तालाबंदी के खिलाफ 13 साल लंबा संघर्ष: एएलपी मज़दूरों को सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी जीत

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मज़दूर विरोधी इस कठिन दौर में, मालिकों के तिकड़म, ट्रिब्यूनल से हार के बावजूद 13 साल से जज्बे के साथ मज़दूरों ने हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक सतत संघर्ष कर जीत पाई है।

रुद्रपुर (उत्तराखंड)। 13 साल लंबे संघर्ष के बाद एएलपी ओवरसीज प्राइवेट लिमटेड के मज़दूरों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी कामयाबी मिली है। मज़दूर वर्ष 2009 से 101 श्रमिकों की बर्खास्तगी की लड़ाई लड़ रहे हैं। ट्रिब्यूनल से यूनियन हार गई थी। फिर हाईकोर्ट से जीती। जिसके खिलाफ प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट गया था, जहाँ से प्रबंधन की एसएलपी खारिज हो गई।

सर्वोच्च अदालत में न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ कि पीठ ने शुक्रवार (6 मई) को दोनों पक्षों को सुनने के बाद प्रबंधन की दलीलों को खारिज कर दिया और मजदूरों के हक में फैसला सुनते हुए उच्च न्यायालय, नैनीताल के आदेश पर मुहर लगा दी।

क्या है पूरा मामला?

1985 से मारुति के लिए रबर जेन बनने वाली एएलपी ओवरसीज ने मज़दूरों की छँटनी के लिए तमाम तिकड़म किए। जिसका विरोध आनंद निशिकावा कंपनी इम्पलाइज यूनियन (यूनियन बनी तब कंपनी का यही नाम था) लगातार विरोध करती रही।

17 जुलाई 2009 को प्रबंधन ने एक साजिश के तहत मज़दूरों की गैरकानूनी गेट बंदी कर दी थी। इसी संघर्ष के दौरान यूनियन के तत्कालीन पदाधिकारियों ने प्रबंधन से मिलकर धोखाधड़ी कर दी थी। यहाँ तक कि यूनियन को खत्म करने का आवेदन भी कर दिया था।

कई मज़दूर इसका शिकार बने, लेकिन ज्यादातर मज़दूर इसके खिलाफ उठ खड़े हुए। मज़दूरों ने गद्दार नेताओं को हटाकर नए पदाधिकारियों को चुनकर संघर्ष का ऐलान किया था।

तबसे मजदूरों का जमीनी व क़ानूनी संघर्ष जारी है। इस दौरान सहायक श्रम आयुक्त ऊधम सिंह नगर की वार्ता में कोई समाधन न निकलने के बाद 25 मार्च 2010 को यह विवाद औद्योगिक न्यायाधिकरण हल्द्वानी के लिए संदर्भित हो गया।

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औद्योगिक न्यायाधिकरण ने पलट दिया था पूरा मामला

औद्योगिक न्यायाधिकरण के पीठासीन अधिकारी ने मालिक के हित में गैरकानूनी रूप से पूरे मामले को ही पलट दिया था।

संदर्भादेश इस बिंदु पर था कि “क्या सेवायोजक द्वारा संलग्न सूची में अंकित 101 श्रमिकों को दिनांक 17/07/2009 से कार्य पर न लिया जाना उचित/वैधानिक है? यदि नहीं तो संलग्न सूची में अंकित श्रमिक किन-किन विवरण सहित हितलाभ/क्षतिपूर्ति पाने के अधिकारी हैं।”

कोर्ट ने बड़े ही साजिशाना तरीके से मुख्य वादबिन्दु को बदल दिया और प्रबंधन द्वारा मनगढ़ंत किस्से को मूल बिंदु बना दिया कि “क्या सेवायोजक द्वारा की गई घरेलू जांच की प्रकृति न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप वैधानिक तरीके से की गई है, यदि नहीं तो उसका प्रभाव।” और दूसरा बिंदु बना दिया “क्या संदर्भादेश विधि विरुद्ध है।” और मूल संदर्भादेश को अतिरिक्त बिंदु बना दिया।

दरअसल विवाद कोर्ट में जाने के बाद प्रबंधन ने गुपचुप रूप से श्रमिकों पर कार्य पर न आने का कथित आरोप पत्र जारी करके तथाकथित घरेलू जांच कर एकतरफा रूप से बर्खास्त कर दिया था और उसे ही कोर्ट में प्रस्तुत करके मुख्य वाद बिन्दु बनवा दिया।

इस प्रकार कोर्ट ने पूरे मामले को पलटकर पहले बिंदु के आधार पर फर्जी तथ्यों से दिनांक 14/07/2014 को मजदूरों के विरुद्ध फैसला सुना दिया।

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हाईकोर्ट ने कहा- ट्रिब्यूनल ने वाद के मूल मुद्दे से भटकाया है

