मोदी सरकार का अंतरिम बजट 2024 किसके हित में: राम मय माहौल में चुनावी नैया पार लगने का आत्मविश्वास

चुनावी साल में भी अंतरिम बजट से मेहनतकश मज़दूर वर्ग, गरीबों को कोई राहत नहीं मिली। मध्यम वर्ग नौकरी पेशा के टैक्स में कोई कमी नहीं, लेकिन कॉर्पोरेट घरानों के टैक्स में भारी छूट…

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में राम मंदिर प्रतिष्‍ठापन के चुनावी रथ पर सवार नरेंद्र मोदी सरकार का चुनाव पूर्व अंतरिम बजट प्रस्तुत किया। वित्त मंत्री द्वारा संसद के संयुक्त सदन में 57 मिनट के इस अंतरिम बजट भाषण में मोदी सरकार की 10 साल की उपलब्धियां गिनाईं गईं। निर्मला के अंतरिम बजट से कॉरपोरेट अर्थशास्त्री झूम उठे। 

वित्त मंत्री ने गुरुवार को अंतरिम बजट पेश करते हुए फिर जुमला उछाला ‘सरकार देश को 4 जाति में बांटकर देखती है, महिला, किसान, युवा और गरीब।’ इसपर ध्यान केंद्रित करने की बात के साथ कहा- “लोकसभा चुनाव में एक बार फिर प्रचंड जनादेश के साथ भाजपा को चुनें।”

हालांकि, चुनाव पूर्व प्रस्तुत इस मिनी बजट से तमाम लोगों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीदें थीं। लेकिन, ‘राम मय’ माहौल में तीसरी जीत सुनिश्चित मानकर केंद्र सरकार ने अंतरिम बजट में ऐसी कोई बड़ी घोषणा नहीं की है। आयकर दाता नौकरीपेशा को कोई राहत नहीं दी, टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया। ऐसे में आम मेहनतकश के लिए बजट में किसी ऐलान का मतलब ही नहीं होता।

दरअसल, मोदी सरकार का यह बजट जन विरोधी और कॉरपोरेटपरस्त है। कॉर्पोरेट घरानों के ऊपर लगाए जाने वाले टैक्स में भारी कमी की गई है और एक लाख करोड़ रूपया उनकों बिना ब्याज के देने की घोषणा की गई है। यही नहीं जिस सौर ऊर्जा के जरिए मुफ्त बिजली देने की बात सरकार कर रही है उसका प्लांट भी अडानी के माध्यम से देश में लगाने की सरकार की योजना है।

इस बजट में गरीबों, निम्न मध्यम वर्ग, मध्यम वर्ग के लिए कुछ भी नहीं कहा। आंकड़ों के अनुसार शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण पर वित्त मंत्री द्वारा आवंटित राशि से कम पैसा खर्च किया गया।

अंतरिम बजट में संगठित असंगठित मज़दूरों के लिए कुछ भी नहीं है। न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा, कार्यस्थल पर सुरक्षा, दुर्घटनाओं पर रोक नौकरी का स्थाईत्व, रोजगार की गारंटी, समान काम पर समान वेतन आदि बुनियादी जरूरतों पर एक शब्द भी नहीं बोला गया।

प्रस्तुत बजट में बेइंतहाँ बेरोजगारी से निपटने और नए रोजगार सर्जन का मुद्दा गायब है। सीतारमण के बजट भाषण में 2047 तक विकसित भारत के लिए रोजगार पैदा करने के लिए इस शब्द या किसी योजना या व्यय योजना का कोई उल्लेख नहीं मिला।

उसकी जगह सरकार युवाओं को लॉन्ग टर्म फाइनेंस या री-फाइनेंसिनिंग के लिए एक लाख करोड़ रुपये का ब्याज मुक्त या कम ब्याज दर पर फंड वितरित किया जाएगा। हक़ीक़त यह है कि कथित स्वरोजगार के झुनझुनों और तमाम जुमलों के बीच देश का युवा वर्ग ‘स्टार्टअप’ की जगह ‘स्टैंडअप’ हो चुका है।

ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा जैसी प्रमुख योजनाओं के लिए कुछ खास नहीं हुआ, नही उनकी सहूलियतें बढ़ीं। मनरेगा में महिला श्रमिकों के लिए हिस्सेदारी और दिहाड़ी बढ़ाने का ऐलान नहीं किया गया। 2024-25 के लिए बजट आवंटन महज 86,000 करोड़ रुपये किया गया है।

अंतरिम बजट में करोड़ों सरकारी कर्मियों के हाथ खाली रहे। कर्मचारी संगठनों को उम्मीद थी कि सरकार इस बजट में पुरानी पेंशन बहाली जैसे मुद्दों पर कोई घोषणा कर सकती है, जो धूलधूसरित हो गया। आयकर में छूट का ख्वाब भी टूट गया।

वित्त मंत्री ने अपने भाषण में तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित करने से लेकर महिलाओं को संसद में आरक्षण देने तक के कानून की बातें गिनाईं। उन्होंने पिछले 10 साल में मुद्रा ऋण योजना और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत महिला आवास का जिक्र भी किया। लखपति दीदी (आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत ट्रेनिंग देकर आत्मनिर्भर बनाने की कथित योजना) से लेकर आंगनबाड़ी व आशा कार्यकर्ताओं की कई बातें हुईं, लेकिन इनके हाथ वाकई कुछ नहीं लगा।

आशा-आंगनबाड़ी कार्यकत्रियां उचित व समय से मानदेय, न्यूनतम वेतन, कर्मकार का दर्जा, सामाजिक सुरक्षा आदि की माँग करती रही हैं, जिसपर बजट में कोई चर्चा नहीं हुई। महज आयुष्मान भारत योजना के तहत सभी आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ता को 5 लाख तक का फ्री इलाज देने की घोषणा की गई है। लेकिन इसमें भी कुछ पात्रता नियमों की बाध्यता लगाई गई है।

