मई दिवस: मज़दूर आंदोलन की नायिका लूसी पार्सन्स का अदालत में दिया गया बयान

मई दिवस के अमर शहीद नायकों में एक अल्बर्ट पार्सन्स की पत्नी और साथी लूसी पार्सन्‍स का अदालत में दिया बयान आज भी आईने की तरह पूंजीवादी जनतंत्र, उसकी अदालतों की सच्चाई बयान करती है।

मई दिवस के अमर शहीद नायक अल्बर्ट पार्सन्स की जीवन साथी थीं लूसी पार्सन्‍स। महिलाओ के उत्पीड़न और नस्ल-आधारित भेदभाव का समाधान उन्होंने पूंजीवाद के विनाश के साथ जोड़कर देखा। शिकागो पुलिस के एक अंदरूनी दस्तावेज में उनके बारे में लिखा गया था: ‘अकेली हज़ार विद्रोहियो से भी ज़्यादा खतरनाक!’

1886 में अमेरिका के शिकागो में ‘आठ घंटे काम’ की माँग पर 1 मई को हुए ऐतिहासिक आंदोलन, 3 मई को ‘हे-मार्केट’ की सजिशपूर्ण घटना और बड़े पैमाने के दमन के साथ 8 मज़दूर नेताओं को फर्जी तरीके से फँसाकर सजा मुकर्रर की गई और अल्बर्ट पार्सन्स के साथ आगस्ट स्पाइस, जार्ज एंजेल और अडोल्फ़ फिशर को जालिम सत्ताधारियों ने फांसी पर लटका दिया, लेकिन उन शहीदों की आवाज़ नहीं दबा सके।

उसी संघर्ष के दौरान लूसी पार्सन्‍स का अदालत में दिया बयान आज भी आईने की तरह पूंजीवादी जनतंत्र, उसकी अदालतों की सच्चाई बयान करती है। अदालत मे दिया उनका उक्त बयान मेहनतकश साथियों के लिए प्रस्तुत है-

अदालत में लूसी पार्सन्स का बयान

‘‘जज आल्टगेल्ड, क्या आप इस बात से इन्कार करेंगे कि आपके जेलख़ाने ग़रीबों के बच्चों से भरे हुए हैं, अमीरों के बच्चों से नहीं? क्या आप इन्कार करेंगे कि आदमी इसलिए चोरी करता है क्योंकि उसका पेट ख़ाली होता है? क्या आपमें यह कहने का साहस है कि वे भूली-भटकी बहनें, जिनकी आप बात करते हैं, एक रात में दस से बीस व्यक्तियों के साथ सोने में प्रसन्नता महसूस करती हैं, अपनी अँतड़ियों को दगवाकर बहुत ख़ुश होती हैं?’’

पूरे हॉल में विरोध का शोर गूँजने लगा : ‘‘शर्मनाक’’ और ‘‘घृणास्पद’’ की आवाज़ें उठने लगी। एक पादरी उठा और आवेश से काँपते हुए अपने छाते को जोर-शोर से हिलाकर उसने जज से हस्तक्षेप करने को कहा। दूसरों ने भी शोर किया। परन्तु जज आल्टगेल्ड ने, जैसा कि अगले दिन अख़बारों ने भी लिखा, प्रशंसनीय ढंग से आचरण किया। उसने अपने हाथ के इशारे से शोर-शराबे को शान्त किया। उसने व्यवस्था बनाये रखने का आदेश दिया और उसे लागू किया। उसने कहा, ‘‘मंच पर एक महिला खड़ी है। क्या हम इतने उद्दण्ड होकर नम्रता की धज्जियाँ उड़ायेंगे?’’ फिर श्रीमती पार्सन्स की ओर मुड़ते हुए उसने कहा, ‘‘कृपया आप अपनी बात जारी रखें, श्रीमती पार्सन्स, और उसके बाद अगर आप चाहेंगी तो मैं आपके सवाल का जवाब दूँगा।’’ 

तो यह थी बहुचर्चित लूसी पार्सन्स! हॉल में फुसफुसाहट हुई और श्रीमती पार्सन्स ने, जो इस दौरान पूरे समय दृढ़तापूर्वक खड़ी रही थी, बोलना शुरू किया : ‘‘आप सब लोग जो सुधार की बातें करते हैं, सुधार का उपदेश देते हैं और सुधार की गाड़ी पर चढ़कर स्वर्ग तक पहुँचना चाहते हैं, आप लोगों की सोच क्या है? जज आल्टगेल्ड क़ैदियों के लिए धारीदार पोशाक की जगह भूरे सूट की वकालत करते हैं। वह रचनात्मक कार्य, अच्छी किताबों और हवादार, साफ़-सुथरी कोठरियों की वकालत करते हैं। बेशक उनका यह कहना सही है कि कठोर दण्ड की सज़ा पाये क़ैदियों को पहली बार अपराध के लिए सज़ा भुगतने वाले क़ैदियों से अलग रखा जाना चाहिए। वह एक जज हैं और इसलिए जब वह न्याय के पक्ष में ढेर सारी बातें करते हैं मुझे आश्चर्य नहीं होता क्योंकि अगर कोई चीज़ मौजूद ही नहीं है तो भी उसकी चर्चा तो अवश्य होनी चाहिए। 

“नहीं, मैं जज आल्टगेल्ड की आलोचना नहीं कर रही हूँ। मैं उनसे सहमत हूँ जब वे यन्त्रणा की भयावहता के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं। मैंने एक बार नहीं, अनेकों बार तक़लीफें और यातनाएँ बरदाश्त की हैं। मेरे शरीर पर उसके ढेरों निशान हैं। लेकिन मैं तुम्हारे सुधारों के झाँसे में नहीं आती। यह समाज तुम्हारा है, जज आल्टगेल्ड। तुम लोगों ने इसे बनाया है और यही वह समाज है जो अपराधियों को पैदा करता है। एक स्त्री अपना शरीर बेचने लगती है क्योंकि यह भूखे मरने की तुलना में थोड़ा बेहतर है। एक इन्सान इसलिए चोर बन जाता है क्योंकि तुम्हारी व्यवस्था उसे क़ानून तोड़ने वाला घोषित करती है। वह तुम्हारे नीतिशास्त्र को देखता है जो कि जंगली जानवरों के आचार-व्यवहार का शास्त्र है और तुम उसे जेलख़ाने में ठूँस देते हो क्योंकि वह तुम्हारे आचार-व्यवहार का पालन नहीं करता है।

“और अगर मज़दूर एकजुट होकर रोटी के लिए संघर्ष करते हैं, एक बेहतर ज़िन्दगी के लिए लड़ाई लड़ते हैं, तो तुम उन्हें भी जेल भेज देते हो और अपनी आत्मा को सन्तुष्ट करने के लिए हर-हमेशा सुधार की बात करते हो, सुधार की बातें। नहीं, जज आल्टगेल्ड, जब तक तुम इस व्यवस्था की, इस नीतिशास्त्र की हिफ़ाजत और रखवाली करते रहोगे, तब तक तुम्हारी जेलों की कोठरियाँ हमेशा ऐसे स्त्री-पुरुषों से भरी रहेंगी जो मौत की बजाय जीवन चुनेंगे – वह अपराधी जीवन जो तुम उन पर थोपते हो।’’

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