70 घंटे साप्ताहिक काम का शोर क्यों?
तमाम विरोधों के बीच मोदी सरकार मज़दूरों को बंधुआ बनने वाले चार लेबर कोड अभी लागू नहीं कर पाई, लेकिन चोर दरवाजे से उसे लागू करने और तमाम तरीके से उसके विभिन्न खतरनाक प्रावधानों थोपने की कोशिशें जारी हैं। इसी क्रम में पिछले दिनों भारत की दिग्गज आईटी कम्पनी इम्फोसिस के मालिक नारायण मूर्ति ने फरमाया कि “देश की तरक्की के लिए हर रोज करीब 12 घण्टे और हफ्ते में कुल 70 घण्टे काम करना चाहिए!”
‘संघर्षरत मेहनतकश’ पत्रिका अंक-51 की संपादकीय
इस अंक की अन्य महत्वपूर्ण सामग्री-
अभियान:
– फासीवाद और नव-उदारवादी हमले के खिलाफ “जनचेतना यात्रा”
विशेष:
– भगवती-माइक्रोमैक्स मज़दूरों की जीत ऐतिहासिक क्यों है?
– इज़राइल फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध से क्यों डरता है?
– धनबाद: हालात से जूझते ज़ोमाटो मज़दूर
मज़दूरनाम:
– लंबे संघर्ष के बाद बारानगर जूट मिल श्रमिकों की जीत
– चाय बाग़ान मज़दूरों ने जीता बोनस का संघर्ष
– बेलसोनिका, एमएमटीसी, इंटरार्क, लुकास टीवीएस, मार्शल मशीन्स… संघर्ष जारी
चित्र कथा:
एक आज़ादी की लड़ाई
श्रमजीवी महिला:
– पुरानी धारणाएं व महिला श्रमिकों की चुनौतियाँ
विरासत:
– रूसी क्रान्ति: ऐतिहासिक 7 नवंबर 1917 21
– बिस्मिल-अशफाक की यारी! साझी विरासत है हमारी!!
साहित्य/कविता:
तय हो गई सबकी सजा
साथ में अन्य विविध सामग्री-
‘संघर्षरत मेहनतकश’ पत्रिका
अंक-51 (अक्टूबर-दिसम्बर, 2023)
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