9-14 वर्ष की लड़कियों के बीच सर्वाइकल कैंसर के टीके को ‘प्रोत्साहित’ करने, की बात है। लेकिन महिला कल्याण के लिए चल रही बाल विकास पुष्टाहार के बजट को कम कर दिया गया।

सबकुछ जीएसटी के दायरे में आने के बाद सामानों के कुछ सस्ता-महंगा होने जैसा कुछ रह नहीं गया है। ऐसे में इस बार बजट में कोई घोषणा नहीं हुई। लेकिन महँगाई की मार बेलगाम जारी रहेगी।

झुग्गी-झोपड़ियों पर बुलडोजर चलाने वाली सरकार निःशुल्क आवास देने की जगह ‘किराए के मकानों और झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले मध्यम वर्ग के पात्र लोगों को खुद के मकान खरीदने और बनाने’ के लिए ‘मदद’ देने की बात की है। जिसके पास न रोजगार का ठिकाना है, न खाने को रोटी उसके साथ यह छलावा नहीं तो क्या है।

एक करोड़ परिवार प्रत्येक महीने 300 यूनिट तक निशुल्क बिजली भी धोखा है क्योंकि यह छत पर सौर प्रणाली लगाने वालों के लिए है। और यह सौर प्रणाली अडानी का होगा।

चरमराती स्वास्थ्य व चिकित्सा प्रणाली व सरकारी अस्पतालों को दुरुस्त करने और जनसुलभ स्वास्थ्य पर बजट में चुप्पी है। उसकी जगह और ज्यादा मेडिकल कॉलेज खोलने की बात बेईमानी है।

अंतिरिम बजट में फसल कटाई के बाद निजी व विदेशी निवेश के लिए कृषि क्षेत्र के दरवाजे खोलने की बात है। यह किसान आंदोलन के दबाव में वापस लिए गए कृषि बिलों की खुलेआम पुनर्वापसी है। यानी कृषि मंडी, अनाज भंडारण और उसके खुदरा व्यापार में कॉरपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रवेश कराया जाएगा।

देश के जवानों, किसानों, मज़दूरों को रसातल में धकेलने और ज्ञान-विज्ञान की जगह अंध विश्वास, कुपमंडूकता परोसने वाली सरकार के मुखिया पीएम मोदी ने ‘विकास’ के लिए फरमाया कि जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान!

इसके विपरीत बजट में कॉरपोरेट के लिए फिर बरसात हुई है। प्रीजम्प्टिव कराधान की सीमा खुदरा व्यापार के लिए 2 करोड़ से बढ़ाकर 3 करोड़, पात्र व्यवसायियों के लिए 50 लाख से बढ़ाकर 75 लाख की गई।

कॉरपोरेट टैक्स की दर मौजूदा स्वेदशी कंपनियों के लिए 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत कर दिया गया है, जबकि नई विनिर्माण कपंनियों के लिए यह दर 15 प्रतिशत की गई।

रेल बजट

अंतरिम बजट बजट में रेलवे को अगले वित्त वर्ष के लिए कुल 2.52 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।

प्रधानमंत्री गति शक्ति के अंतर्गत तीन आर्थिक रेल गलियारों – (i) ऊर्जा, खनिज और सीमेंट गलियारा, (ii) पत्तन संपर्कता गलियारा और (iii) अधिक यातायात वाला गलियारा का शोर मच रहा है। तीनों कारिडोर के निर्माण पर 11 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह परियोजना कॉरपोरेट हित में है और रेलवे के निजीकरण में एक और क़दम है।

रेल बजट के तहत किसी यात्री रेल चलाने या आम यात्रियों की राहत की कोई बात नहीं हुई। इसकी जगह अगले पांच वर्षों के दौरान 15 हजार करोड़ रुपये की लागत से 40 हजार सामान्य रेल डिब्बों को “वंदे भारत” मानकों के अनुरूप परिवर्तित करने की घोषणा हुई। अगले वित्त वर्ष में प्रत्येक हफ्ते में कम से कम एक वंदे भारत चलाने का लक्ष्य है। मेट्रो रेल और नमो भारत रेल प्रणाली विकास को बढ़ावा देने की बात है।

जाहीर तौरपर यह भारी आबादी की जीवन रेखा रेलवे को आम जन से दूर पहुँचाने की जारी योजनाओं का हिस्सा है, जो पैसे वालों की सुविधा और बढ़ाने के लिए तथा मुनाफा केंद्रित योजना है।

वित्त मंत्री ने फरमाया कि पिछले 10 वर्षों में देश में हवाई अड्डों की संख्या दोगुना होकर 149 हो गयी है। तथ्य बताते हैं कि हवाई अड्डे अडानी समूह के पास जा रहे हैं और उन्ही के हित में योजनाएं बन रही हैं। वैसे भी आम मेहनतकश हवाई यात्राओं की सोच भी नहीं सकता। स्पष्ट तौर पर यह योजना पैसे वालों की सुविधा के लिए है। जसपर इस बार भी बजट आवंटन बढ़ाया गया है।

लेकिन सड़क परिवहन रोडवेज को दुरुस्त व सस्ता करने पर कोई बात नहीं हुई है।

कुल मिलकर राम मय माहौल में चुनावी नैया पार लगने के आत्मविश्वास के बीच प्रस्तुत मोदी सरकार का यह अंतरिम बजट भी चुनावी साल होने के बावजूद आम मेहनतकश जनता को मामूली राहत भी देने की जगह संकट को और बढ़ाने वाला है। इसके विपरीत उद्योगपति मित्रों के लिए और राहत देने वाला है।