ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के निजीकरण के खिलाफ करीब 80000 कर्मचारियों को हड़ताल पर जाने से रोकने के लिए मोदी सरकार में एक नया क्रूर और दमनकारी कानून रातों-रात लागू कर दिया है जिसका नाम है “आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश 2021” (The essential defence service ordinance 2021).
दरअसल 23 जुन को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को लिखे एक पत्र में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के अंतर्गत आने वाली 41 फैक्ट्रियों से सम्बंधित ट्रेड यूनियन फेडरेशन ने यह चेतावनी दी थी कि वे ओएफबी को भंग करने के सरकार के फैसले के विरोध में 26 जुलाई से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाएंगे। 8 जुलाई को हड़ताल का नोटिस भी दिया जाने वाला था। इसलिए आनन-फानन में आवश्यक रक्षा सेवा अध्यादेश 2021 पारित किया गया। इसमें कानून के प्रावधान औपनिवेशिक कानूनों की तरह है जो गुलामी की नियम शर्तें निर्धारित करते हैं। यह दमनकारी कानून एस्मा 1968 के तर्ज़ पर लाया गया है।
कानून मंत्रालय की अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद “संतुष्ट हैं कि संसद सत्र नहीं होने की वजह से इस अध्यादेश के लिए अनुकूल परिस्थिति मौजूद है”।
अध्यादेश के प्रावधानों के अनुसार “कोई भी व्यक्ति, जो इस अध्यादेश के तहत अवैध हड़ताल शुरू करता है या ऐसी किसी भी हड़ताल में भाग लेता है, तो उसे एक वर्ष के कारावास से दंडित किया जा सकता है या दस हजार रुपये जुर्माना या फिर दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है। यही नहीं अवैध घोषित हड़ताल में भाग लेने वाले, या इस तरह के कार्यों के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने वाले, और उकसाने वालों को भी दंडित किया जाएगा।
“आवश्यक रक्षा सेवाओं के उत्पादन प्रक्रिया, सुरक्षा या रखरखाव” को सुनिश्चित रूप से चलाने के नाम पर यह अध्यादेश, पुलिस बल के इस्तेमाल की अनुमति देने के साथ-साथ प्रबंधन को बिना किसी घरेलू जांच के हड़ताल में भाग लेने वाले कर्मचारियों को सीधे बर्खास्त करने का अधिकार भी देता है।
गजट अधिसूचना में कहा गया है कि रक्षा उपकरणों के उत्पादन, सेवाओं और संचालन, या सेना से जुड़े किसी भी औद्योगिक प्रतिष्ठान के रखरखाव में शामिल कर्मचारी, साथ ही रक्षा उत्पादों की मरम्मत और रखरखाव में संलग्न कर्मचारी, इस अध्यादेश के दायरे में शामिल हैं।
जिस तरह एस्मा कानून के इस्तेमाल से पब्लिक सेक्टर के अंतर्गत आने वाले विभागों और प्रतिष्ठानों जैसे स्वास्थ्य, बिजली, रेलवे, डाक में हड़ताल करने पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया गया और पब्लिक यूटिलिटी सर्विस के नाम पर स्पेशल इकोनामिक जोन में हड़ताल या रैली, धरना, प्रदर्शन को रोकने का षड्यंत्र रचा गया है, आयुध फैक्ट्री के लिए लागू यह नया अध्यादेश उससे ज्यादा दमनकारी है।
16 जून को, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एएफबी की जवाबदेही, दक्षता और प्रतिस्पर्धा में सुधार के नाम पर लगभग 200 साल पुराने इस आयुध निर्माण बोर्ड – जो 41 गोला-बारूद और सैन्य उपकरण उत्पादन सुविधाओं का संचालन करता है – के राज्य के स्वामित्व वाले 7 निगमों में पुनर्गठन के लंबित प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी।
हालांकि सरकार निजीकरण की तरह इस बार भी दावा कर रही है कि इससे कर्मचारियों के सर्विस कंडीशन पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वहीं दूसरी तरफ सरकार ने पहले ही कह रखा है कि रक्षा क्षेत्र में सिर्फ 4 पब्लिक सेक्टर प्रतिष्ठानों को रखा जाएगा। फिलहाल रक्षा क्षेत्र में आठ प्रतिष्ठान पब्लिक सेक्टर के अंतर्गत आते हैं। ओएफबी को भंग करने के बाद इनकी संख्या 15 हो जाएगी अब इनमें से कौन से 4 प्रतिष्ठान को रखा जाएगा यह स्पष्ट नहीं है इसलिए ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड के अंतर्गत आने वाली 41 फैक्ट्रियों के करीब 80000 कर्मचारी पिछले 1 साल से संघर्ष कर रहे हैं।
आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) जिसमें भारतीय आयुध कारखाने शामिल हैं, रक्षा उत्पादन विभाग (डीडीपी), रक्षा मंत्रालय (एमओडी), भारत सरकार के नियंत्रण में संचालित एक सरकारी प्रतिष्ठान समूह है। यह वायु, भूमि और समुद्री रक्षा प्रणालियों में स्माल होने वाले उत्पादों के अनुसंधान, विकास, उत्पादन, परीक्षण, विपणन और भंडारण में संलग्न है। ओएफबी में इकतालीस आयुध कारखाने, नौ प्रशिक्षण संस्थान, तीन क्षेत्रीय विपणन केंद्र और चार क्षेत्रीय सुरक्षा नियंत्रक शामिल हैं, जो पूरे देश में फैले हुए हैं।
ओएफबी दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी उत्पादन संगठन है, और भारत का सबसे पुराना संगठन है। इसे अक्सर “रक्षा की चौथी शाखा” और भारत के “सशस्त्र बलों के पीछे का बल” कहा जाता है। ओएफबी दुनिया में 35वां सबसे बड़ा, एशिया में दूसरा सबसे बड़ा और भारत में सबसे बड़ा रक्षा उपकरण निर्माता है। वर्ष 2017-18 में इसकी कुल बिक्री 2 अरब डॉलर (₹13687.22 करोड़) थी।
आपको बता दें कि आयुध निर्माण फैक्ट्री वह संस्था है जब हमारे यहां छात्र आईटीआई और डिप्लोमा की परीक्षा पास करते हैं तो हर एक का सपना होता है ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में नौकरी करना।