22 मई के देशव्यापी विरोध कार्यक्रम में अपनी ताक़त दिखलाओ!

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मज़दूरों सहयोग केंद्र का आह्वान- मेहनतकश-मज़दूरों को बंधुआ बनाने के खि़लाफ आगे आओ!

मोदी की केंद्र व अन्य राज्य सरकारों द्वारा मज़दूर वर्ग को अधिकार विहीन बनाने के ख़िलाफ़ केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने 22 मई को देशव्यापी विरोध का आह्वान किया है। जुझारू संगठनो के साझा मंच ‘मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने भी इसका समर्थन किया है। इसके सहयोग में मज़दूर सहयोग केंद्र द्वारा जारी पर्च-

  • मोदी सरकार का हमला सब पर भारी, इसलिए करो एक बड़े संघर्ष की तैयारी!
  • कोरोना संकट तो बहाना है, मज़दूर ही असल निशाना है!

साथियो,

मज़दूर-मेहनतकश इस वक्त सबसे बड़े हमले का शिकार बन गया है। एक तरफ कोरोना महामारी का प्रकोप, दूसरी तरफ भूख, बेकारी, दमन और लंबे संघर्षों के दौरान हासिल हक़-हक़ूक़ को पूरी तरह खत्म कर देने की तैयारी है।

जब कोरोना महामारी का प्रकोप पूरे देश में बढ़ रहा था, तो मोदी सरकार ट्रंप की अगुवाई में लगी हुई थी, दिल्ली चुनाव, दंगे, मध्य प्रदेश में सरकार गिराने-बनाने में मशगूल थी और सीएए, एनआरसी, एनपीआर के नाम पर जनता को बांटने का खेल खेल रही थी। और जब अचानक संकट सर पर आ गया तो बिना किसी तैयारी अचानक पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा करके मज़दूर-मेहनतकश जमात को संकटों के नए दुष्चक्र में फंसा दिया। मेहनतकश आवाम पांव में छाले और दिलों में घाव लिए हजारों किलोमीटर की यात्रा पर निकलने को विवश हो गई। आज कल-कारखानों से लेकर खेत-खलिहान तक हर क्षेत्र का मज़दूर तबाह है। महिला-आदिवासी मज़दूरों पर और गंभीर संकट हैं।

पिछले दो महीने के भीतर मोदी सरकार के कारनामे मज़दूरों के ऊपर क़यामत की तरह गिरने लगे। ज़नाब मोदी ने देश की जनता के हाथ में थाली व मोमबत्ती पकड़ा दी और मज़दूरों के लंबे संघर्षों के दौरान हासिल अधिकारों की डकैती तेज कर दी। मज़दूरों के काम के घंटे बढ़ाने का फरमान केंद्र से लेकर राज्य सरकारों तक ने जारी कर दिए।

ज़नाब मोदी ने 29 मार्च को सब को वेतन देने की घोषणा को जुमला साबित करते हुए अब मालिकों को वेतन न देने की खुली छूट दे दी। 20 लाख करोड़ों रुपए का पैकेज मालिकों की हित सेवा में समर्पित कर दिया। देश की संपदाओं और सार्वजनिक-सरकारी क्षेत्र के उद्योगों को अडानियों-अंबानियों को सौंपने का क्रम तेज हो गया। जहाँ केंद्र की मोदी सरकार ने 44 श्रम कानूनों को समाप्त करके चार संहिताओं में बदलने के अपने नापाक इरादे को इस दौर में गति दे दी, वहीं राज्य सरकारें भी इसमें बढ़-चढ़कर भागीदारी करने लगीं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात की सरकारों ने तो श्रम कानूनों को खत्म कर देने जैसी स्थिति पैदा कर दी। मोदी सरकार ने केंद्रीय कर्मियों व पेंशनभोगियों के महँगाई भत्ते को भी फ्रिज कर दिया।

दोस्तों संकट का यह एक ऐसा दौर मज़दूर-मेहनतकश आबादी के सामने आ खड़ा है, जिसमें फिर से एक बड़ी और व्यापक एकता बनाने और एक जुझारू संघर्ष की दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है। ऐसे हालात में देश की केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 22 मई 2020 को देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। भाजपा-संघ से संबद्ध बीएमएस को छोड़कर देश की अधिकतम यूनियनों और मज़दूर संगठनों ने इसका समर्थन किया है। मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) ने भी इसको समर्थन दिया है। मज़दूर सहयोग केंद्र इस संघर्ष में अपनी पूरी ताकत से शामिल होने का आह्वान करता है।

हमारा मानना है कि इस दुर्दशा का कारण मज़दूरों की एकता को कमजोर करने और मज़दूर संघर्षों को निरंतरता में आगे बढ़ाने की नाकामयाबी है। ऐसे में इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के साथ एक बड़ी गोलबंदी और एक बड़े संघर्ष की जरूरत है, जिसके लिए आगे आना होगा! संघर्ष को हर मुकाम पर तेज करना होगा!

आइए 22 मई 2020 के देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन को अपनी एकता से सफल बनाएं और अपने संघर्ष को मज़दूरों के हक-हकूक के व्यापक संघर्ष से जोड़ें, जो मज़दूरों की मुक्तिकामी संघर्ष को अपनी अंतिम मंजिल तक ले जा सके!

क्रांतिकारी अभिवादन के साथ,

मज़दूर सहयोग केन्द्र (घटक मासा)