इसके खिलाफ यूनियन उच्च न्यायालय नैनीताल गई। यूनियन ने इस बात को चुनौती दी कि जो संदर्भादेश शासन द्वारा न्यायाधिकरण को भेजा गया है उसकी जगह दूसरा वाद बिंदु बनाकर वह फैसला कैसे दे सकती है? यह न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र से भी बाहर है।

पूरी सुनवाई और बहस के बाद माननीय उच्च न्यायालय ने मई 2018 में मजदूरों के हक में फैसला दिया और यह स्पष्ट किया कि न्यायाधिकरण को मूल वाद बिंदु को हटाकर दूसरे वाद बिंदु पर फैसला देने का कोई अधिकार नहीं है।

जस्टिस मनोज तिवारी की एकल पीठ ने औद्योगिक न्यायाधिकरण के फैसले को पलटते हुए तीखी टिप्पणी की और कहा कि न्यायाधिकरण ने वाद के मूल मुद्दे से भटकाया है।

पीठ ने मामले को न्यायाधिकरण के पास पुनः भेज कर इसे महज ‘कार्य पर न लिये जाने’ और मिलने वाले लाभहित के बिन्दु पर तत्काल निस्तारित करने का आदेश दिया था।

सर्वोच्च अदालत में प्रबंधन की एसएलपी हुई खारिज

प्रबंधन इसके खिलाफ सर्वोच्च अदालत में चला गया। कोविड-19 महामारी के दौर में पूरा मामला लंबित रहा और अब जाकर उस पर फैसला आया है। उच्चतम न्यायालय की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को सही बताते हुए प्रबंधन की एसएलपी को खारिज कर दिया।

अब औद्योगिक न्यायाधिकरण को उस मूल बिंदु पर अपना आदेश पारित करना है। निश्चित रूप से मजदूरों की इसमें भी जीत होगी।

इस पूरे मामले में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजेश त्यागी ने जोरदार पैरवी की। उन्होंने श्रमिक हित में उच्च न्यायालय, नैनीताल में भी पैरवी में उच्च न्यायालय के अधिवक्ता योगेश पचौलिया के साथ अपनी अहम भूमिका निभाई और अंततः मजदूरों को जीत मिली है।

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प्रबंधन रचता रहा तिकड़में

शुरुआती तिकड़मों की नाकामयाबी के बाद भी प्रबंधन कई प्रकार की तिकड़में रचता रहा, भ्रम फैलाता रहा। इन 13 सालों में उसने कुछ मज़दूरों को तोड़ा, कुछ का हिसाब किया। लेकिन यूनियन के नेतृत्व में ज्यादातर मज़दूर पूरी मुस्तैदी से डटे रहे, धैर्य के साथ लंबा संघर्ष चलाया और महत्वपूर्ण जीत हासिल की।

आनंद निशिकावा कंपनी इम्प्लाइज यूनियन के अध्यक्ष शंभू शर्मा ने कहा कि विकट स्थितियों के बावजूद मज़दूरों के लगातार एकजुट संघर्ष, सहयोगी संगठन के कुशल निर्देशन और अधिवक्ताओं की शानदार पैरवी से ही लगातार जीत मिली है।

महामंत्री नरेश सक्सेना ने कहा कि पिछले 13 साल से हम मज़दूर दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। इन सालों में सारे मज़दूरों की आर्थिक स्थिति बेहद दयनीय हो चुकी है। लेकिन हमने न्याय मिलने तक लड़ने का संकल्प लिया है।

यूनियन नेता अमरीक सिंह ने कहा कि लगातार जीत मिलने के बावजूद प्रबंधन की मनमानी जारी है। प्रबंधन गैरकानूनी रूप से मशीनें भी राज्य से दूसरे राज्य शिफ्ट करती रही। इस बीच राज्य में सरकारें बदलती रहीं, लेकिन मज़दूरों की कहीं भी कोई सुनवाई नहीं हुई।

कोषाध्यक्ष गंगा सिंह ने कहा कि श्रम विभाग में कई बार आपत्तियां दर्ज कराने के बावजूद श्रम अधिकारी भी कोई सुनवाई नहीं कर रहे हैं और प्रबंधन की गैर कानूनी कार्यवाही पर कोई रोक भी नहीं लगा रहे हैं। इसके बावजूद हमारा संघर्ष सवेतन कार्यबहाली तक जारी रहेगा।

मज़दूरों का संघर्षशील जज्बा सीखने लायक

एएलपी मज़दूरों की इस महत्वपूर्ण जीत पर मज़दूर सहयोग केंद्र (एमएसके) ने सभी संघर्षशील मज़दूरों को बधाई दी है और उनके संघर्ष को सलाम पेश किया है।

एमएसके ने कहा कि आज के मज़दूर विरोधी इस कठिन दौर में, मालिकों के तिकड़म, ट्रिब्यूनल से हार, कई मज़दूरों द्वारा बीच में ही साथ छोड़ देने के बावजूद 13 साल से जिस जज्बे के साथ मज़दूर संघर्ष कर रहे हैं वह सीखने लायक है।

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