मस्जिद और मदरसा सील कर प्रशासन के कब्जे में थे और इस मामले की सुनवाई 14 फरवरी को न्यायालय में होनी थी तो जल्दबाजी में बगैर तैयारी के ध्वस्तीकरण की क्या जरूरत थी? इसलिए जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का तत्काल स्थानांतरण कर इस घटना की हाई कोर्ट के किसी जज द्वारा न्यायिक जांच करायी जाये।

★ इस बात पर भी ध्यान रखने की ज़रूरत है कि 2017 से आज तक लगातार भीड़ की हिंसा और नफरती प्रचार पर उत्तराखंड सरकार निष्पक्ष क़ानूनी कारवाई नहीं कर रही है। इस पर राज्य के नागरिक, जन संगठन, विपक्षी दल और वरिष्ठ बुद्धिजीवीयों से ले कर सुप्रीम कोर्ट के वकील और सेना के पूर्व जनरल तक सवाल उठाते रहे हैं। जब सरकार के कदम निष्पक्ष नहीं दिखते तो असामाजिक तत्वों के लिए गुंजाईश बढ़ती है। इसलिए लगातार आवाज़ उठी है कि सत्ताधारी ताकतों का राजनैतिक फायदे के लिए नफरत, सांप्रदायिक और हिंसक घटनाओं को प्रश्रय देने से सामाजिक सौहार्द और कानून के राज  के लिए खतरे बढ़ते हैं। इसलिए 2018 और उसके बाद भी उच्चतम न्यायालय की और से नफरती प्रचार एवं हिंसा पर दिए गए फैसलों पर सख्त अमल हो, इसके लिए युद्धस्तर पर कदम उठाया जाये।

★ हम लगातार कह रहे हैं कि “अतिक्रमण हटाओ अभियान” में एक उतावलापन और पक्षपात दिखायी दे रहा है। बगैर नोटिस दिए तोड़ फोड़ करने की दर्जनों घटनायें पिछले एक साल में हुई हैं, जबकि हमारा मानना है कि पहले पुनर्वास किये बगैर किसी को भी बेघर न किया जाये और कोई भी ऐसी कार्रवाही सम्यक कानूनी ढंग से, पर्याप्त सुनवाई के बाद संवेदनशीलता के साथ होनी चाहिए। उत्तराखंड में लगभग चार लाख हैक्टेयर नजूल भूमि पर लाखों लोग बसे हैं। हल्द्वानी में भी बड़ी आबादी नजूल भूमि पर बसी हुई है, जिसमें सभी धर्मों को मानने वाले लोग शामिल हैं। जनता की मांग रही है कि नजूल भूमि पर रह रहे लोगों को मालिकाना हक दिया जाए। इस हेतु राज्य सरकार केंद्र को प्रस्ताव भी भेज चुकी है। इसके बावजूद अतिक्रमण के मामलों पर जल्दबाजी दिखाना समझ से परे है। पिछले लंबे समय से राज्य सरकार अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर आम आदमी को बेघर कर रही है, वन भूमि, नजूल भूमि व अन्य जगहों से उजाड़ रही है। सरकार अतिक्रमण हटाओ अभियान के नाम पर अपना सांप्रदायिक एजेंडा आगे बढ़ा रही है। इस पर तत्काल रोक लगाई जाए।

नफरत नहीं, रोजगार दो!

निवेदक,

राजीव लोचन साह, उत्तराखंड लोक वाहिनी; नरेश नौडियाल, महासचिव, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी; तरुण जोशी, वन पंचायत संघर्ष मोर्चा; भुवन पाठक एवं शंकर दत्त, सद्भावना समिति उत्तराखंड; शंकर गोपाल एवं विनोद बडोनी, चेतना आंदोलन; इस्लाम हुसैन, सर्वोदय मंडल; ललित उप्रेती एवं मुनीश कुमार, समाजवादी लोक मंच; त्रिलोचन भट्ट, स्वतंत्र पत्रकार; हीरा जंगपानी, महिला किसान अधिकार मंच; मुकुल, मज़दूर सहयोग केन्द्र।